Battle Of Rezang La 1962 : मेजर शैतान सिंह की शौर्यगाथा ; जिनके नेतृत्व में 120 सैनिकों ने 1300 चीनी सैनिकों को उतारा था मौत के घाट
18-नवंबर-2022
18 नवंबर 1962 :
रेजांग ला के चुसुल सेक्टर में करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर तेज चलती बर्फीली हवाएं और शून्य से कम तापमान में सीमा की सुरक्षा में तैनात, कुमाऊं रेजीमेंट की 13वीं बटालियन के वीर जवानों ने जो पराक्रम दिखाया वो इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में अंकित हो गया। दरअसल यह कहानी है रेजांग ला की लड़ाई में परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की उस शौर्य गाथा की, जिसमें उन्होंने अपनी टुकड़ी के महज 120 जवानों के साथ करीब 3000-5000 चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया था।
इस युद्ध में मेजर शैतान सिंह की टुकड़ी के 114 सैनिकों ने चीनी सेना के 1300 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। हालाँकि सन 62 के युद्ध में भारत को असफलता जरुर मिली थी, किन्तु चीन को भी यह मानने पर मजबूर होना पडा था कि उनकी सेना को सबसे ज्यादा नुकसान रेजांग ला में हुआ है।
चीन के साथ युद्ध में मेजर शैतान सिंह की टुकड़ी को चीन की सीमा से महज 15 कि. मी. दूर, लद्दाख के चुशुल सेक्टर में, 17,000 फ़ीट की ऊँचाई पर, रेजांग ला में तैनात किया गया था। यहाँ एक हवाई पट्टी थी, जिसकी सुरक्षा का ज़िम्मा 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की इस टुकड़ी को दिया गया था। रेज़ांग ला की गिनती दुनिया के कठिनतम युद्ध क्षेत्रों में की जाती है। लद्दाख को चीन से बचाने के लिए चुशुल को बचाना सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था।
18 नवंबर 1962 : चीन का हमला
18 नवम्बर को तड़के लगभग 5000 चीनी सैनिकों ने अचानक रेजांग ला पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में एक तरफ सामने से सेल्फ लोडिंग राइफल्स, असलाह बारूद से लैस होकर आती दुश्मन सेना की बड़ी टुकड़ी, जिसके मुकाबले के लिए अपने आउटडेटेड थ्री नॉट थ्री बंदूकें और थोड़ा गोला-बारूद के साथ खड़ी थीं मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की चार्ली कंपनी ।
इस विकट ऊँचाई पर तोप का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था, इसलिए ग्रनेड और मशीनगन से ही यह युद्ध लड़ना पड़ा। बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों को आगे बढ़ता देख मेजर शैतान सिंह ने वायरलेस पर अपने सीनियर अधिकारियों से बात की और सैन्य मदद मांगी। किन्तु इतने कम समय में इतनी ऊँचाई पर मदद भेजना संभव नहीं था। लिहाजा सीनियर अफसरों ने कहा कि अभी मदद नहीं पहुंच सकती। आप चौकी छोड़कर पीछे हट जाएँ और अपने साथियों की जान बचाएं। परन्तु मेजर इसके लिए तैयार नहीं हुए और अपने साथियों के साथ रणनीति बनाकर चीनी सैनिकों से भीड़ गए।
120 सैनिकों ने 1300 चीनी सैनिकों को उतारा था मौत के घाट
जब गोलियाँ लगभग समाप्त हो गयीं तो बन्दूक के बोनट से या खाली बन्दूक से वार करके भारतीय सैनकों ने चीनी सैनिकों का मुकाबला करते रहे। ये सारा युद्ध मेजर शैतान सिंह के काबिल नेतृत्व में हो रहा था। वे न सिर्फ खुद भी लड़ रहे थे बल्कि अपने सैनिकों का हौसला भी बढ़ा रहे थे। समुद्रतल से 17,000 फ़ीट की ऊँचाई पर, जहाँ साँस लेना भी मुश्किल होता है, वहाँ, मेजर शैतान सिंह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट तक भाग-भाग कर सैनिकों में जोश भर रहे थे।
मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में उनकी टुकड़ी के महज 120 बहादुर सैनिकों ने चीनी सेना के 1300 सैनिकों को अपने शौर्य और उत्तम युद्ध कौशल से मौत के घाट उतार दिया था। हालाँकि इस युद्ध के अंत तक मेजर शैतान सिंह समेत उनकी टुकड़ी के 114 जवान युद्ध के मैदान में उत्तम युद्ध कौशल का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
बाकी बचे 6 जवानों में से 1 जवान को मेजर शैतान सिंह ने वापस भेज दिया था ताकि वो दुनिया को भारतीय सेना के इस अदम्य साहस और वीरता को बता सके। अन्य 5 जवानों को दुश्मनों द्वारा युद्धबंदी बना लिया गया था, जो अंत में चालाकी दिखाते हुए दुश्मनों के चंगुल से भाग निकले थे।
3 माह बाद बर्फ में मिला मेजर शैतान सिंह का शव
युद्ध समाप्त होने के बाद, फ़रवरी 1963 में बलिदानी मेजर शैतान सिंह का शव उसी स्थान पर मिला जिस स्थान पर वो घायल अवस्था में दुश्मन सेना से मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये थे। शून्य से भी कम तापमान में बर्फ से ढँकी उनकी देह ठण्ड से अकड़ चुकी थी, पर हाथों ने मशीनगन अभी भी कस कर पकड़ रखी थी l मेजर शैतान सिंह ने जिस उत्तम युद्ध कौशल का परिचय देते हुए अपने सेना की टुकड़ी का नेतृत्व किया उसका बखान आज भी गर्व के साथ किया जाता है।
अदम्य युद्ध कौशल के लिए मिला सर्वोच्च सैन्य सम्मान
युद्ध के मैदान में मेजर शैतान सिंह ने जिस तरह से अदम्य साहस, शौर्य, पराक्रम और वीरता का परिचय दिया उसके लिए उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च सैन्य सम्मान परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसके आलावा उनकी बटालियन के पाँच जवानों को वीर चक्र और चार जवानों को सेना मैडल प्रदान किया गया l
आज मेजर शैतान सिंह की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटिशः नमन। माँ भारती की रक्षा के प्रति उनका त्याग और बलिदान युगों युगों तक देशवासियों को प्रेरित करता रहेगा।