पाकिस्तान ने सन 1947 में जम्मू-कश्मीर पर कब्ज़ा करने के इरादे से अचानक हमला कर दिया। इस हमले में पाकिस्तान अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देते हुए जम्मू कश्मीर के बड़े भू-भाग पर कब्ज़ा करने में सफल भी हो गया था। तभी जम्मू कश्मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत के साथ करने का फैसला कर लिया। 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत के साथ हुआ, जिसके बाद भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर की रक्षा के लिए श्रीनगर रवाना हुई। भारतीय सेना अभी पूरी तरह से एक्टिव होती, इससे पहले पाकिस्तानी सेना झांगर पर कब्ज़ा करने में सफ़ल रही। उसका अगला निशाना नौशेरा सेक्टर था।
नौशेरा पर हमले से पहले ही भारतीय सेना की राजपूत बटालियन को पाकिस्तानी सेना को पीछे ढकेलने का आदेश मिला। आदेश मिलने के बाद ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में सेना के बहादुर जवानों ने मोर्चा संभाला और पाकिस्तान को इस मुकाबले में हराने में सफल रहे। उधर हार से बौखलाए पाकिस्तान ने 6 फरवरी को टैनधार पर अचानक हमला कर दिया। जहां पाकिस्तान का मुकाबला नायक यदुनाथ सिंह से हुआ। वही यदुनाथ सिंह, जिन्होंने अपनी टुकड़ी के चंद साथियों के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना को इस धूल चटा दिया।
नायक यदुनाथ का जीवन परिचय
21,नवंबर, 1916 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का खजूरी गांव में जन्में यदुनाथ सिंह अपने भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थे। पिता किसान थे और मां गृहणी। निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आते थे। नायक यदुनाथ जैसे-तैसे सिर्फ़ चौथी क्लास तक स्कूल गए। वक्त के साथ बड़े होते हुए वो गांव के पहलवानों में शुमार हो गए। दूर-दूर तक उनकी बहादुरी के किस्से आम थे। इसी बीच उन्होंने तय कि वह भारतीय सेना का हिस्सा बनेंगे। आख़िरकार 1941 में उन्होंने अपने इस सपने को पूरा किया और महज 26 वर्ष की आयु में ब्रिटिश भारतीय सैनिक बन गए।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नायक पद पर हुए पदोन्नत
यदुनाथ सिंह राजपूत रेजिमेंट के सदस्य बनें। सेना जॉइन किए यदुनाथ सिंह को अभी महज साल भर ही हुए थे कि उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में बर्मा अभियान के लिए अराकान जाने का आदेश मिला। वहां उन्हें जापानी सेना के ख़िलाफ़ मोर्चा संभालना था। इस मोर्चे पर यदुनाथ ने अपने अद्भुत युद्ध कौशल और बहादुरी का परिचय दिया और सीनियर्स की गुड लिस्ट में आ गए। परिणाम स्वरूप युद्ध के बाद उन्हें नायक पद पर पदोन्नत कर दिया गया। भारत की आजादी के बाद जब पाकिस्तान ने अक्टूबर 1947 में जम्मू -कश्मीर पर हमला बोला तो, भारतीय सेना को इस हमले का जवाब देने को कहा गया।
पाकिस्तानी सेना का टैनधार पोस्ट पर हमला
आदेश मिलने के बाद राजपूत बटालियन को नौशहरा को सुरक्षित करने और झांगर पोस्ट पर तिरंगा फ़हराने का आदेश मिला, जिस पर पाकिस्तान ने कब्ज़ा कर लिया था। ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में 1 फ़रवरी 1948 को भारतीय सेना की 50 पैराब्रिगेड ने पाकिस्तानी सेना पर हमला किया और उसे पीछे धकलने में कामयाब रही। इस हार से गुस्साए विरोधियों ने 6 फरवरी को भारतीय सेना की पोस्ट ''टैनधार की पीकेट पोस्ट नंबर-2'' पर हमला कर दिया। यहां उसका सामना नायक यदुनाथ सिंह से हुआ। वह अपने 9 सैनिकों के साथ मोर्चे पर तैनात थे। विरोधी किसी भी कीमत पर इस पोस्ट को जीतना चाहते थे।
