Story of Farooq Khan : बीते सोमवार को जम्मू कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा के सलाहकार फ़ारूख अहमद खान ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। फ़ारूख खान के इस्तीफा देने के बाद से जम्मू कश्मीर में सत्ता के गलियारों से लेकर मीडिया में भी कई तरह की नई अटकलें लगाई जाने लगी। बहरहाल इन सब अटकलों के बीच केंद्र सरकार ने फ़ारूख अहमद खान का इस्तीफा स्वीकार लिया है और उन्हें उनके पद से मुक्त कर दिया है।
फ़ारूख खान के जज्बे ने कई मिथकों को किया ध्वस्त
फ़ारूख खान ने केंद्र सरकार को जब से अपना इस्तीफा सौंपा है तब से कई तरह की बातें सामने आ रही हैं। कहा जा रहा है कि जम्मू कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा उन्हें कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है। ऐसा इस लिए भी है कि अगर जम्मू कश्मीर में राष्ट्रभक्ति की भावना अपने दिलों में रखने वालों की लिस्ट तैयार की जाए तो उस पंक्ति में फ़ारूख अहमद खान सबसे पहली पंक्ति में आएंगे। उनका देश के प्रति ये जज्बा उन सभी मिथकों को ध्वस्त करता है जो ये कहते हैं कि जम्मू कश्मीर का मुस्लिम भारत से अलग होकर इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहता है।
फ़ारूख खान के दादा कर्नल पीर मोहम्मद महाराजा हरि सिंह की सेना में कर्नल थे
जानकारी के अनुसार फ़ारूख अहमद खान को लेकर ऐसा कहा जाता है कि उनके भीतर देशभक्ति की भावना उनके दादा पीर मोहम्मद खान ने भरी है। कर्नल पीर मोहम्मद खान जम्मू कश्मीर राज्य के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह की फौज में कर्नल थे। वर्ष 1947 में जब पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों के साथ मिलकर कश्मीर पर हमला किया था और महाराजा हरि सिंह की फौज के कई मुस्लिम अधिकारी दुश्मन से जा मिले थे, उस वक्त में भी कर्नल पीर मोहम्मद खान ने महाराजा हरि सिंह का साथ नहीं छोड़ा। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ जम्मू कश्मीर मलिशिया और कैडेट कोर को एकजुट किया।
राष्ट्रविरोधी ताकतों के खिलाफ लोगों को किया एकजुट
जम्मू कश्मीर का भारत में विलय के बाद जब नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला ने अपना असली रंग दिखाना शुरू किया था तब उस वक्त उनके खिलाफ उठने वाली आवाज में एक आवाज कर्नल पीर मोहम्मद खान की थी। उन्होंने न सिर्फ शेख अब्दुल्ला के खिलाफ आवाज उठाई बल्कि जम्मू संभाग में लोगों को जाति धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्रविरोधी ताकतों के खिलाफ एकजुट करने में भी अहम भूमिका निभाई थी।
जनसंघ के दौरान बनाया गया प्रदेश अध्यक्ष
इसके अलावा पीर मोहम्मद खान ने जनसंघ के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जिसके चलते उन्हें वर्ष 1972 में पंडित प्रेमनाथ डोगरा के निधन के बाद जनसंघ का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया गया। पीर मोहम्मद खान जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और जम्मू कश्मीर के अलग संविधान व निशान के भी खिलाफ थे।
1984 में जम्मू कश्मीर पुलिस में उपाधीक्षक के पद पर हुए थे नियुक्त
जम्मू कश्मीर पुलिस से सेवानिवृत्त महानिरीक्षक फ़ारूख खान वर्ष 1984 में जम्मू कश्मीर पुलिस में उपाधीक्षक नियुक्त हुए थे। वर्ष 1990 ये वही दौर था जब घाटी में कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार उनके साथ हिंसा अपने चरम पर था। उस दौरान आतंकी हिंसा के समक्ष जम्मू कश्मीर पुलिस हर मोर्चे पर असहाय नजर आ रही थी।
