बंटवारे के वक्त पाकिस्तान को चुनने वाले जोगेंद्र नाथ मंडल की कहानी, जो सीएए का विरोध करने वालों को जरूर जाननी चाहिए
   29-जनवरी-2020

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आजादी के पहले भारत के दलित नेता और बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल की आज 116 वीं जयंती है। जब देश के कुछ हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहा है। तो ऐसे वक्त में जोगेंद्र नाथ मंडल का जिक्र करना बहुत जरूरी है। बंटवारे के वक्त मुस्लिम लीग पार्टी के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के झूठे वादों में फंसकर जोगेंद्र नाथ सहित लाखों दलितों ने भारत छोड़कर पाकिस्तान में जाने का फैसला किया था। लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालत आज भी यह बताती है कि उनका वह फैसला कितना विनाशकारी साबित हुआ।
 
 
 
लेकिन आज जब आजादी के 73 साल बाद किसी सरकार ने उन शरणार्थियों के पुनर्वास लिये कानून लेकर आयी है, तब आज तमाम तथाकथित नेता वोट बैंक के लिए इस कानून का विरोध कर रहे है। आश्चर्य की बात यह है कि दलित समाज की नेता मायावती और चंद्रशेखर रावण जैसे लोग भी इस कानून का विरोध कर रहे है। जबकि इस कानून से दलित शरणार्थियों को ज्यादा लाभ मिलेगा।
 
 
 
बीते 17 दिसंबर को बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने एक बयान जारी करते हुये कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विभाजनकारी है। उनके इस बयान के बाद सवाल यह उठता है कि क्या मायावती विभाजन के वक्त गलती से पाकिस्तान गये देश के हिंदू भाईयों ,बहनों और माताओं को वापस अपनाना नहीं चाहती है ? वो भी तब जब इनमें दलित समाज के लोगों की संख्या ज्यादा है।
 
यहीं सवाल संविधान की किताब लेकर विरोध कर रहे दलित समाज के युवा नेता चंद्रशेखर रावण पर भी उठता है कि क्या वह संविधान के नियमों के तहत बने कानून द्वारा शरणार्थी दलितों को भारत का नागरिक नहीं बनाना चाहते है ?, उन नागरिकों को जो अपने परिवार, बहन, बेटी की इज्जत बचाने के लिये पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़कर  भारत आ गये थे। जहां आज भी वह सालों से शरणार्थियों जैसा जीवन जी रहे है।
 
 
विभाजन के बाद पाकिस्तान गये जोग्रेंद्र नाथ को अपनी इस गलती का एहसास जल्दी ही हो गया था, लेकिन आज भारत में विरोध कर रहे इन नेताओं और लोगों को इसका एहसास कब तक होगा यह कहना मुश्किल है।
 
1950 में  जोगेंद्र नाथ खुद एक शरणार्थी के रूप में भारत वापस आ गये थे, लेकिन उनके पीछे लाखों दलित समाज के लोग पाकिस्तान में आज भी प्रताड़ना का जीवन जीने के लिये मजबूर है। और जो कुछ लोग उनके साथ यहां उनके पीछे-पीछे भारत आये थे, वो आज अपने ही देश में शरणार्थियों जैसा जीवन जीने के लिये मजबूर है। 
 
 
जोगेंद्र नाथ मंडल का जीवन परिचय
 
 
जोग्रेंद्र नाथ मंडल का जन्म 29 जनवरी 1904 को पूर्ववर्ती बंगाल ( जो अब बांग्लादेश में स्थित है) के एक दलित परिवार में हुआ था। शायद ये ही कारण था कि उनकी राजनीति भी हमेशा दलित समाज और पिछड़ी जातियों के ईद गिर्द ही रहती थी। इतिहासकार बताते है कि जोग्रेंद्र नाथ उस वक्त सुभाष चंद्र बोस से काफी प्रभावित थे। जोगेंद्र नाथ मंडल का दलित समाज में लोकप्रियता का ही फायदा उठाकर मुस्लिम लीग पार्टी के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें अपने साथ जोड़ रखा था। जिसका बाद में जिन्ना को बड़ा फायदा भी मिला।
 
 