यदुनाथ अपनी टुकड़ी के लीडर थे। लिहाजा उन्होंने अपनी टुकड़ी की जमावट इस तरह से तैयार की, कि पाकिस्तानी सेना को हार कर पीछे हटना पड़ा। इस युद्ध में एक बार मात खाने के बाद पाकिस्तानी सेना ने दुबारा हमला करने की योजना बनायी और पहले से ज्यादा तेजी से हमला कर दिया। इस हमले में यदुनाथ के सिपाही बुरी तरह घायल हो गये। लेकिन यदुनाथ का हौसला बुलंद था और उन्होंने पाकिस्तानी हमले का करारा जवाब दिया। पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से बौखला गई थी।
पाकिस्तान का नौशेरा पर हमले की योजना
हिंदुस्तान की फौजों की अलग अलग मोर्चों पर कामयाबी ने पाकिस्तानी सैनिकों को परेशान कर दिया था। पाकिस्तान अपने करीब 6 हजार सैनिकों को 23/24 दिसम्बर 1947 को झांगर से पीछे हटा लिया था। भारतीय सेना को अब आभास हो गया था कि दुश्मन का अगला निशाना नौशेरा होगा। उसके लिए ब्रिगेडियर उस्मान हर संभव तैयारी कर लेना चाहते थे। नौशेरा के उत्तरी छोर पर पहाड़ी ठिकाना कोट था, जिस पर दुश्मन जमा हुआ था। नौशेरा की हिफाजत के लिए यह ज़रूरी था कि कोट पर कब्जा कर लिया जाए। 1 फरवरी 1948 को भारत की 50 पैरा ब्रिगेड ने रात को हमला किया और नौशेरा पर अपना कब्जा मजबूत कर लिया। इस संग्राम में दुश्मन को जान तथा गोला बारूद का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा और हार कर पाकिस्तानी फौज पीछे हट गई।
पाकिस्तानी सेना पर गोलियों की बौछार
शायद 6 फरवरी 1948 का हमला पाकिस्तानी फौजों की इसी बौखलाहट का नतीजा था। पाकिस्तानी सेना लगातार हमले कर रही थी। इन्हीं हमलों का मुकाबला करते हुए यदुनाथ सिंह की टुकड़ी के 4 सिपाही घायल हो गये। किन्तु यदुनाथ सिंह का जोश दुश्मनों का सामना करने को पूरी तरह से तैयार था। तभी दुश्मन की ओर से तीसरा हमला हुआ। इस बार दुश्मन बड़ी संख्या में थे और उनका मुकाबला करने के लिए नायक यदुनाथ सिंह और उनकी टुकड़ी के महज 9 जवान थे, जो घायल अवस्था में पड़े थे। लिहाजा समय न गंवाते हुए नायक यदुनाथ सिंह ने फुर्ती से अपने एक घायल सिपाही से स्टेनगन ली और लगातार गोलियों की बौछार करते हुए बाहर आ गये।
अचानक हुए इस हमले से पाकिस्तानी सेना एक दम भौचक रह गया। और उसे मजबूरन पीछे हटना पड़ा। इस बीच ब्रिगेडियर उस्मान सिंह को हालात का अंदाज़ा हो गया था और उन्होंने 3 पैरा राजपूत की टुकड़ी टैनधार की तरफ भेज दी थी। यदुनाथ सिंह को उनके आने तक डटे रहना था। तभी अचानक एक सनसनाती हुई गोली आई और यदुनाथ सिंह के सिर को भेद गई। गोली लगने के उपरान्त नायक यदुनाथ रणभूमि में अपने अद्भुत युद्ध कौशल का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। हालाँकि नायक यदुनाथ के बलिदान होने तक सेना की अतिरिक्त टुकड़ी टैनधार पहुँच चुकी थी जिससे कि पाकिस्तान को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा।
6 फ़रवरी 1948 को माँ भारती की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले नायक यदुनाथ को मरणोपरांत 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया। उनकी कहानी एक कुशल नेतृत्व, निडरता और साहस की शौर्यगाथा है। नायक यदुनाथ सिंह की जयंती पर हमारा कोटिशः नमन।