1971 Longawala war : ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी भारतीय सेना के वह वीर सैन्य अधिकारी थे, जिन्हें लोंगेवाला के प्रसिद्ध युद्ध के लिये जाना जाता है। ब्रिगेडियर चांदपुरी ने लोंगेवाला के युद्ध में भारतीय सेना का वीरता के साथ नेतृत्व किया, जिसके लिए भारतीय सेना में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें 'महावीर चक्र' और 'विशिष्ट सेवा मेडल' से सम्मानित किया गया था। सन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में राजस्थान के लोंगेवाला मोर्चे पर हुई लड़ाई का उन्हें हीरो माना जाता है। इस लड़ाई में कुलदीप सिंह चाँदपुरी लोंगेवाला पोस्ट पर तैनात थे। सीमा पर पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजिमेंट थी और चांदपुरी की कमांड में महज 120 जवान। लोंगेवाला पोस्ट पर कुलदीप सिंह चाँदपुरी के नेतृत्व में उनके साथियों द्वारा दिखाई गई बहादुरी पर 'बॉर्डर' नाम से बॉलीवुड फ़िल्म भी बनाई गई थी। इस फ़िल्म में तत्कालीन मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की मुख्य भूमिका अभिनेता सनी देओल ने निभाई थी।
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चाँदपुरी का परिचय
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चाँदपुरी का जन्म 22 नवंबर, 1940 को अविभाजित भारत के मिंट गुमरी में हुआ था, ( जोकि अब पाकिस्तान का हिस्सा है)। 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद उनका परिवार पंजाब के नवाशहर ज़िले के क़स्बे बलाचौर के गांव चांदपुर में आकर बस गया। कुलदीप चांदपुरी ने अपनी पढ़ाई सरकारी कॉलेज होशियारपुर से की। वह 1962 में भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट में बतौर लेफ़्टिनेंट भर्ती हुए थे। ब्रिगेडियर चांदपुरी ने 1965 और 1971 की लड़ाई में मुख्य भूमिका निभाई थी। सिर्फ इतना ही नहीं ब्रिगेडियर चांदपुरी ने संयुक्त राष्ट्र की इमर्जेंसी सेवाओं में भी 1 साल की सेवाएं प्रदान की थीं।
1971 लोंगेवाला युद्ध
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदीपुरी भारत-पाक युद्ध के ऐसे नायक थे, जिन्होने अपनी सूझबूझ और अदम्य साहस से इतिहास के पन्नों में एक नया और कभी ना भूलने वाला अध्याय लिखा। यह कहानी है साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की। राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट से कुछ दूर धूल का एक गुबार आसमान की तरफ बढ़ रहा था। लोंगेवाला चेक पोस्ट पर तैनात भारतीय सेना के जवानों को ये समझते देर नहीं लगी कि उनके पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना ने हमला कर दिया है। धूल का गुबार साफ हुआ तो टैंकों की गड़गड़ाहट को सुन भारतीय सेना के जवानों ने बिना समय गंवाएं अपनी-अपनी पोजीशन ले ली। इस लड़ाई में भारतीय जवानों ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी इस युद्ध में भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे।
