जानिए दो बार महावीर चक्र जीतने वाले कर्नल चेवांग रिंचेन की वीरगाथा

01 Aug 2020 17:12:00

ladakh_1  H x W


पाकिस्तान के कबायली लड़ाकों ने मई 1948 मई के समय कारगिल पर कब्जा कर लिया था। लेकिन उस वक्त उन्होंने यह सोचकर लेह को छोड़ दिया था कि यहां आसानी से कब्जा किया जा सकता है। क्योंकि उस समय वहां इंडियन आर्मी की मौजूदगी का निशान नहीं था। हालांकि उस वक्त जम्मू-कश्मीर स्टेट फोर्स के 33 जवान वहां पहले से डटे हुये थे। इसके बाद वहां पहुंचे लेफ्टिनेंट कर्नल पृथ्वी चंद  के सामने बौद्ध मठों और शांतिप्रिय लद्दाख को बचाने की चुनौती थी। लेफ्टिनेंट कर्नल पृथ्वी चंद ने 13 मई, 1948 के दिन लेह में तिरंगा फहरा दिया। उन्होंने पाकिस्तानी कबायली लड़ाकों का सामना करने के लिए स्थानीय लोगों से मदद मांगी। उनका साथ देने के लिए सबसे पहले 17 साल का एक स्कूली लड़का आगे आया, जिसके बाद 28 और लोग भी सेना की मदद के लिए आगे आये। उस 17 साल के स्कूली लड़के का नाम चेवांग रिंचेन था। सेना की तरफ से सभी लोगों को बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग दी गई और इनकी टीम का नाम रखा गया नुब्रा गार्ड्स। नुब्रा गार्ड्स का नेतृत्व उस 17 साल के लड़के के ही हाथ में था। नुब्रा गार्ड्स ने 1947-48 की उस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुये असंभव को संभव करके दिखाया था।  इन्होंने कबायली लड़ाकों को तबतक रोककर रखा था जब तक सेना की तरफ से और अधिक सहायता नहीं आ गई थी।

 
भारतीय सेना ने बाद में 17 साल के उस लड़के चेवांग रिंचेन के साहस और नेतृत्व क्षमता को देखते हुये उसे इंडियन आर्मी में कमिशंड ऑफिसर बनाया था। साथ ही उनकी वीरता और साहस को देखते हुये उन्हें दूसरे सबसे सैन्य सम्मान महावीर चक्र से भी सम्मानित किया गया था। चेवांग महावीर चक्र से सम्मानित होने वाले सबसे कम उम्र के अवॉर्डी हैं।

 

सितंबर, 1948 में उनकी सहायता से इंडियन आर्मी ने 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित लामा हाउस पर कब्जा कर लिया था। दिसंबर 1948 में भी बैगाडंगडो के पास ऊंची पहाड़ी पर भयंकर हमला कर उसे कब्जे में कर लिया था।  अंतिम लड़ाई 21 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित तुक्कर हिल पर थी।  इस हिल की ऊंची-ऊंची पहाड़ियां बर्फ से ढंकी थीं और आधी पलटन की हालत भयंकर सर्दी के कारण खराब थी। लेकिन चेवांग के शानदार नेतृत्व में आर्मी इस पहाड़ी पर भी कब्जा करने में सफल रही थी। इसके बाद 1971 की लड़ाई में भी रिंचेन और लद्दाख स्काउट्स के उनके बैंड ने पाकिस्तान के कब्जे से 804 वर्ग किलोमीटर का एरिया आजाद करा लिया था। इसमें तुर्तुक गांव भी शामिल था, जो कि सामरिक रूप से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। रिंचेन के नेतृत्व में बिना एक भी जवान जान गंवाये ये ऑपरेशन पूरा किया था।

 

1971 में दूसरा महावीर चक्र

 
1971 की लड़ाई में उनकी वीरता को देखते हुये उन्हें एक बार फिर महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। एक मिलिट्री कमांडर के रूप में कर्नल रिंचेन हमेशा दुश्मनों को चौंकाने में विश्वास करते थे। लद्दाख का स्थानीय होने के कारण उन्हें पता होता था कि ऊंची पहाड़ियों पर कड़ाके की ठंड में किस तरह से ऑपरेशन को अंजाम दिया जा सकता है। वह हमेशा लड़ाई में स्थानीय लोगों की मदद लेते थे।  वे मानते थे कि उनके जवानों की जिंदगी स्थानीय लोगों पर टिकी है। दो बार महावीर चक्र से सम्मानित होने वाले रिंचेन 1984 में सेना से रिटायर हुये थे और 1 जुलाई, 1997 को उनका निधन हो गया था।  इंडियन आर्मी ने हाल ही में कर्नल चेवांग रिंचेन के घर को हेरिटेज अबोड बनाया गया है और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया गया है। कर्नल चेवांग को ‘लॉयन ऑफ लद्दाख’ भी कहा जाता है।


कर्नल चेवांग रिंचेन ब्रिज


 
बीते साल 21 अक्टूबर, 2019 के दिन रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने लद्दाख में एक पुल का उद्घाटन किया था। ये पुल श्योक नदी पर बना है, जो चीन की सीमा यानी ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी)’ से 45 किलोमीटर की दूरी पर है। ये पुल चीनी सीमा से लगे दरबुक इलाके को दौलत बेग ओल्डी से जोड़ेगी। बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन द्वारा 14,650 फीट की ऊंचाई पर बना ये पुल भारत के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। इसके बनने से श्योक नदी के आसपास के गांवों और बॉर्डर तक पहुंचने में आसानी होगी। इस पुल का नाम कर्नल चेवांग रिंचेन ब्रिज रखा गया है।
Powered By Sangraha 9.0