अगली पीढ़ी को सुनाइये कश्मीर के असली हीरो लेफ्टिनेंट उमर फैयाज़ की कहानी, जब मीडिया रियाज़ नाइकू को पोस्टर बॉय बनाने में जुटा हो
   10-मई-2020


Ummer Fayaz _1  


कश्मीर के बहादुर सेना अधिकारी लेफ्टिनेंट उमर फैयाज़ की आज यानी 10 मई को तीसरी पुण्यतिथि है। आज से ठीक 3 साल पहले 10 मई 2017 को आतंकियों ने लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की हत्या कर दी थी। कुलगाम निवासी 22 वर्षीय उमर फैयाज उन कश्मीरी युवाओं में से एक था , जिसने घाटी में फैले पाकिस्तान परस्त आतंक को खत्म करने और देश की सेवा के लिए सेना को चुना था। लेकिन मीडिया आज भी लेफ्टिनेंट उमर फैयाज़ की कहानी लोगों को नहीं बताएंगी। क्योंकि मीडिया इस वक्त आतंकी रियाज़ नाइकू को पोस्टर बॉय बनाने में जुटी हुई है। सैद्धांतिक रूप से लेफ्टिनेंट उमर फैयाज़ और आतंकी रियाज की तुलना करना पूरी तरह से गलत है। लेकिन आप खुद देखिए कि कुछ पत्रकार आतंकी रियाज नाइकू की मौत की खबर पर लगातार 4 दिनों से स्टोरी कर रहे हैं। लेकिन यहीं पत्रकार बीते 3 सालों में एक भी बार शहीद लेफ्टिनेंट उमर फैयाज़ की कहानी देश के सामने नहीं लेकर आये। इतना ही नहीं खुद को बड़ा और निष्पक्ष कहने वाले पत्रकार भी बीते 3 सालों में एक भी बार कश्मीर उमर फैयाज़ के परिवार से मिलने नहीं गए हैं। लेकिन खुद को निष्पक्ष कहने वाले यहीं पत्रकार 4 साल पहले मारे गए आतंकी बुरहान वानी समेत अन्य आतंकियों की बरसी पर हर साल स्टोरी करते है और कुछ पत्रकार तो कश्मीर जाकर उनके परिवार से भी मिलते हैं। 


लेफ्टिनेंट उमर फैयाज़ की वीरगाथा
 

उमर फैयाज़ ने सेना में भर्ती होने के लिए 2012 में नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) ज्वाइन किया था। लेकिन उस वक्त घाटी में मौजूद आतंकियों को यह बर्दाश्त नहीं था कि कोई कश्मीरी युवा सेना में भर्ती हो। हालांकि आतंकियों की लाख धमकियों के बावजूद उमर फैयाज ने एनडीए ज्वाइन किया और पढ़ाई-ट्रेनिंग पूरी करने के बाद सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात हुये। उमर फैयाज़ की पहली पोस्टिंग अखनूर में हुई थी। एक तरफ जहां लेफ्टिनेंट उमर देश की सेवा कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ आतंकी उमर की हत्या की साजिश रच रहे थे। इसी कारण जब उमर अपनी चचेरी बहन की शादी में शामिल होने के लिए छुट्टी लेकर घर लौटे थे। उस वक्त आतंकियों ने उन्हें अगवा कर लिया, जिसके बाद उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। अगले दिन पड़ोस के गाँव हरमन में उमर फैयाज़ की लाश मिली थी। आज भी सेना के अधिकारी उमर का जिक्र करते हुये कहते हैं कि उस बहादुर के पास उस वक्त बंदूक होती तो कोई आतंकी वहां से जिंदा बचकर नहीं जाता।   
 
 
 
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बचपन से आर्मी ऑफिसर बनने का सपना
 