लोंगेवाला चेक पोस्ट भारत की एक महत्वपूर्ण सुरक्षा चेकपोस्ट है, लेकिन जिस समस पाकिस्तान ने हमला बोला उस समय इस चेकपोस्ट पर भारतीय सेना के महज 120 ही जवान तैनात थे। इस चेकपोस्ट पर पंजाब रेजिमेंट के जवान थे जिसमें अधिकतर सिक्ख जवान थे और कुछ डोगरा फौजी थे। 1971 में पाकिस्तान ने लोंगेवाला चेकपोस्ट पर कब्जा कर देश के भीतर घुसने की योजना बना रखी थी। लिहाजा पाकिस्तान अपनी पूरी तैयारी और रणनीति बनाकर लोंगेवाला पोस्ट पर हमला कर दिया। इस युद्ध में पाकिस्तान ने अपनी पूरी तोपखाना रेजिमेंट को इस चेकपोस्ट को तबाह कर कब्जा करने के लिए भेजा था। लेकिन पाकिस्तान शायद इस बात अंजान था कि ''जंग हथियारों से नहीं बल्कि हौंसलों से भी लड़ी जाती है''।
'ऑपरेशन चंगेजी' 1971
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के जरिए अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे मुक्ति वाहिनी के जांबाजों को भारतीय सेना का पूरा समर्थन था। लिहाजा इसी बात से पाकिस्तान पूरी तरह से बौखलाया हुआ था। इसी बौखलाहट में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ एक नई साजिश रची और इस साजिश को नाम दिया 'ऑपरेशन चंगेजी'। 'ऑपरेशन चंगेजी' के तहत, पाकिस्तानी सेना ने राजस्थान की लोंगेवाला पोस्ट पर हमला कर भारत में दाखिल होने और रामगढ़, जैसलमेर होते हुए दिल्ली पहुंचने की साजिश रची थी। इस साजिश को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान ने लगभग अपने 3000 सैनिकों के साथ 65 टैंक और 1 मोबाइल इंफ्रेंट्री ब्रिगेड को लोंगेवाला पोस्ट की तरफ रवाना किया था।
भारत-पाकिस्तान सीमा के आखिरी पोस्ट यानि लोंगेवाला पर उन दिनों पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन की A कंपनी को तैनात किया गया था। मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में तैनात इस कंपनी में 120 जवानों के पास बड़े हथियारों के नाम पर महज 1 MMG, L-16 81 mm मोर्टार, तोप लगी एक जीप थी। इसके अतिरिक्त, इस पोस्ट पर 4 सिपाहियों वाला BSF का एक ऊंट दस्ता भी तैनात था। 3 दिसंबर की शाम को लगभग 5:40 बजे, पाकिस्तान एयरफोर्स ने आगरा सहित उत्तर-पश्चिमी भारत की 11 एयर फील्ड्स पर हमला कर दिया।
हमले की सूचना मिलते ही मेजर कुलदीप सिंह ने लेफ्टिनेंट धर्मवीर के नेतृत्व में 20 जवानों की पेट्रोल टीम को बार्डर पिलर पर भेज दिया। कुछ ही घंटों बाद, लेफ्टिनेंट धर्मवीर ने मेजर कुलदीप को बताया कि 65 टैंक और 1 मोबाइल इंफ्रेंट्री के साथ पाकिस्तान की बड़ी फौज लोंगेवाला पोस्ट की तरफ आगे बढ़ रही है। मेजर कुलदीप सिंह ने तत्काल इस जानकारी को मुख्यालय कमांड से साझा कर एयरफोर्स सपोर्ट की मांग की। चूंकि, रात होने वाली थी, लिहाजा अगली सुबह तक लोंगेवाला पोस्ट को एयर सपोर्ट मिलना संभव नहीं था।
जाबांज सैनिकों ने पाकिस्तान के 2 शक्तिशाली टैंक को किया धरासाई
सेना मुख्यालय ने 2 विकल्प दिए और आखिरी फैसला मेजर कुलदीप सिंह पर छोड़ दिया। पहला विकल्प पोस्ट पर कब्जा जमाए रखने का था, जबकि दूसरा विकल्प पोस्ट को खाली छोड़कर पीछे हटने का था। लोंगेवाला पोस्ट पर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के साथ मौजूद 120 जांबाजों ने पोस्ट पर रुककर दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने का फैसला किया। दुश्मन के टैंक की ताकत को खत्म करने के लिए एंटी टैंक माइंस का जाल बिछा दिया और एंटी टैंक गन को तैनात कर दिया। देखते ही देखते, करीब 20 किलोमीटर लंबा दुश्मन की गाडि़यों का काफिला लोंगेवाला पोस्ट से कुछ ही दूरी पर एकत्रित हो गया।
