जानिए किस विदेशी महिला ने परमवीर चक्र का डिजाइन किया था तैयार
   01-सितंबर-2020
 
परमवीर चक्र_1  
 
- गिरिजांश गोपालन

परमवीर चक्र सैन्य सेवा तथा उससे जुड़े हुये लोगों को दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान है। यह पदक शत्रु के सामने अद्वितीय साहस तथा परम शूरता का परिचय देने पर दिया जाता है। इस वीरता सम्मान पदक की शुरूआत 26 जनवरी 1950 से हुई थी, यह पदक मरणोपरांत भी दिया जाता है। पदक से जुड़ें इन सभी तथ्यों से बहुत लोग वाकिफ होंगे। लेकिन इस पदक का डिजाइन तैयार करने वाली विदेशी महिला की कहानी से बहुत कम ही लोग परिचित होंगे।


जानिए किसने तैयार किया परमवीर चक्र का डिजाइन
 

परमवीर चक्र का डिजाइन मूलरूप से स्विजरलैंड की महिला इवा योन्ने लिण्डा ने तैयार किया था। भारतीय सभ्यता से प्रभावित इवा ने भारतीय सैन्य अधिकारी से प्रेम विवाह किया था। इस विवाह के बाद उन्होंने हिंदू धर्म ग्रहण किया और अपना नाम इवा योन्ने लिण्डा से बदलकर सावित्री बाई खानोलकर रखा था।


जीवन परिचय
 

इवा (सावित्री बाई खानोलकर) का जन्म  20 जुलाई 1913 में स्विटजरलैंड के न्यूचैटेल शहर में हुआ था। इवा के पिता आंद्रे डी मैडे मूल रूप से हंगरी और मां मार्टे हेंट्जेल रूसी मूल की नागरिक थी। इवा के पिता जिनेवा विश्विविद्यालय में समाजशास्त्रर के प्रोफेसर होने के साथ लीग ऑफ़ नेशन्स में पुस्तकालयाध्यक्ष भी थे। वहीं उनकी मां मार्टे हेंट्जेल इंस्टीट्यूट जीन-जैक्स रूसौ में पढ़ाती थीं। लेकिन दुख की बात थी कि इवा के जन्म के साथ ही उनकी मां का निधन हो गया था। जिसके बाद  इवा का पालन-पोषण उनके पिता ने किया था।
भारत के प्रति आकर्षण

इवा ने अपनी पढ़ाई रिवियेरा के एक स्कू्ल से की थी। मां की मृत्युे के बाद अकेली पड़ी इवा अक्सिर स्कूनल के बाद अपने पिता की लाइब्रेरी में चली जाती थी। जहां पर उनका ज्याुदातर समय किताबों के बीच व्यअतीत होता था। इसी दौरान  इवा को लाइब्रेरी में भारत की संस्कृति पर आधारित बहुत सी किताबें पढ़ी। भारत के पौराणिक इतिहास और संस्कृ ति पर आधारित पुस्तभक पढ़ने के बाद इवा का मन भारतीयता की तरफ आकर्षित होने लगा था।  इसी आकर्षण का असर था कि वह लाइब्रेरी में मौजूद भारतीय संस्कृआति से जुड़ी सभी किताबें पढ़ चुकीं थी।
 


रिवियेरा के समुद्र तट पर हुई कैप्टडन विक्रम खानोलकर से मुलाकात
 
 