उमर फैयाज़ ने अपनी स्कूली शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय से पूरी की थी। उमर के माता-पिता ने बताया कि फै़याज़ बचपन से ही आर्मी ऑफिसर बनना चाहता था। इसीलिए 12 वीं पास करने के बाद उमर ने परिवार से अपने सपने के बारे में बताया और परिवार के सभी सदस्य तुरंत मान गये। जिसके बाद 2012 में उमर फै़याज़ ने एनडीए की परीक्षा पास की। एनडीए की पढ़ाई और ट्रेनिंग पूरा करने के बाद वह भारतीय सेना के राजपूताना राईफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त हुआ था।
 

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 उमर के माता-पिता

गांव का रोल मॉडल

फै़याज़ को उनके गांव के बच्चे अपना रोल मॉडल मानते थे। फैयाज घाटी के उन सैनिकों में से था, जिसने घाटी में आतंक के खात्मे के लिए सेना ज्वाइन की थी। एनडीए की पढ़ाई और ट्रेनिंग के दौरान फैयाज जब भी घर आता था, उस वक्त उससे मिलने गांव के बहुत युवक आते थे और पूछते आर्मी कैसे ज्वाइन कर सकते हैं। उस वक्त फैयाज भी युवाओं को पूरी जानकारी देता था।
 
 

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उमर फैयाज़ के नाम पर स्थापित स्कूल
 

अनडॉन्टेड: लेफ्टिनेंट उमर फैयाज ऑफ कश्मीर
 

लेखिका भावना अरोड़ा ने शहीद लेफ्टिनेंट उमर फैयाज के ऊपर “अनडॉन्टेड: लेफ्टिनेंट उमर फैयाज ऑफ कश्मीर” किताब लिखी है। इस किताब का पिछले साल 2019 में विमोचन हुआ था।
कश्मीरी युवा उमर फैयाज के आर्मी जॉइन करने को लेकर लेखिका भावना बताती है कि युवा उमर एक दिन स्कूल से लौट रहे थे, उस दिन वह वह आर्मी चेक पोस्ट पर तलाशी देने से इनकार कर देते है। सैनिक के बार-बार कहने के बावजूद उमर ने तलाशी देने से मना कर दिया, जिसके बाद ड्यूटी पर तैनात सैनिक ने उमर को थप्पड़ मारकर सेना के शिविर में लेकर गया। जहां वहां उसकी मुलाकात एक दयालु और सज्जन अधिकारी से हुई। जो बहुत सम्मान के साथ उमर से बात करता है और समझाता है कि चारों  तरफ आतंकवादियों घूम रहे है , इसलिए तलाशी लेना जरूरी है। ऑफिसर की बात सुनने के बाद उमर अपने बैग की जांच के लिए राजी हो जाता है। यह घटना युवा उमर के मन में एक गहरी छाप छोड़ती है। वह अधिकारी से कहता है कि मैं आपके जैसा बनना चाहता हूं। उमर जाते वक्त अधिकारी की नेम प्लेट देखता है जिस पर अधिकारी का नाम अता हसनैन लिखा था।
 

 सेना ने लिया उमर की शहादत का बदला
 
 
लेखिका भावना ने बताया कि जब किताब लिखना शुरू किया था, तब पता नहीं था कि यह कहानी किस बिंदू पर खत्म होगी। उन्होंने कहा कि 1 साल तक किताब का समापन किस बिंदू पर होगा, मैं यह खोजती थी। लेकिन मुझे किताब का अंत, निष्कर्ष सब 1 अप्रैल 2018 की रात को मिला था। जब राष्ट्रीय राइफल्स ने एक आतंकविरोधी कार्यवाही में शहीद ले. उमर फैयाज़ की हत्या का बदला लेते हुए 10 आतंकियों को मार गिराया था, जिसमें ले. उमर की हत्या करने वाले दो आतंकी भी शामिल थे। भावना ने कहा कि मैंने उस रात उमर की बहन से फोन पर बात की और हम दोनों खूब देर तक रोये थे। तब लगा कि मुझे कहानी का निष्कर्ष मिल गया है। उन्होंने आगे कहा कि असली निष्कर्ष तब होगा जब मेरे जैसे किसी लेखक को खून की स्याही में अपनी कलम डुबोकर ऐसी कहानी न लिखनी पड़े और कश्मीर सहित पूरे भारत में अमन कायम हो।