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 फोटो में जोगेंद्र नाथ मंडल
 
 
पाकिस्तान मूवमेंट में जोगेंद्र नाथ मंडल की भूमिका
 
मुस्लिम लीग पार्टी और मोहम्मद अली जिन्ना से जुड़े होने के कारण जोगेंद्र नाथ मंडल और उनके समर्थकों का मानना था कि मुस्लिम लीग, कांग्रेस की तुलना में ज्यादा धर्म-निरपेक्ष है। यही कारण था कि जोगेंद्र नाथ मंडल ने खुलकर ‘पाकिस्तान मूवमेंट’ का समर्थन किया था। साथ ही इस मूवमेंट में अपने साथ बड़ी संख्या में दलितों को भी जोड़ना शुरू कर दिया था। उनके इस आंदोलन का असर भी जल्द ही दिख गया। जब बंगाल के कुछ इलाकों में जहां हिन्दू और मुसलमानों की आबादी समान थी, वहां पाकिस्तान या हिंदुस्तान में शामिल होने के लिए चुनाव कराये गये थे। जिन्ना ने इसका जिम्मा जोगेंद्र नाथ को सौंपा था। जिन्ना को यहां जोगेंद्रनाथ मंडल की दलित समाज में अच्छी पकड़ का बड़ा फायदा हुआ। जोगेंद्र नाथ ने पिछड़ी जाति के वोटों को पाकिस्तान के पक्ष में करा दिया और इसी वजह से मुस्लिम लीग भारत के एक बड़े हिस्से को पाकिस्तान में मिलाने में कामयाब रहा।

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जिन्ना का साथ देने के लिये जोगेंद्र नाथ को मिला गिफ्ट
 
 
पाकिस्तान जाने के बाद जोगेंद्र नाथ को इसका इनाम भी मिला। पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने जोगेंद्र नाथ को पाकिस्तान का पहला कानून और श्रम मंत्री का पद दिया। लेकिन जोगेंद्र नाथ मंडल की यह खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रही। 11 सितंबर 1948 में मोहम्मद अली जिन्ना के मौत के बाद पाकिस्तान का असली चेहरा सबके सामने आ गया। जिस पाकिस्तान में दलित अपना भविष्य देख रहे थे, उस पाकिस्तान ने उन्हें देश के बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया। पाकिस्तान में हर दिन दलित हिंदुओं, सिखों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ने लगी थी। दलितों की हत्या, जबरन धर्म-परिवर्तन, संपत्ति पर जबरन कब्जा और दलित बहन-बेटियों की आबरू लूटना आम बात हो गई थी। आश्चर्य की बात है कि आज 73 सालों बाद भी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ना झेलनी पड़ती है।
 
 
 
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मोहम्मद अली जिन्ना के दाई तरफ दूसरे नंबर पर जोगेंद्र नाथ मंडल  
 
 
 
 
 जोगेंद्र नाथ मंडल की भारत वापसी
 
 
जोगेंद्र नाथ मंडल ने दलित-मुस्लिम राजनीतिक एकता के इस असफल प्रयोग के लिए खुद को कसूरवार समझा और 8 अक्टूबर 1950 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को अपना इस्तीफा सौंपा । उस वक्त किसी ने नहीं सोचा था कि लाखों लोगों की आबादी लेकर पाकिस्तान जाने वाले जोगेंद्र नाथ मंडल खुद एक शरणार्थी बनकर भारत लौटेंगे।
 
 
 
जोगेंद्र नाथ मंडल को अपनी इस गलती पर जीवन के आखरी दिनों तक पछतावा हुआ। भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना पूरा समय और ऊर्जा पूर्वी पाकिस्तान से पश्चिम बंगाल में आए शरणार्थियों के पुनर्वास में लगा दिया। भारत वापसी के बाद राजनीतिक दलों ने उनसे काफी दूरी बना रखी थी। कम्युनिस्टों ने तो उन्हें जोगेंद्र अली मुल्ला नाम से पुकारना भी शुरू कर दिया था।
 
 
राजनीति में वापसी की आखिरी कोशिश
 
 
जोगेंद्र नाथ मंडल ने साल 1967 में अपना अस्तित्व बचाने के लिए बंगाल के बारासात से अपने जीवन का आखिरी चुनाव लड़ा था। लेकिन उस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उसके कुछ ही महीनों बाद 5 अक्टूबर 1968 को उन्होंने पश्चिम बंगाल के बानगांव में अंतिम सांस ली थी।
 
 
 
मंडल ने अपने त्यागपत्र में लिखा था पाकिस्तान का सच
 
 
जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने त्यागपत्र में पाकिस्तान में दलितों और अल्पसंख्यकों के ऊपर हो रहे अत्याचार के बारे में खुलकर लिखा था।
 
 
जोगेंद्र नाथ मंडल के त्यागपत्र में लिखी बातों के कुछ अंश
 
• बंगाल में मुस्लिम और दलितों की एक जैसी हालात थी, दोनों ही पिछड़े, मछुआरे, अशिक्षित थे। मुझे मुस्लिम लीग पार्टी द्वारा आश्वस्त किया गया था कि मेरे सहयोग से ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे बंगाल की बड़ी आबादी का भला होगा। हम मिलकर ऐसी आधारशिला रखेंगे जिससे सांप्रदायिक शांति और सौहादर्य बढ़ेगा। इन्हीं सभी बातों पर ही विश्वास करके मैंने मुस्लिम लीग का साथ दिया था।
  
• खुलना जिले कलशैरा में सशस्त्र पुलिस, सेना और स्थानीय लोगों ने निर्दयता से पुरे गाँव पर हमला किया। पुलिस, सेना और स्थानीय लोगों ने कई महिलाओं का बलात्कार किया।
 