इवा एक दिन अपने पिता के साथ रिवियेरा के समुद्रतट पर टहल रही थी। इसी दौरान उनकी मुलाकात ब्रिटेन के सेन्डहर्स्ट मिलिटरी कॉलेज में पढ़ने वाले भारतीय युवकों के एक समूह से हुई थी। भारत के प्रति आकर्षण के चलते कुछ ही पलों में इवा भारतीय युवकों के साथ घुल-मिल गई थी। भारतीय युवकों के इस समूह में विक्रम खानोलकर भी थे। पहली मुलाकात में इवा ने विक्रम खानोलकर से भारतीय संस्कृसति के बारे में लंबी चर्चा की थी। इस मुलाकात के बाद विक्रम खानोलकर ने अपना पता इवा को देकर सैंडहर्स्टी वापस चले गये थे। भारतीय संस्कृखति के प्रति आकर्षित इवा अब अक्संर विक्रम खानोलकर से पत्र लिखकर संवाद करने लगी थी। पत्रों के जरिए होने वाला यह संवाद कुछ समय बाद गहरी दोस्तील में बदल गया और दोनों के मन में एक दूसरे के लिए आकर्षण बढ़ने लगा। इसी बीच विक्रम खानोलकर की पढ़ाई पूरी हुई और वह भारत लौट आये थे। भारत लौटने के बाद विक्रम खानोलकर ने भारतीय सेना की 5/11सिख बटालियन को ज्वाभइन किया। विक्रम खानोलकर की बतौर सैन्य  अधिकारी पहली पोस्टिंग औरंगाबाद में हुई थी। इवा और विक्रम खानोलकर के बीच पत्राचार अभी भी जारी था। इवा ने अब विक्रम खानोलकर से शादी कर पूरी तरह से भारतीय होने का मन पक्काच कर लिया था। यही इरादा लेकर एक दिन इवा भारत आ गई और उन्होंने अपना निर्णय विक्रम खानोलकर को बता दिया। विक्रम खानोलकर इस रिश्तेर के लिए तैयार थे, लेकिन मराठी संस्कृ ति को मानने वाले उनके परिजनों ने इस रिश्ते‍ को लेकर अपनी सहमति नहीं दी। थोड़ी मान-मनौव्लस के बाद आखिरकार विक्रम खानोलकर के परिजन मान गये थे।  1932 में इवा और विक्रम खानोलकर की मराठी रीति रिवाज के साथ शादी हो गई। शादी के बाद इवा ने हिंदू धर्म ग्रहण कर लिया और उनका नाम इवा से बदलकर सावित्री बाई खानोलकर हो गया था। इवा ने अपने नाम के साथ अपने तौर तरीके, पहनावा और खान-पान को भी पूरी तरह से भारतीय कर लिया था। उन्होंरने महाराष्ट्र  की संस्कृाति से जुड़ी नौ गज की साड़ी पहनना शुरू कर दी थी। उनका भोजन पूरी तरह से शाकाहारी हो गया था। इतना ही नहीं  महज एक से दो वर्ष के अंतराल में सावित्री बाई शुद्ध मराठी और हिन्दी भाषा बोलने लगी थी।

 

परमवीर चक्र_1  


पटना में सावित्री बाई ने लिया वेदों और उपनिषद का ज्ञान
 
 

कैप्टमन विक्रम का प्रमोशन मेजर के तौर पर हो चुका था। प्रमोशन के साथ उनका तबादला पटना हो गया था। पटना पहुंचने के बाद सावित्री बाई ने पटना विश्वीविद्यालय से संस्कृत नाटक, वेद, उपनिषद और हिन्दू धर्म का अध्ययन किया था। इन विषयों पर पारांगत् हो चुकी सावित्री बाई ने अब स्वामी रामकृष्ण मिशन में प्रवचन देना भी शुरू कर दिया था। अपने इस अध्याचत्मिक ज्ञान के साथ, सावित्री बाई ने अपनी चित्रकला और स्केचचिंग की कला को अच्छीा तरह से निखार लिया था। पटना प्रवास के दौरान उन्हों ने भारत के पौराणिक प्रसंगों पर कई चित्र भी बनाये थे। भारतीय संस्कृ ति, अध्याबत्मन और चित्रकला में खुद को पारांगत बनाने के बावजूद सावित्री बाई को अपनी जिंदगी में एक कमी खल रही थी, यह कमी थी संगीत और नृत्य  की। अपनी इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंसने पंडित रवि शंकर के बड़े भाई पंडित उदय शंकर की शिष्य ता ग्रहण कर ली। सावित्री बाई ने कुछ समय में शास्त्री य नृत्यड की विभिन्नू विधाओं में खुद को पारंगत बना लिया था। भारतीय संस्कृवति, अध्याचत्म , चित्रकला और नृत्य  में पारांगत होने के बाद सावित्री देवी एक भारतीय से अधिक भारतीय बन चुकी थी। सभी विधाओं में पारांगत होने के बाद उन्होंीने सेंट्स ऑफ़ महाराष्ट्र और संस्कृत डिक्शनरी ऑफ़ नेम्स नामक दो पुस्तकें भी लिखी थी।
 


