डोडा नरसंहार : 19 जुलाई 1999 का वो खौफनाक मंजर, जब आतंकियों ने 8 महिलाओं संग कुल 15 लोगों को उतारा मौत के घाट
   19-जुलाई-2022

Doda Massacre
 
 
जम्मू कश्मीर में 1990 का दशक तो लगभग सबको याद होगा। उस दौरान जिस तरह से इस्लामिक कट्टरपंथियों ने कश्मीर घाटी में रहने वाले कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार किया था उसे जन्मों जन्म तक नहीं भुलाया जा सकता। हालांकि ऐसा नहीं है कि ये नरसंहार केवल 90 के दशक में किया गया था बल्कि 1999 में भी पाक समर्थित आतंकियों ने अपनी नापाक हरकतों का परिचय देते हुए कुल 15 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। आज से ठीक 23 वर्ष पूर्व 19 जुलाई 1999 को जम्मू कश्मीर के डोडा जिले के ठाठरी तहसील में आतंकवादियों ने 5 भाइयों के कुनबे को जड़ से समाप्त कर दिया था।
 
 
13 घंटों तक आतंकवादियों के साथ लड़ते रहे परिवार के सदस्य 
 
 
डोडा जिले से 50 किमी दूर लेहोटा गाँव में एक दूसरे से सटे 5 घर थे जिनमें 5 परिवार रहते थे। 19 जुलाई के दिन आतंकियों ने इन 5 परिवारों पर हमला कर दिया। इस दौरान कुनबे के लगभग 20 सदस्य 13 घंटों तक आतंकवादियों के साथ लड़ते रहे। रात के अँधेरे में जब चारों तरफ से गोलियाँ चल रही थीं तब शकुंतला और संतोषा बच्चों को लेकर भाग निकलीं। अगले सवेरे शकुंतला सीआरपीएफ को सारी बातें बताते उन्हें बुलाकर घर लाई तब तक काफी देर हो चुकी थी। उनके सामने परिवार के 15 सदस्यों की लाशें बिछी हुई मिली। मरने वालों में 4 मर्द विलेज डिफेन्स कमेटी के सदस्य भी थे जो विलेज डिफेन्स कमेटियाँ नब्बे के दशक में आतंकियों से लड़ने के लिए बनाई गई थीं।
 
 
वो दौर याद कर आज भी सिहर उठते हैं बचे हुए सदस्य  
 
 
24 साल के जोगिंदर उस समय बच्चे थे जब उनके परिवार के सभी सदस्य आतंकियों से लड़ते हुए बलिदान हो चुका था। जोगिंदर का लालन पालन जम्मू के अनाथालय में हुआ था। बीस साल पहले हुए कत्ल-ए-आम के बाद जीवित बचे सदस्यों और बाद में पैदा हुए वंशजों में से कोई भी उस गाँव नहीं गया। सरकार ने कुनबे के जीवित बचे सदस्यों को मुआवजे के रूप में जमीन का एक टुकड़ा, एक-एक लाख रुपए और 5 नौकरियाँ दी थीं। हमले में बचे सदस्यों को आज भी अपने परिजनों की चीखें और खून से सनी लाशें भयभीत करती हैं। वो ऐसी यादे हैं जो कभी मिट नहीं सकतीं।
 
 
फारुख अब्दुल्ला थे जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री 
 
 
उस जमाने में फारुख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे और उनका बेटा केंद्र में राज्यमंत्री था। अमरीका भी जम्मू कश्मीर समस्या के समाधान की बात करता था और कारगिल युद्ध परमाणु युद्ध में न बदल जाए इसके प्रयास किए थे। लेकिन जम्मू कश्मीर राज्य की असल समस्या कारगिल की चोटियों पर चढ़ आए पाकिस्तानी नहीं थे बल्कि वह आतंकवाद था जो आज भी कश्मीरियों से उनका हक़, ज़मीर, ज़मीन और जान सब कुछ छीन रहा है। इस आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत के सुरक्षा बल पूरी तरह समर्पित हैं।