ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह – प्रथम महावीर चक्र विजेता
जन्म : 14 जून, 1899 - बगूना, सांबा, जम्मू संभाग
बलिदान पर्व – 26 अक्टूबर, 1947 - सेरी, उरी सेक्टर, जम्मू कश्मीर
22 अक्टूबर सन 1947 को महाराजा हरि सिंह ने जब मुजफ्फराबाद पर पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्जे की खबर सुनी, तो उन्होंने खुद दुश्मनों से मोर्चा लेने का फैसला किया। महाराजा हरि सिंह ने सैन्य वर्दी पहनकर ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह को बुलाया। ब्रिगेडियर सिंह जब महाराजा हरि सिंह के पास पहुंचे तो उन्होंने महाराजा को मोर्चे से दूर रहने के लिए मनाते हुए खुद दुश्मन का आगे जाकर मुकाबला करने का निर्णय लिया। साथ ही महाराजा को सुझाव दिया कि वह श्रीनगर में रह कर भारत के साथ विलय पर अपनी बातचीत को तेज करें। महाराजा ने भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल से फोन पर बातचीत कर राज्य के हालात को बताया लेकिन भारत ने एक बार फिर विलय को लेकर अपनी बात दोहराई, लिहाजा महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय होने में अपनी मंजूरी दे दी।
कैप्टन सिंह 24 अक्टूबर की सुबह एक छोटी सैन्य टुकड़ी के संग उड़ी पहुंचे। उन्होंने सैन्य टुकड़ी ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह को सौंपते हुए महाराजा हरि सिंह का आदेश सुनाते हुए पत्र सौंपा। हालात को पूरी तरह से विपरीत और दुश्मन को मजबूत समझते हुए ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने एक रणनीति के तहत कैप्टन नसीब सिंह को उरी नाले पर बने एक पुल को उड़ाने का आदेश दिया, ताकि दुश्मन को रोका जा सके। आदेश मिलते ही नसीब सिंह ने नाले पर बने उस पुल को ध्वस्त कर दिया जिसकी मदद से पाकिस्तानी सेना उरी में दाखिल हो सकती थी। पुल उड़ाने के कारण दुश्मन सेना को कुछ देर तक उस पार ही रुकना पडा। लेकिन जल्द ही वहां गोलियों की बौछार शुरू हो गई। करीब 2 घंटे बाद दुश्मनों ने फिर हमला बोल दिया।
पहले वाहन का चालक दुश्मन की फायरिंग में वीरगति को प्राप्त हो गया। इस पर कैप्टन ज्वाला सिंह ने अपनी गाड़ी से नीचे आकर जब देखा तो पहले तीनों वाहनों के चालक दुश्मनों की गोलीबारी में मारे जा चुके थे, उन्हें ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह नजर नहीं आए, वह अपने वाहन चालक के वीरगति प्राप्त होने पर खुद ही वाहन लेकर आगे निकल गए थे। सेरी पुल के पास दुश्मन की गोलियों का जवाब देते हुए वह गंभीर रूप से घायल हो गए। उनकी दाहिना पैर पूरी तरह जख्मी था। उन्होंने उसी समय अपने जवानों को आदेश दिया कि वह पीछे हटें और दुश्मन को रोकें। उन्हें जब सिपाहियों ने उठाने का प्रयास किया तो वह नहीं माने और उन्होंने कहा कि वह उन्हें पुलिया के नीचे आड़ में लिटाएं और वह वहीं से दुश्मन को रोकेंगे। 26 अक्टूबर सन 1947 की दोपहर को सेरी पुल के पास ही ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह दुश्मन से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह को मरणोपरांत देश के पहले महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। फील्ड मार्शल के.एम.करिअप्पा ने 30 दिसंबर सन 1949 को जम्मू संभाग में बगूना सांबा के इस सपूत की वीर पत्नी रामदेई को सम्मानित किया था।