3 नवंबर 1947, बडगाम युद्ध ; हाथ में प्लास्टर और सामने 700 पाकिस्तानी सैनिक, देश के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा की शौर्यगाथा

    02-नवंबर-2023
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Major Somnath Sharma
 
 
Written By : Arnav Mishra 
 
 
जम्मू कश्मीर को जबरन हथियाने के इरादे से हमला करने के बाद कबाइलियों की भेष में पाकिस्तानी सेना 3 नवम्बर तक बडगाम पहुंच गई थी। पाकिस्तानियों का अगला टारगेट श्रीनगर और बडगाम एयर बेस पर कब्जा करने का था। इधर 27 अक्टूबर को कर्नल दीवान रंजीत राय के नेतृत्व में 1st सिख बटालियन श्रीनगर पहुँच चुकी थी। हालाँकि इस बीच कर्नल राय युद्ध में लड़ते हुए 28 अक्टूबर को वीरगति को प्राप्त हो गए। लेकिन उनकी बटालियन ने पाकिस्तानी सेना को पट्टन हाईवे पर ही रोके रखा था। फ़र्स्ट सिख बटालियन की इस बहादुरी के कारण भारतीय सेना को अपनी अतिरिक्त टुकड़ी को श्रीनगर भेजने का वक्त मिला। 31 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना की 161 इन्फेंट्री श्रीनगर के लिए रवाना हुई। इस बटालियन की कमांड सम्भाल रहे थे ब्रिगेडियर LP सेन।
 

Pakistan invader 1947 
कबाइलियों की भेष में पाकिस्तानी सेना  
 
परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा की शौर्यगाथा
 
 
161 इन्फेंट्री के साथ ही सेना की 1 कुमाऊँ, 4 कुमाऊँ और 1 पंजाब रेजिमेंट की टुकड़ी श्रीनगर पहुँच चुकी थी। भारतीय सेना का अगला टारगेट श्रीनगर के साथ बड़ग़ाम, पुंछ और बारामुला को पाकिस्तानी हमलावरों से मुक्त कराना था। इस युद्ध में अदम्य साहस और वीरता का परिचय देने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर थे। हालाँकि युद्ध के दौरान उनके एक हाथ में प्लास्टर चढ़ा था, जिसके कारण उन्हें युद्ध में फ्रंट पर नहीं भेजा जा रहा था। फिर भी वो जिद करके श्रीनगर पहुंचे और अपनी टीम को लीड किया।
 
 
1 नवंबर को ब्रिगेड हेडक्वॉर्टर में आर्मी इंटेलीजेंट द्वारा एक खबर आई। खबर ये थी कि अब पाकिस्तानी सेना बारामुला के बजाय गुलमर्ग के रास्ते होते हुए बड़गाम एयर फील्ड पर हमला करने की योजना बना रही है। इस हमले को अंजाम देने के लिए हज़ारों की संख्या में हमलावर बड़गाम पहुँच चुके है। मिलिट्री इंटेलिजेंस से मिली सूचना के आधार पर 161 इन्फेंट्री को कमांड कर रहे ब्रिगेडियर LP सेन ने एक बड़ी पेट्रोलिंग टीम को बड़गाम भेजने का निर्देश दिया। निर्देश मिलते ही ये यूनिट बड़गाम के लिए निकली, इस यूनिट का उद्देश्य था बड़गाम में छिपे पाकिस्तानी सेना का पता लगाना। इस पेट्रोलिंग टीम में 2 यूनिट कुमाऊँ रेजीमेंट की 4th बटालियन की थी। इस टुकड़ी का काम बड़गाम में दुश्मनों पर नज़र बनाए रखने की थी। इसके अलावा कुमाऊँ रेजीमेंट की 1st बटालियन भी इस पेट्रोलिंग कंपनी में शामिल थी। जिसका काम बड़गाम से होते हुए आगे मगम जाकर पंजाब रेजिमेंट की फ़र्स्ट बटालियन से संपर्क कर वापस बेस कैंप लौटना था।
 