• 20 फरवरी 1950 को मैं बरिसाल पहुंचा था। यहां बड़ी संख्या में हिंदुओं को जला दिया गया था, मैंने जिले में लगभग सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया। मुलादी में 300 लोगों का कत्लेआम हुआ। नदी किनारे गिद्द और कुत्ते लाशों को खा रहे थे। यहाँ सभी पुरुषों की हत्याओं के बाद लड़कियों को आपस में बाँटकर बलात्कार किया गया था।
 
• पूर्वी पाकिस्तान के अलावा पश्चिमी पाकिस्तान में भी ऐसे ही हालात हैं। विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में 1 लाख पिछड़ी जाति के लोग थे उनमें से बड़ी संख्या को बल-पूर्वक इस्लाम में परिवर्तित किया गया है। मुझे एक लिस्ट मिली है जिसमे 363 मंदिरों और गुरुद्वारे मुस्लिमों के कब्ज़े में हैं। इनमें से कुछ को मोची की दुकान, कसाईखाना और होटलों में तब्दील कर दिया है। मुझे जानकारी मिली हैं कि सिंध में रहने वाली पिछड़ी जाति की बड़ी संख्या को जबरन मुसलमान बनाया गया है।
 
 
• ईस्ट बंगाल के दंगे में अनुमान के मुताबिक 10 हजार लोगों की हत्याएं हुई।
 
 
• मैंने अपने आप से पूछा, क्या मैं इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था ?
 
 
• मैंने यह निश्चय किया है कि मैं मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफ़े का प्रस्ताव आपको दूँ, जो कि मैं आपके हाथों में थमा रहा हूँ। मुझे उम्मीद है आप बिना किसी देरी के इसे स्वीकार करेंगे। आप बेशक इस्लामिक स्टेट के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस पद को किसी को देने के लिये स्वतंत्र है।
 
 
बाबा साहेब आंबेडकर और जोगेंद्र नाथ का संबंध
 
बंटवारे से पहले जोग्रेंद्र नाथ दलित समाज के एक बड़े चेहरे के रूप में जाना जाता था। खास कर बंगाल के दलित समाज में उनकी लोकप्रियता बहुत ज्यादा थी। बंगाल में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने बाबा साहेब आंबेडकर को संविधान सभा में शामिल करने का विरोध किया था, विरोध भी ऐसा की बाबा साहेब को मुंबई में चुनाव हारना पड़ा और बाबा साहेब का संविधान सभा में जाने का रास्ता बंद हो गया था।तब उस वक्त जोग्रेंद्र नाथ मंडल जो बाबा साहेब के कार्यों से प्रभावित थे, उन्होंने उस वक्त बाबा साहेब को बंगाल के जैसोर-खुलना चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया। उस क्षेत्र में मंडल के प्रभाव के चलते दलितों और मुस्लिम लीग पार्टी ने इस चुनाव में बाबा साहेब को समर्थन दिया और बाबा साहेब जीते। जिसके बाद बाबा साहेब का संविधान सभा में जाने का रास्ता साफ हो गया। लेकिन बाबा साहेब के उस समय की विरोधी पार्टी कांग्रेस को यह बात हजम नहीं हुई।
विभाजन के वक्त एक नियम बना था कि जहां 51 फीसदी से अधिक हिंदू होंगे वह भारत में और जहां 51 फीसदी से अधिक मुस्लिम होंगे वह इलाका पाकिस्तान को दिया जायेगा। लेकिन कांग्रेस बाबा साहेब का समर्थन करने वाले उन 4 जिलों को पाकिस्तान को दे दिया, जबकि वहां हिंदू आबादी ज्यादा थी। कांग्रेस के ऐसा करने से बाबा साहेब का संविधान सभा में जाने का रास्ता फिर से बंद हो गया। लेकिन बाबा साहेब ने हार नहीं मानी और कांग्रेस पार्टी को खुली धमकी दी कि वो संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे। बाबा साहेब के इस धमकी के बाद कांग्रेस ने उन्हें संविधान सभा में जगह देने का फ़ैसला किया। इसी दौरान बॉम्बे के एक सदस्य एमआर जयकर ने संविधान सभा में अपने पद से इस्तीफ़ा दिया था। कांग्रेस पार्टी ने फ़ैसला किया कि एमआर जयकर की खाली जगह आंबेडकर भरेंगे। अब पूरा देश उन्हें संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर के तौर पर जानता है।
 
 
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बाबा साहेब आंबेडकर के साथ जोगेंद्र नाथ मंडल
 
 
एक चीज जो बाबा साहेब और जोगेंद्र नाथ मंडल को अलग करती थी, वो थी विभाजन को लेकर उनकी सोच। जहां जोगेंद्र नाथ पूरी तरह से पाकिस्तान के पक्ष में थे। वहीं बाबा साहेब  विभाजन के खिलाफ थे और उनका मानना था कि अगर बंटवारा होता है, तो  दलितों के लिए भारत में रहना उचित होगा।