एक दर्जन पुलिस अधिकारियों और जवानों के साथ मिलकर टास्क फोर्स का किया निर्माण
वक्त ऐसा था जब पुलिस अधिकारियों और जवानों का मनोबल पूरी तरह से गिरा हुआ था। जिसके चलते घाटी की सुरक्षा की कमान BSF और भारतीय सेना ही संभाल रही थी। ऐसे हालात में 1994 में फारूक खान ने करीब एक दर्जन पुलिस अधिकारियों और जवानों के साथ मिलकर एक 'टास्क फोर्स' का निर्माण किया। टास्क फोर्स के निर्माण के बाद फ़ारूख खान ने अपनी टीम के साथ आतंकियों के खिलाफ जंग का एलान कर दिया।
सन 94 में बनी टास्क फोर्स अब SOG के नाम से जानी जाती है
1994 में बनी यही टास्क फोर्स आज स्पेशल आप्रेशन ग्रुप (SOG) के नाम से जानी जाती है। टास्क फोर्स ने आतंकियों को चुन-चुन कर मारना शुरू कर दिया। देखते ही देखते कुछ ही दिनों के भीतर टास्क फोर्स के जरिए जम्मू कश्मीर पुलिस आतंकियों पर पूरी तरह हावी हो गई। ऐसे वीरता पूर्ण कार्य के लिए फारूख खान को पुलिस वीरता पदक, विशिष्ट सेवा पदक समेत कई अन्य सम्मान से भी नवाजा गया।
PDP और नेशनल कांफ्रेंस फारुख खान को करती है नापसंद
कुछ जानकारों की मानें तो फ़ारूख खान सिर्फ अलगाववादियों और आतंकियों को ही नहीं, मुख्यधारा की आड़ में अलगाववाद की सियासत करने वाली 'पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी' और 'नेशनल कांफ्रेंस' को भी अखरते रहे हैं। यही कारण है कि उन्हें कई बार तथाकथित मानवाधिकारवादियों को संतुष्ट करने के लिए तत्कालीन राज्य सरकारों ने निलंबित भी किया, लेकिन वह हर बार विजेता बनकर उभरे।
अब तक कई अहम जिम्मेदारियां निभा चुके
2013 में अपने पद से मुक्त होने के बाद फ़ारूख खान ने घर बैठने के बजाय भाजपा में शामिल होना बेहतर समझा। वर्ष 2014 में भाजपा का सदस्य बनने के कुछ महीने बाद वर्ष 2015 में वह भाजपा के राष्ट्रीय सचिव नियुक्त कर दिए गए। जिसके बाद पूर्वोत्तर भारत में भाजपा को मजबूत बनाने में उन्होंने बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इसी प्रयास के चलते वर्ष 2016 में उन्हें केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का 32 प्रशासक बना दिया गया। लक्षद्वीप में प्रशासक रहते हुए फ़ारूख खान ने जिस तरह से वहां पर्यटन विकास और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने का काम किया उनके इस प्रयास को स्थानीय लोग आज भी स्वीकारते हैं।
पीएम मोदी के कहने पर फारूक खान जुलाई 2019 में लौटें जम्मू कश्मीर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में यानी जुलाई 2019 में फ़ारूख खान को जम्मू कश्मीर लौटने के लिए कहा तो वह लक्षद्वीप से इस्तीफा देकर जम्मू कश्मीर पहुंच गए। उसके बाद उन्हें तत्कालीन राज्यपाल सतपाल मलिक का सलाहकार Advisor बनाया गया। 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को लागू करने के बाद कश्मीर में हालात नियंत्रण में रखने और अलगाववादियों की नकेल कसने की रणनीति तैयार करने में फ़ारूख खान की अहम भूमिका मानी जाती रही है।
आगामी चुनाव को देखते हुए भाजपा में मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी
जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद केंद्र सरकार ने उन्हें जम्मू कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा का सलाहकार बना दिया। अब जम्मू कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है आयोग अपनी फाइनल रिपोर्ट मई तक पेश कर देगा जिसके बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। ऐसे में अब हाल ही में इस्तीफा मंजूर होने के बाद से इस बात की उम्मीद जताई जा रही है कि भाजपा उन्हें कोई बड़ी राजनीतिक जिम्मेदारी सौंप सकती है।