 
battle Of budgam 1947
 
 
बटालियन का नेतृत्व मेजर सोमनाथ शर्मा कर रहे थे। कुमाऊँ रेजीमेंट जब बड़गाम पहुँची तो स्थिति बिल्कुल सामान्य थी। लिहाज़ा 1 कुमाऊँ की टुकड़ी बड़गाम से होते हुए मगम के लिए निकल चुकी थी। बड़गाम के सामान्य हालात को देखते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा को हेड क्वॉर्टर से एक टुकड़ी को वापस बेस कैंप भेजने का निर्देश मिला। साथ ही उन्हें अगले एक से दो घंटे बड़गाम में ही पोजीशन को होल्ड रखने का आदेश मिला। हेड क्वार्टर से मिले आदेश के अनुसार मेजर सोमनाथ शर्मा ने पेट्रोलिंग करने के बाद एक टुकड़ी को वापस एयर बेस भेज दिया और खुद करीब 100 जवानों के साथ बडगाम में एक सुरक्षित ऊँची पोजीशन देखकर तैनात हो गए। मेजर शर्मा दुश्मनों के अचानक हमले से अंजान थे।
 
 
3 नवंबर को दोपहर करीब 2 बजे जंगलों में छिपे पाकिस्तानी हमलावरों ने मोर्टार, रायफल औऱ लाइट मशीनगनों से हमला शुरू कर दिया हमला। अचानक हुए हमले का जवाब देने के लिए मेजर शर्मा ने अपनी टुकड़ी को तैयार किया और जोरदार जवाबी हमला किया। हालाँकि इस बीच मेजर शर्मा की टुकड़ी में महज 100 के करीब सैनिक थे और दूसरी तरफ पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या 700। संख्या बल में कम होने के बावजूद भी मेजर शर्मा और उनकी टुकड़ी ने दुश्मनों को जोरदार टक्कर दी। मेजर शर्मा के एक हाथ में प्लास्टर होने के कारण वो हथियार संभाल पाने में सक्षम नहीं थे लिहाजा वो एक स्थान से दूसरे स्थान जाते और अपने जवानों का हौसला बढाते। साथ ही एक हाथ से अपने जवानों के रायफल eमें मैगजीन भी लोड करते रहे। मेजर शर्मा के इस नेतृत्व ने उनके सैनिकों को हिम्मत प्रदान की जिसके बदौलत उन्होंने कई पाकिस्तानी हमलावरों को मार गिराया।
 
 
मेजर सोमनाथ शर्मा का यह अंतिम संदेश
 
 
इस बीच दुश्मनों के हमले में मेजर शर्मा के करीब 20 जवान वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और कई जवान घायल। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मेजर शर्मा ने ब्रिगेड मुख्यालय में संपर्क किया और उन्हें हमले की जानकारी दी साथ ही अतिरिक्त टुकड़ी की भी मांग की। चूँकि ब्रिगेड मुख्यालय से टुकड़ी के पहुँचने में वक्त लगता लिहाजा वहां से मेजर शर्मा को पीछे हटने का आदेश मिला। लेकिन माँ भारती का ये वीर सपूत कहाँ पीछे हटने वाला था। जोश और जज्बा से भरपूर मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपने अधिकारियों से कहा कि ‘’दुश्मन हम से बस 100 गज की दूरी पर है। हम हर तरफ से घिरे हुए हैं, संख्या में कम हैं लेकिन मैं एक कदम भी पीछे नहीं हटूंगा। जब तक हमारे पास एक भी गोली और एक भी सांस है मैं अपने जवानों के साथ मोर्च से पीछे नहीं हटूंगा और मरते दम तक लड़ूंगा।‘’ आर्मी हेडक्वार्टर को दिया यह मेजर सोमनाथ शर्मा का यह अंतिम संदेश था।
 