मेजर जनरल अट्टल ने दी पदकों के डिजाइन करने की तैयारी
 
 

1947 में हुये भारत-पाक युद्ध में अदम्य  साहस और अभूतपूर्व युद्ध कौशल दिखाने वाले वीरों को सम्मानित करने के लिए भारतीय सेना नये पदक तैयार करने पर काम कर रही थी। पदक तैयार करने की जिम्मेंदारी मेजर जनरल हीरा लाल अट्टल को दी गई थी। अब तक मेजर जनरल अट्टल ने पदकों के नाम पसन्द कर लिये थे। इन पदकों को परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र का नाम दिया गया था। इसी दौरान, मेजर जनरल अट्टल की मुलाकात सावित्री बाई से हुई थी।  इस मुलाकात के दौरान सावित्री बाई की भारतीय संस्कृाति पर समझ, पौराणिक प्रसंग और अध्याहत्मिक ज्ञान ने मेजर जनरल अट्टल को खासा प्रभावित किया था। सावित्री बाई की चित्रकला देखने के बाद मेजर जनरल अट्टल ने मन ही मन ठान लिया था कि वह पदक की डिजाइन सावित्री बाई से ही तैयार कराएंगे। एक दिन मेजर जनरल अट्टल ने यह प्रस्तासव सावित्री बाई के समक्ष रख दिया, जिसे उन्होंएने सहर्ष स्वीेकार कर लिया था।  सावित्री बाई ने कुछ दिनों की मेहनत के बाद सभी पदों का डिजाइन तैयार कर मेजर जनरल अट्टल को भेज दिया था।



ऐसे तैयार हुआ था परमवीर चक्र का डिजाइन 
 
 

परमवीर चक्र का मूल स्वमरूप के तौर पर 3.5 सेमी व्याास वाले कांस्य  धातु की गोलकार कृति तैयार की गई थी। जिसमें सावित्री बाई ने भारत की आदिकाल से अब तक की वीरता, त्या‍ग और शांति के सूचक को परमवीर चक्र में शामिल किया था। इसमें इंद्र के वज्र को दर्शाकर महर्षि दधीचि के त्याेग को दर्शाया गया है। परमवीर चक्र में चारों तरफ वज्र के चार चिह्न बनाए गये हैं। पदक के बीच में अशोक की लाट से लिए गए राष्ट्र चिह्न चक्र को जगह दी गई है। पदक के दूसरी ओर कमल का चिह्न है, जिसमें हिंदी और अंग्रेजी में परमवीर चक्र लिखा गया है।
 


1947 में हुये भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद सावित्री बाई ने अपना जीवन युद्ध में विस्थापित सैनिकों की सेवा में समर्पित कर दिया था। लेकिन 1952 में मेजर जनरल विक्रम खानोलकर के देहांत हो जाने के बाद सावित्री बाई ने अपना जीवन अध्यात्म की तरफ़ मोड़ लिया और दार्जिलिंग के राम कृष्ण मिशन में चली गयी थी। अपने जीवन का अन्तिम समय उन्होंऔने अपनी पुत्री मृणालिनी के साथ गुजारे थे। 26 नवम्बर 1990 को उनका देहांत हुआ था।