सिंधु जल समझौते के 60 साल; भारत की रियायत, पाकिस्तान के धोखे और नये भारत की नयी रणनीति की कहानी
भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल बटवारें को लेकर हुये समझौते को आज 60 साल पूरे हो गये हैं। आज से ठीक 60 साल पहले 1960 में दोनों देशों के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। 19 सितम्बर 1960 के दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के सैनिक शासक फील्ड मार्शल अयूब खान ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किया था। सिंधु जल समझौते के कारण ही आजतक पाकिस्तान को पानी मिल रहा है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने पंजाब में बहने वाली रावी, सतलुज और व्यास नदियों के अतिरिक्त पानी को पाकिस्तान में जाने से रोकने का काम शुरू कर दिया है।
सिंधु जल समझौता
1947 में देश के विभाजन के समय सिंधु और उसकी सहायक नदियों के मुख्य हिस्सा भारत में आ गया था। जिसके बाद 1 अप्रैल 1948 को भारतीय पंजाब ने पाकिस्तान को जाने वाली नहरों का पानी रोक दिया ताकि पूर्वी पंजाब के असिंचित क्षेत्रों के लिये सिंचाई व्यवस्था की जा सके। इससे पाकिस्तानी पंजाब क्षेत्र में पानी की भयानक तंगी के हालात पैदा हो गये थे। इसे देखते हुये 30 अप्रैल 1948 को पाकिस्तानी पंजाब को पानी बहाल कर दिया था। 4 मई 1948 को इस मुद्दे पर बातचीत के लिये एक बैठक बुलाई गई थी। इस सम्मेलन में एक समझौता हुआ, जिसमें पाकिस्तान ने भारतीय पंजाब के असिंचित क्षेत्रों के विकास के लिये पानी की जरूरत की बात स्वीकार की और पाकिस्तानी पंजाब के लिये पानी धीरे-धीरे कम करने पर सहमति जताई। लेकिन यह समाधान स्थायी साबित नहीं हो सका। पाकिस्तान ने मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में ले जाने का सुझाव दिया, जिसको भारत ने अस्वीकार कर दिया। 1951 में प्रधानमंत्री नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया। लिलियंथल बाद में पाकिस्तान भी गये और वहां से वापस लौटकर अमेरिका चले गये। अमेरिका जाकर उन्होंने भारत-पाकिस्तान जल विवाद के ऊपर एक लेख लिखा, और विश्व बैंक से इस मामले में दखल देने के लिए अनुरोध किया। जिसके बाद विश्व बैंक अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करना स्वीकार किया। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बैठकों का सिलसिला शुरु हो गया। हालांकि उस वक्त दोनों देशों ने यह मध्यस्थता तीन सिद्धान्तों के आधार पर स्वीकार किया था।
1. सिंधु जल तंत्र के जल संसाधन वर्तमान और भविष्य की दोनों देशों की जरूरतों के लिये पर्याप्त हैं।
2. पूरे सिंधु जल तंत्र क्षेत्र को एक इकाई मानकर, सहकारिता पूर्वक इन जल संसाधनों को इस तरह विकसित किया जाये ताकि पूरे सिंधु जल तंत्र क्षेत्र का आर्थिक विकास आगे बढ़ाया जा सके।
3. सिंधु जल तंत्र क्षेत्र के जल संसाधनों के विकास और उपयोग की समस्या को राजनीतिक धरातल से अलग हटकर व्यावहारिक धरातल पर हल किया जाये। इसमें पिछली बातचीतों और राजनैतिक मुद्दों को दरकिनार रखा जाये।
इस दौरान बैठकों का दौर करीब 1 दशक तक चला और आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
सिंधु जल समझौते की प्रमुख बातें
• इस संधि का अनुच्छेद 1 संधि में प्रयुक्त शब्दों की परिभाषा के बारे में बताता है। उदाहरण के लिए "सिंधु", "झेलम," "चिनाब," "रावी," "व्यास " एवं "सतलुज" नदियों, उनको जोड़ने वाले झीलों और इनकी सभी सहायक नदियों के नाम का मतलब।
• समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी कुछ अपवादों को छोड़कर भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के तहत इन नदियों के पानी का कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया है, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी आदि।
• समझौते के अनुसार भारत निम्न उपयोगों को छोड़कर पश्चिमी नदियों के जल प्रवाह को नहीं रोकेगा।
• घरेलू उपयोग
• अप्रयुक्त जल प्रवाह का उपयोग
• कृषि के लिए उपयोग
• बिजली के लिए उपयोग
• भारत को विभिन्न प्रयोजनों के लिए पश्चिमी नदियों के 3.6 एम.ए.एफ. पानी के भंडारण हेतु निर्माण करने की अनुमति दी गई है।
• भारत को 1 अप्रैल, 1960 से कुल सिंचित फसल क्षेत्र (आईसीए) के अलावा 7,01,000 एकड़ में कृषि कार्य करने की अनुमति दी गई है। लेकिन इस 7,01,000 एकड़ अतिरिक्त सिंचित फसल क्षेत्र (आईसीए) में से केवल 2,70,000 एकड़ को ही विकसित किया जा सका है (यानी 1 अप्रैल, 1960 के समझौते के अनुसार कुल आईसीए 9,12,477 एकड़) और 0.5 एम.ए.एफ. पानी हर साल से वहां जारी किया जाता है । 2011-12 के दौरान कुल सिंचित फसल क्षेत्र (आईसीए) 7,84,955 एकड़ थी।
• इस संधि के तहत भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने सिंधु जल आयुक्त के रूप में एक स्थायी पद का गठन किया है। इसके अलावा दोनों देशों ने एक स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) का गठन किया है,जो संधि के कार्यान्वयन के लिए नीतियां बनाता है। यह आयोग प्रत्येक वर्ष अपनी बैठकें आयोजित करता है और दोनों देशों के सरकारों को अपने काम की रिपोर्ट देता है।
• इस समझौते के प्रावधानों के अनुसार दोनों पक्षों को नदी के प्रवाह से संबंधित जानकारी और हर साल कृषि उपयोग से संबंधित जानकारी का आदान प्रदान करना आवश्यक हैं।
• इस समझौते के प्रावधानों के अनुसार भारत का दायित्व है कि वह जल के भंडारण और जल विद्युत परियोजनाओं की जानकारी पाकिस्तान को उपलब्ध कराये।
• इस समझौते के प्रावधानों के अनुसार भारत का दायित्व है कि वह सद्भावना के संकेत के रूप में हर साल 1 जुलाई से 10 अक्टूबर के बीच पाकिस्तान को बाढ़ से संबंधित आंकड़ो की जानकारी प्रदान करे जिससे पाकिस्तान को अग्रिम बाढ़ राहत उपायों को शुरू करने में सहायता मिल सके।
• इस समझौते के तहत उत्पन्न होने वाले मतभेदों और विवादों के निपटारे के लिए दोनों आयुक्त आपस में चर्चा करते हैं। लेकिन सही निर्णय ना हो पाने की स्थिति में तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ आर्ब्रिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया है।
बता दें कि सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये इलाका पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6 प्रतिशत) में है। एक आंकड़े के मुताबिक करीब 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं।
हर साल मिलते हैं दोनों देशों के आयुक्त
सिंधु जल समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच एक स्थाई आयोग का गठन किया गया था। बैठक में सिंधु आयोग के दोनों तरफ के आयुक्त इस समझौते पर अपनी-अपनी सरकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। समझौते के तहत दोनों आयुक्तों को साल में एक बार बैठक करना होता है। बता दें कि इस साल मार्च महीने में सिंधु आयोग के आयुक्तों की बैठक होनी थी, लेकिन कोरोना वायरस के कारण भारत ने इसे टालने का प्रस्ताव रखा।