अब भारतीय सेना और दुश्मन बिल्कुल आमने-सामने आ चुके थे। 4 दिसंबर 1971 की रात करीब 12:30 बजे पाकिस्तान की तरफ से आर्टरी फायरिंग शुरू कर दी गई और पाकिस्तानी सेना के टैंकों ने लोंगेवाला पोस्ट की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया। जैसे ही ये टैंक लोंगेवाला पोस्ट से करीब 30 मीटर की दूरी पर पहुंचे, भारतीय जांबाजों ने एंटी टैंक गन से पाकिस्तानी टैंकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते, दुश्मन के 2 शक्तिशाली टैंक धरासाई हो गए। भारतीय सेना को मिली इस पहली सफलता ने इस युद्ध का रुख पूरी तरह से बदल दिया।
दोनों टैंक के ध्वस्त होते ही पाकिस्तानी सेना के अधिकारीयों को लगा कि भारतीय सेना ने पूरे इलाके में लैंड माइंस बिछा रखी है। लिहाजा पाकिस्तानी सैन्य अधिकारीयों ने अपने सैनिकों को लोहे की बाड़ से आगे जाने से रोक दिया। इसके आलावा भारतीय सेना को एक फायदा यह भी हुआ कि ध्वस्त हुए दोनों टैंकों की आग से पूरे इलाके में रोशनी हो गई। अब ऊंचाई पर मौजूद भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को न केवल साफ़ तौर पर देख सकती थी, बल्कि उन्हें अपनी गोलियों के निशाने पर ले सकती थी।
मेजर चांदपुरी के नेतृत्व में भारतीय सेना मोर्टार, एमएमजी सहित दूसरे हथियारों से इतनी सटीक गोलीबारी कर रही थी कि पाकिस्तान की बड़ी संख्या में मौजूद सैनिक अपनी जगह पर जम से गए थे। मेजर कुलदीप सिंह के नेतृत्व में महज 120 जवानों ने पाकिस्तानी के 300 सैनिकों को धूल चटा दिया था। हालाँकि इस युद्ध में भारतीय सेना के भी अनेक जवान उत्तम युद्ध कौशल का परिचय देते हुए रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
पाकिस्तानी सैनिकों पर कहर बनकर टूटी भारतीय वायुसेना
मेजर चांदपुरी के कुशल नेतृत्व में उनकी टुकड़ी ने पाकिस्तानी सैनिकों को पूरी रात युद्ध में उलझाये रखा। दूसरी तरफ भारतीय वायुसेना भी सुबह की पहली किरण के इंतज़ार में तैयार बैठी थी। सूरज की पहली किरण के साथ भारतीय वायुसेना के हंटर और मारुत लड़ाकू विमान मदद के लिए लोंगेवाला पोस्ट पहुंच गए। इन लड़ाकू विमानों ने देखते ही देखते पाकिस्तानी टैंकों को एक-एक कर ध्वस्त करना शुरू कर दिया। इस हवाई हमले में दोपहर तक पाकिस्तान सेना की 100 से ज्यादा बख्तरबंद गाडि़यां, 22 टैंक और 12 टैंक इंफेट्री बर्बाद हो चुकी थी। इस बीच, रणभूमि में पहुंचे कैवलेरी टैंक और 17 राजपूताना राइफल्स की जवाबी कार्रवाई ने पाकिस्तानी सेना की बची खुची ताकत भी समाप्त कर दी।
मेजर चांदपुरी को मिला महावीर चक्र
इस तरह, भारतीय सेना के महज 120 जांबाजों ने दुश्मन सेना के 3000 जवानों, 65 टैंक और 1 मोबाइल इंफ्रेंट्री ब्रिगेड को अपने हौसले से रौंद डाला। इस युद्ध में भारतीय सेना ने अभूतपूर्व विजय प्राप्त की। वहीं उद्भुत युद्ध कौशल के लिए 23वीं बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कुलदीप सिंह चांदपुरी को 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें मेजर पद से ब्रिगेडियर पद पर पदोन्नत किया गया।