 
एक सैन्य अधिकारी होने के नाते वह जानते थे कि दुश्मन ज्यादा है और उनके सैनिकों की संख्या कम इसलिए दुश्मन को बहुत देर तक नहीं रोका जा सकता, लेकिन वह यह भी जानते थे कि जब तक और मदद नहीं आ जाती पीछे हटना मुनासिब नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो कबाइली बिना किसी रुकावट के एयरफील्ड पर पहुंच जाएंगे और श्रीनगर पर कब्जा कर लेंगे।
 
 
Battle of Budgam
 
 
बडगाम में पाकिस्तानी हमलावरों को मुंहतोड़ जवाब
 
 
उन्होंने वहीं टिकने का फैसला किया। जवानों की हौसला अफजाई करते हुए उन्होंने उन्हें अंतिम समय तक लड़ने का हुक्म दिया। उनके बाएं हाथ में प्लास्टर था लेकिन वह लगातार मोर्च पर डटे रहे। इस बीच अचानक एक मोर्टार उनके पास आकर फटा, और मेजर सोमनाथ शर्मा वीरगति को प्राप्त हो गए। 4 कुमाऊं के जवानों ने कबीलाइयों को 6 घंटे तक रोके रखा। ये 6 घंटे अंत में भारतीय सेना के लिए बेहद निर्णायक साबित हुए। 6 घंटे बाद जब मदद पहुंची तक तब 4 कुमाऊं के जवानों ने 200 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर कर दिया था। हालांकि इस लड़ाई में 4 कुमाऊं के 20 साथी भी वीरगति को प्राप्त हुए थे।
 
 
Major Somnath Sharma
 
 
देश के पहले परमवीर चक्र विजेता
 
 
मेजर सोमनाथ शर्मा को इस अदम्य साहस के लिए देश के प्रथम परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। अंत में 5 नवंबर की सुबह भारतीय सेना ने बडगाम में पाकिस्तानी हमलावरों के खिलाफ हमला बोला और बडगाम को मुक्त कराया। सभी हमलावर मारे गए और भारतीय सेना ने मेजर सोमनाथ शर्मा, सुबेदार प्रेम सिंह मेहता और बलिदान हुए 20 जवानों का बदला लिया। 3 नवंबर 1947 का वो दिन आज भी भारतीय सेना औऱ नौजवानों के दिलों में जोश भर देता है, जिसके हीरो थे...मेजर सोमनाथ शर्मा। बताते हैं की उनकी यूनिफार्म की जेब में गीता के कुछ पन्ने भी थे, जिन्हें वो हमेशा अपने साथ रखते थे।
 
 
संक्षिप्त परिचय
 
 
मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में हुआ था। उनके पिता जनरल AN शर्मा आर्मी मेडिकल सर्विसेज के डायरेक्टर जनरल पद से रिटायर हुए थे। आर्मी में रहते हुए उन्हें अधिकतर घर से बाहर रहना पड़ता था, जिसके चलते सोमनाथ का अधिकतर बचपन अपने नाना पंडित दौलत राम के साथ बीता था। 10 साल की उम्र में सोमनाथ को रॉयल मिलिट्री कॉलेज देहरादून में भर्ती कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने रॉयल मिलिट्री अकादमी जॉइन की। जहां से वो लेफ्टिनेंट बनकर बाहर निकले और 8/19 हैदराबाद इन्फेंट्री रेजिमेंट में कमीशन हुए। 1947 में जब जम्मू कश्मीर को अवैध रूप से हथियाने के इरादे से पाकिस्तानी सेना ने हमला किया तब, युद्ध के दौरान श्रीनगर रवाना होने से पहले आख़िरी रात दिल्ली में उन्होंने अपने दोस्त मेजर केके तिवारी से कहा था, “या तो मैं मरकर विक्टोरिया क्रॉस हासिल करूंगा या फिर आर्मी का चीफ बनूंगा” इत्तेफाक देखिए कि मेजर शर्मा अपना यह सपना तो नहीं पूरा कर सके किन्तु उनके छोटे भाई VN शर्मा 1988 में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बने।