1948 पाकिस्तानी हमला ; ज़ोजिला की लड़ाई में उत्तम युद्ध कौशल का परिचय देने वाले हवलदार अमृत गमरे और लांस नायक धरम सिंह थापा की शौर्य गाथा
   15-नवंबर-2022
 
Bravery story of Havildar Amrit Gamre and Lance Naik Dharam Singh Thapa
 
 
भारतीय सेना ने यूँ तो कई ऐतिहासिक लड़ाईयां लड़ी हैं और हर बार अपनी वीरता से दुश्मन को घुटने टेकने पर मजबूर किया है। किंतुं उन सभी युद्धों में से एक युद्ध है जोजिला पास का युद्ध, जिसकी चर्चा कम होती है। लेकिन ये लड़ाई सामरिक रूप से इतनी अहम थी कि अगर भारतीय सेना जोजिला पास की लड़ाई हार जाती तो लेह-लद्दाख आज पाकिस्तान का हिस्सा हो सकते थे।
 
 
साल 1948 में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा करने की नियत से हमला किया और इस क्षेत्र पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। भारतीय सेना के जवाबी कार्रवाई करने से पहले ही पाकिस्तान की सेना ने गिलगित बाल्टिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने कारगिल, द्रास और बाद में जोजिला पास पर भी कब्जा कर लिया। भारतीय सेना ने ये तय किया की गुमरी नाला के उत्तर की ओर, पिन्द्रास के पहले की चोटी पर कब्ज़ा किया जाना चाहिए और इस ऑपरेशन को नाम दिया गया ऑपरेशन बाइसन। इस चोटी पर कब्ज़ा करने की ज़िम्मेदारी दी गयी गोरखा राइफल्स को, जिसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत सिंह पठानिया कर रहे थे।
 
ज़ोजिला की लड़ाई
 
इस कड़ी में हम बात करेंगे ज़ोजिला की लड़ाई में अपने असीम शौर्य और उत्तम युद्ध कौशल का परिचय देने वाले हवलदार अमृत गमरे, लांस नायक हनुमान राम और लांस नायक धरम सिंह थापा के उत्तम युद्ध कौशल की। अमृत गमरे बतौर हवलदार महार रेजिमेंट में तैनात थे. 2 नवंबर, 1948 को जब जोजिला ला के माचोई पर दुश्मनों ने हमला किया गया उस दौरान हवलदार अमृत गमरे को मशीन गन सेक्शन की कमान सौंपी गई। अमृत गमरे पर जिम्मेदारी थी कि वो दुश्मनों को उलझाएँ रखें ताकि उनकी बटालियन आगे बढ़ कर दुश्मनों को ढेर कर सकें।
 
 
ब्राउन हिल को कराया मुक्त 
 
 
लिहाजा उन्होंने पाकिस्तानी सेना  को इतनी प्रभावी ढंग से घेरा कि कंपनी बिना किसी बाधा के अपनी लक्ष्य की ओर बढ़ी। परन्तु इसी दौरान अमृत गमरे की गन पोजिशन दुश्मन की भारी गोलाबारी की चपेट में आ गई। इस हमले में हवलदार अमृत गमरे घायल हो गए थे किन्तु घायल होने के बावजूद उन्हें उनके कर्तव्य पथ से कोई नहीं डिगा सकता था। हवलदार गमरे ने बहादुरी का परिचय देते हुए दुश्मनों पर गोलीबारी जारी रखी जिसका फायदा उठा कर उनकी बटालियन 14/15 नवंबर, 1948 की रात पिंड्रास में ब्राउन हिल पर हमला कर दिया और उसे दुश्मनों के कब्जे से मुक्त करा लिया। इस लड़ाई में अमृत गमरे ने जिस बहादुरी, अशीम शौर्य और उत्तम युद्ध कौशल का परिचय दिया उसके लिए उन्हें 26 जनवरी 1950 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
  
 
लांस नायक धर्मसिंह थापा
 
14/15 नवंबर, 1948 की रात लांस नायक धरमसिंह थापा 5 गोरखा रायफल्स कंपनी की एक टुकड़ी को लीड कर रहे थे। जिसने जम्मू कश्मीर में पड़ने वाली अनंत फीचर के कुमार स्लोप को मुक्त कराया था। 14/15 नवंबर की वो चांदनी रात थी और आगे बढ़ने वाले रास्ते पर 12 स्वचालित हथियार लगे हुए थे। दुश्मनों की भारी गोलीबारी के बीच भी बहादुर धर्मसिंह थापा अपने प्लाटून को लीड करते हुए लगातार आगे बढ़ते रहे। दुश्मनों के हमले के बीच आगे बढ़ते हुए लांस नायक थापा ढलान के आधे रस्ते पर पहुँच गए, किन्तु तब तक दुश्मनों की गोलीबारी बहुत ज्यादा तेज हो गई थी।
 
 
दुश्मनों को बंकर छोड़ कर भागने पर किया मजबूर 
 
 
धरम सिंह थापा ने हमलों के बीच अपने लिए एक कवर फायर अरेंज किया और दुश्मनों के बंकर पर हमला बोला। थापा के इस हमले का जवाब दिए बिना ही पाकिस्तानी सैनिक अपना बंकर छोड़ कर भाग निकलें। दुश्मनों के बंकर पर हमला करने के बाद जब लांस नायक थापा आगे बढ़ते हुए कुमार फीचर के ऊपर पहुंचे तो वो पूरी तरह से दुश्मनों की फायर रेंज में आ गए। तभी उसी दौरान सेना की एक और प्लाटून ने कुमार फीचर के दूसरी साइड से दुश्मनों पर हमला बोल दिया किन्तु वो भी दुश्मनों के जवाबी हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए।
 
 
वीर चक्र से किया गया सम्मानित
 
 
लिहाजा दुश्मनों की गोलीबारी में घायल होने के बावजूद लांस नायक थापा ने दुश्मनों के ऊपर बेहद नजदीक से गोलीबारी की जिसने दुश्मनों को भागने पर मजबूर कर दिया। लांस नायक धरमसिंह थापा के इस जोरदार हमले ने 4 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। लांस नायक धरम सिंह थापा के इस अनुकरणीय बलिदान और शौर्य के कारण कुमार फीचर को पाकिस्तानी सैनिकों के कब्जे से मुक्त कराने में सफलता मिली।  लांस नायक धरमसिंह थापा के अशीम शौर्य और उत्तम युद्ध कौशल के लिए उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया।