25 जून 1990 ; जब इस्लामिक जिहादियों ने कश्मीरी हिन्दू गिरजा टिक्कू को आरा मशीन से दो हिस्सों में काट उतारा था मौत के घाट

25 Jun 2022 12:47:52
Story Of Girja Tickoo
 
 
1990 में जम्मू कश्मीर में हुए कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार से आज लगभग सारी दुनियां वाकिफ है। उस दौर में घाटी से हजारों लाखों कश्मीरी हिंदुओं को आतंक के कारण पलायन करना पड़ा। सैंकड़ों हजारों निर्दोष मासूम लोगों को इस्लामिक जिहादियों ने मौत के घाट उतार दिया। आज भी जब वो मंजर आंखों के सामने आता है तो कलेजा कांप उठता है।
 
 
कहानी गिरजा टिक्कू की :
 
 
लिहाजा आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम 1990 में हुए एक ऐसे जघन्य अपराध की चर्चा करेंगे जिन्हें सुन कर पढ़कर आपका कलेजा दर्द से कराह उठेगा। अमानवीय अत्याचारों से गुजरने वाले कई दर्दनाक किस्सों में से एक दर्दनाक किस्सा है कश्मीरी हिंदू गिरिजा टिक्कू का। वो गिरजा टिक्कू जो 1990 के दौर में अपनी ही जन्मभूमि में इस्लामिक जिहादियों का शिकार हुईं और आतंकियों द्वारा उनकी निर्ममता से हत्या की गई।
 
 
11 जून 1990 काला दिन :
 
 
कश्मीरी हिन्दू गिरिजा कुमारी टिक्कू बारामूला जिले के गांव अरिगाम (वर्तमान में बांदीपोरा जिले) की रहने वाली थी। गिरजा एक स्कूल में लैब सहायिका के तौर पर कार्यरत थीं। 11 जून 1990 की सुबह गिरजा टिक्कू अपने घर से अपनी सैलरी लेने स्कूल के लिए निकली। स्कूल पहुंचकर सैलरी लेने के बाद वापस घर लौटते वक्त वो पास में मौजूद अपनी एक मुस्लिम सहकर्मी के घर चली गईं।
 
गिरजा इस बात से बेखबर थीं कि उनका पीछा किया जा रहा है। गिरजा टिक्कू पर इस्लामिक जिहादियों की नजर लंबे वक्त से थी। गिरिजा अपने सहकर्मी से मिलने घर पहुंची उसी वक्त आतंकियों ने गिरजा को अपहृत कर लिया। खास बात यह थी कि गिरजा टिक्कू का अपहरण गांव में रहने वाले लोगों की नजरों के सामने ही हुआ। पर खौफ का माहौल ऐसा था कि किसी ने भी अपनी आवाज नहीं उठाई।
 
 
गिरजा के साथ इस्लामिक जिहादियों ने किया सामूहिक दुष्कर्म
 
 
आतंकियों ने गिरिजा टिक्कू को अपहरण करने के बाद गांव से दूर ले फेयर उनके साथ कई दिनों तक सामूहिक दुष्कर्म किया। सिर्फ इतना ही नहीं उन्हें कई तरह की यातनाएं भी दीं। हैवानियत और बर्बरता की सारी हदों को पार करने के बाद भी जब इन जिहादियों का जी नहीं भरा तो उन्होंने गिरजा को लकड़ी काटने वाली आरा मशीन के बीच लेटाकर गांव वालों के सामने ही दो अलग-अलग हिस्सों में काट दिया।
 
 
यह भयावह मंजर वहां खड़े लोग देखते रहे। 1990 के उस दौर में आतंकियों का कश्मीरी हिंदुओं को सन्देश साफ़ था कि जम्मू कश्मीर में केवल “निज़ाम –ऐ- मुस्तफा'' को मानने वाले लोग ही रह सकते है और गिरिजा टिक्कू जैसी एक सामान्य सी अध्यापिका को भी वो ''निजाम –ऐ- मुस्तफा” के लिए खतरा मानते थे।
  
 
 
 
 
अपने पीछे छोड़ गईं अपने दो मासूम बेटे और बेटी
 
 
गिरिजा टिक्कू अपने पीछे 26 वर्षीय पति, 4 साल का बेटा और 2 साल की बेटी छोड़ गईं। 1990 में कश्मीर में हुए इस हादसे पर वहां के स्थानीय लोग चुप रहे। हाल ही में आई विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स में भी इस दर्दनाक और भयावह मंजर को दर्शाया गया है। आप कल्पना कर सकते हैं कि आखिरकार वो दौर, वो मंजर कैसा रहा होगा जब गिरजा टिक्कू को आरा मशीन के बीचों बीच लेटाकर दो हिस्सों में काट दिया गया। गिरजा टिक्कू के अलावा सैंकड़ों हजारों ऐसे निर्दोष मासूम लोगों को इन इस्लामिक जिहादियों ने 1990 में अपना शिकार बनाता था।
 
 
गिरजा टिक्कू के बलिदान दिवस पर हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनका बलिदान देश हमेशा याद रखेगा। उनका बलिदान आतंक के खिलाफ अपनी आवाज को हमेशा बुलंद करता रहेगा।
 
 
 
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