1947-48 भारत-पाकिस्तान युद्ध ; देश के परमवीर योद्धा नायक जदुनाथ की शौर्यगाथा
21-नवंबर-2023
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देश को आजाद हुए अभी कुछ ही माह बीते थे और उधर मजहब के नाम पर भारत से अलग हुए पाकिस्तान की नापाक निगाहें जम्मू कश्मीर पर थीं। बंटवारे के बाद 1948 में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने के इरादे से एक बड़े भूभाग पर हमला कर दिया। भारतीय सेना अभी एक्टिव होती, इससे पहले पाकिस्तानी सेना झांगर पर कब्ज़ा करने में सफ़ल हो चुके थे। ये बात 24 दि संबर 1947 की है। झांगर पर पाकिस्तानी कब्जे के कारण मीरपुर और पूंछ के बीच संचार बंद हो गया था। अब पाकिस्तान का अगला निशाना जम्मू कश्मीर का नौशेरा सेक्टर था। नौशेरा को दुश्मनों से बचाने के लिए भारतीय सेना की राजपूत बटालियन को जिम्मेदारी सौंपी गई और नौशेरा के शेर कहे जाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में भारतीय सेना के वीर बहादुर जवानों ने अपना मोर्चा संभाला।
नायक जदुनाथ की शौर्यगाथा
50वीं पैरा ब्रिगेड के कमांडिंग ऑफिसर थे ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जिन्हें नौशेरा के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए नौशेरा के उत्तर-पश्चिम में अपने सेना की टुकड़ी को भेजने का फैसला किया। सैनिकों को छोटी-छोटी टुकड़ियों में बेहतरीन हमला करने लायक पोजिशन पर तैनात होने का निर्देश दिया गया। उन्हें निर्देश था कि वह पाकिस्तानियों पर हर तरफ से हमला करें ताकि वो पीछे भाग जाएं। साथ ही नौशेरा के उत्तर में तैनधार टॉप नाम की जगह है, जिसकी जिम्मेदारी नायक जदुनाथ सिंह को सौंपी गई। नायक जदुनाथ ने भी समय ना गंवाते हुए पिकेट पोस्ट 2 पर अपने सैनिकों को तैनात कर दिया।
उस दौरान जम्मू कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में एक ऐसा मोर्चा बन रहा था, जहां हमलावर भारतीय पिकेट के लिए अपना रास्ता बनाने में कामयाब रहे। नौशेरा पर पाकिस्तान के हमले की तमाम कोशिशे नाकाम साबित हो रही थी। किन्तु बावजूद इसके पाकिस्तान की ओर से लगातार हमला जारी था। 1 फरवरी 1948 के दिन भारतीय सेना के 50 पैरा ब्रिगेड ने दुश्मन से नौशेरा सेक्टर को वापस जीत लिया और पाकिस्तान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था। लेकिन 6 फरवरी 1948 के तेनधर की लड़ाई ने जो इतिहास बनाया, वह भारतीय सेना के जवानों की वीरता और कौशल नेतृत्व का शानदार प्रदर्शन था। उस युद्ध के दौरान नायक जदुनाथ सिंह ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था। उन्होंने अपनी जान की परवाह किये बगैर अपने सैन्य दल को नौशेरा सेक्टर को वापस जीतने में मदद की थी।
तेनधर की लड़ाई, 1948
दिसंबर 1947 में पाकिस्तानी दुश्मनों से लड़ने के लिए नायक जदुनाथ सिंह की 1 राजपूत रेजिमेंट को जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया था। 5 फरवरी 1948 के दिन दुश्मनों ने इस क्षेत्र में तेनधर रिज के पिकेट पर आग लगाकर हमला किया था। उस वक्त पूरे रिज और आसपास की पहाड़ियाँ गोलियों और मोर्टार की आग से ढकी थी। दुश्मन अंधेरे में भारतीय पिकेट के लिए अपना रास्ता बनाने में कामयाब हुए थे। जिसके बाद 6 फरवरी की सुबह पोस्ट पर कब्जा करने के लिए दुश्मनों द्वारा बड़े पैमाने पर हमले किये गए थे। नायक जदुनाथ सिंह जिन्होंने पिकेट नं .2 की कमान संभाली थी उन्होंने उस दौरान अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था।
उस दौरान वह अपनी टुकड़ी के साथ दुश्मनों को भ्रम में डालने में कामयाब हुये थे। दुश्मन की ओर से किये जा रहे हमले में उनकी टुकड़ी के के चार जवान घायल हो गये थे। लेकिन उन्होंने दूसरे हमले के लिए सेना को फिर से संगठित किया। घायल होने बावजूद टुकड़ी अपने पोस्ट की रक्षा करती रही। इस दौरान जदुनाथ का ब्रेन-गनर गंभीर रूप से घायल हो गया था, इसलिए उन्होंने खुद ब्रेन-गन को संभाला और दुश्मनों पर कार्रवाई जारी रखी। इसके बाद दुश्मनों ने तीसरी बार फिर भारतीय चौकी पर हमला किया। गंभीर रूप से घायल हो चुके जदुनाथ की वीरता ने एक बार फिर दुश्मनों को रूकने पर मजबूर कर दिया था। हालांकि इस दौरान जदुनाथ सिंह के सिर और सीने में दुश्मनों की गोलियां लगने से वीरगति को प्राप्त हो गये थे।
मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित
नायक जदुनाथ सिंह अपनी टुकड़ी में एकमात्र बचे होने के बावजूद दुश्मनों पर अपनी स्टेन-गन से हमला करने के दौरान शहीद हुये थे। दुश्मनों की गोलियों ने उसके सिर और छाती को छेद दिया, जिसके कारण नायक जदुनाथ सिंह ने अपनी अंतिम सांस ली थी। भारतीय सेना के बहादुर सैनिक को उनकी वीरता के लिए मरणोपंरात राष्ट्र के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार "परमवीर चक्र" से सम्मानित किया गया था
जीवन परिचय
जदुनाथ सिंह ने 21 नवंबर 1916 को उत्तर प्रदेश में शाहजहाँपुर जिले के खजूरी गाँव के किसान परिवार में जन्म लिया था। आठ भाई-बहनों में से एक जदुनाथ को परिवार एक अच्छी शिक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं था। इसलिए उन्होंने गाँव के एक स्कूल में शिक्षा ग्रहण की थी। हालाँकि जदुनाथ सिंह कुश्ती की क्षमताओं के लिए अपने गाँव में काफी जाने जाते थे। जदुनाथ सिंह ब्रिटिश सेना के राजपूत रेजिमेंट में 21 नवंबर 1941 के दिन भर्ती हुये थे। अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद नायक जदुनाथ सिंह 1 राजपूत में शामिल हो गये और एक बहादुर सैनिक के रूप में अपनी बेहतरीन क्षमताओं को साबित करते हुये उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया था। सेना में लगभग 6 साल की सेवा के बाद उन्हें अपना पहला प्रमोशन मिला और जुलाई 1947 में लांस नायक का पद मिला था।