1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध ; PVC लांस नायक अल्बर्ट एक्का की शौर्यगाथा
   03-दिसंबर-2022
 
Lance Naik Albert Ekka PVC
 
 
27 दिसम्बर 1942 - 03 दिसम्बर 1971
 
 
लांस नायक अल्बर्ट एक्का भारतीय सेना में एक सिपाही थे। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान हिली की लड़ाई में वो वीरगति को प्राप्त हो गए थे। मातृभूमि की रक्षा के लिए जब उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया तो उस वक्त वो महज 28 वर्ष के थे। इस युद्ध में लांस नायक अल्बर्ट एक्का के विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार है।
 
 
परिचय
 
 
अल्बर्ट एक्का का जन्म 27 दिसम्बर, 1942 को झारखंड के गुमला जिला के डुमरी ब्लाक के जरी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम जूलियस एक्का और माँ का नाम मरियम एक्का था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सी. सी. स्कूल पटराटोली से की थी और माध्यमिक परीक्षा भिखमपुर मिडल स्कूल से पास की थी। इनका जन्म स्थल जरी गांव चैनपुर तहसील में पड़ने वाला एक आदिवासी क्षेत्र है जो झारखण्ड राज्य का हिस्सा है। एल्बर्ट की दिली इच्छा फौज में जाने की थी, जो दिसंबर 1962 को पूरी हुई। उन्होंने फौज में बिहार रेजिमेंट से अपना कार्य शुरू किया। बाद में जब 14 गार्ड्स का गठन हुआ, तब एल्बर्ट अपने कुछ साथियों के साथ वहाँ स्थानांतरित कर किए गए। एल्बर्ट एक अच्छे योद्धा तो थे ही, यह हॉकी के भी अच्छे खिलाड़ी थे। इनके अनुशासन का ही प्रभाव था कि ट्रेनिंग के ही दौरान एल्बर्ट एक्का को लांस नायक बना दिया गया था।
 
 
शौर्यगाथा
 
 
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 3 और 4 दिसंबर की रात पाकिस्तानी सेना अगरतला के अंदर घुसपैठ की कोशिश में थी, जिसे भारतीय सेना के कुछ जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर असफल बना दिया। लांस नायक अल्बर्ट एक्का इन्हीं रणबांकुरों में से एक थे। अल्बर्ट एक्का बिहार रेजिमेंट का हिस्सा थे। जब 14 गार्ड्स का गठन हुआ तो उन्हें वहां स्थानांतरित कर दिया गया।
 
 
1971 की जंग के दौरान 3 दिसंबर 1971 को एक्का की बटालियन को पूर्वी पाकिस्तान में गंगासागर के पाकिस्तानी गढ़ पर कब्ज़ा करने का आदेश दिया गया। इस मिशन को जीतना भारत के लिए बहुत ज़रूरी था। दरअसल यहां से अगरतला की दूरी महज़ 7 किलोमीटर के आसपास थी। पाकिस्तानी सेना यहां घुसने के इरादे में थी। दूसरी तरफ़ भारतीय सेना को अखौरा की ओर बढ़ना था। यहीं से भारतीय सेना का ढाका जाना संभव था।
 

Albert Ekka PVC 1971 
 
आदेश के मुताबिक, भारतीय सेना की 2 कंपनियां अपने टारगेट की ओर आगे बढ़ी। इनमें एक की कमान एक्का के पास थी। पाकिस्तानी सेना दुसरे मोर्चे पर पूरी तैयारी के साथ मौजूद था। उसने रेलवे स्टेशन के आसपास की पूरी जगह को माइंस से पाट दिया था, ताकि भारतीय सेना को रोका जा सके। दूसरी तरफ़ बड़ी संख्या में उसने ऑटोमेटिक मशीन गन के साथ सैनिकों को तैनात कर रखा था। कुल मिलाकर गंगासागर रेलवे स्टेशन तक पहुंचना मौत को गले लगाना जैसा था।
 
  
मगर एक्का तय कर चुके थे कि वह मिशन पूरा करके रहेंगे। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले गोलियां उगल रही पाकिस्तान की मशीन गनों और बंकरों को अपना निशाना बनाया। वह अपनी इस कोशिश में कामयाब भी रहे। एक समय ऐसा भी आया, जब एक्का अकेले ही पाकिस्तानी बंकरों पर कूद गए थे। इस संघर्ष में एक्का को गंभीर चोटें आईं थी। मगर वह रुके नहीं और अपने हाथ में बम लेकर विरोधी के ऊपर काल बनकर टूट पड़े। एक्का के इस हमले में पाकिस्तान के 3 से 4 सैनिक मारे गए इसके आलावा कई घायल हुए।
 

1971 India-Pakistan War Albert Ekka 
 
बांग्लादेश ने किया सम्मानित
 
 
इस युद्ध के परिणाम स्वरूप विश्व के मानचित्र में बांग्लादेश नाम का नया देश बना और इस कार्रवाई में लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने सबसे विशिष्ट वीरता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया और युद्ध में अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए। किन्तु युद्ध में घायल होने के कारण अलबर्ट एक्का अंत 3 दिसम्बर 1971 को जिंदगी से अपनी जंग हार बैठे और वीरगति को  प्राप्त हो गए। इस युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने के लिए उन्हें सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। वहीं बांग्लादेश ने एक्का को 'फ्रेंड्स ऑफ़ लिबरेशन वॉर ऑनर' से नवाज़ा। रांची में उनके नाम पर एक राजमार्ग भी बना है।