पाकिस्तान भारतीय परियोजनाओं का करता है विरोध
पाकिस्तान भारत के 330 मेगावॉट के किशनगंगा पनबिजली परियोजना और 850 मेगावॉट के रातले जलविद्युत परियोजना पर आपत्ति जताता है। जबकि भारत का कहना है कि हम विश्व बैंक के नियमों के अनुसार जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए इन परियोजनाओं को संचालित कर रहे हैं।
पाकिस्तान के खिलाफ भारत का एक्शन प्लान
बीते साल केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा था कि केंद्र सरकार ने पंजाब में बहने वाली रावी, सतलुज और व्यास नदियों के अतिरिक्त पानी को पाकिस्तान में जाने से रोकने का काम शुरू कर दिया है। सिंधु जल संधि के परे भारत के पानी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान की तरफ जाता है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि जल्दी ही उस पानी को रोका जाये, जिसके बाद उस पानी का इस्तेमाल भारत किसानों और बिजली पैदा करने के लिए कर सके। इसी के साथ अब धीरे-धीरे मोदी सरकार पाकिस्तान के खिलाफ शिकंजा कसना शुरू कर दिया है।
पाकिस्तान के लिए क्यों जरूरी है ये समझौता
सिंधु दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। इसकी लंबाई 3000 किलोमीटर से अधिक है यानी ये गंगा नदी से भी बड़ी नदी है। सहायक नदियां चिनाब, झेलम, सतलज, राबी और ब्यास के साथ इसका संगम पाकिस्तान में होता है। पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां आती हैं। इसके अलावा पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों के पानी पर निर्भर हैं। अगर भारत पानी रोक देता है तो पाकिस्तान में पानी संकट पैदा हो जायेगा। खेती और जल विद्युत बुरी तरह प्रभावित होंगे। इसीलिए पाकिस्तान हमेशा चाहता है कि सिंधु समझौता दोनों देशों के बीच कायम रहे।
सिंधु दरिया की कहानी
सिंधु अर्थात् सिंध दरिया के बारे कहा जाता है कि वेदों में पवित्र गंगा का उल्लेख मात्र दो बार हुआ है। जबकि जिस दरिया का उल्लेख 30 बार हुआ है वह सिंधु दरिया है। रामायण में इसे महानदी के रुप में चित्रित किया गया है। जबकि महाभारत में भी गंगा और सरस्वती नदियों के साथ साथ सिंधु दरिया का उल्लेख कई बार होता है। इतना ही नहीं सिंध दरिया पांच हजार साल पुरानी एक सभ्यदता से भी परिचय करवाता है। इतिहास में हड़प्पा तथा महनजोदाड़ो सभ्यरताओं के साथ-साथ सिंधु सभ्यता का नाम दर्ज है। सिंधु दरिया विश्व के सबसे लंबे गिने जाने वाले दरियाओं में एक माना जाता है। इसकी लंबाई 2900 किमी है। दक्षिण-पश्चिम तिब्बत से इसका उदगम होता है जो 16000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह लद्दाख में लेह के पास से भारत में प्रवेश करता है। 2900 किमी लंबी अपनी यात्रा के दौरान कुल साढ़े चार लाख वर्ग मील क्षेत्रफल को घेरता है, जिसमें पौने दो लाख वर्ग मील तो हिमालय के पहाड़ों में ही समा जाता है। लेह में प्रवेश के बाद 11 किमी की दूरी तय करने के पश्चात इसमें पहला मिलन जंस्कार का होता है। यह दरिया जंस्कार घाटी को पार करने के बाद बटालिक के रास्ते से होता हुआ पाकिस्तान में जाकर मिलता है। पाकिस्तान की यात्रा आधी कर लेने के उपरांत इसमें उन दरियाओं का मिलन आरंभ हो जाता है जो भारत से पाकिस्तान की ओर बहते हैं। यह हैं जेहलम, चिनाब, रावी, व्यास तथा सतलुज। सिंधु दरिया का उल्लेख ऋग वेद में भी मिलता है।