10 नवंबर 1948, परमवीर योद्धा लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे की वीरगाथा ; जिनकी सुझबुझ और बहादुरी से राजौरी को पाकिस्तानी सैनिकों से मुक्त कराने में मिली मदद

    09-नवंबर-2023
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Paramveer warrior Lieutenant Ram Raghoba Rane
 
 
लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे - जन्म 26 जून 1918, गाँव- हावेरी, कर्नाटक
 
 
1947 में मजहब के नाम पर भारत से अलग हुए पाकिस्तान की नापाक निगाहें हमेशा से जम्मू कश्मीर पर थीं। लिहाजा बंटवारे के बाद 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने के इरादे से एक बड़े भूभाग पर हमला कर दिया। नवंबर के महीने तक कबाइलियों की भेष में पाकिस्तानी सेना ने पुंछ जिले के ज्यादातर हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया था। पाकिस्तानी का इरादा श्रीनगर पर कब्ज़ा करने का था, जिसे 9 नवंबर 1947 तक भारतीय सेना ने नाकामयाब कर दिया था। लेकिन पाकिस्तान हमलावर अब पुंछ पर अपना कब्ज़ा कर चुके थे। इस हमले की वजह से बहुत सारे लोग राजौरी शहर में इकठ्ठे हो गए। भारतीय सेना अभी एक्टिव होती, इससे पहले पाकिस्तानी सेना झांगर पर भी अपना कब्ज़ा करने में सफ़ल हो चुकी थी। झांगर पर पाकिस्तानी कब्जे के कारण मीरपुर और पुंछ के बीच संचार बंद हो गया था। राजौरी में पाकिस्तानी सेना ने दीपावली के दिन शहर पर हमला बोला। सभी लोग राजौरी में तहसील भवन में जमा हो गए थे। जब पाकिस्तानी सेना ने हमला किया तो तहसील भवन के आस पास लोग निहत्थे थे। लेकिन पाकिस्तानी सेना ने राजौरी में इन हजारों निहत्थे लोगों की नृशंस हत्या कर दी। हजारों हिन्दू, सिख बहन बेटियों और महिलाओं के साथ पाकिस्तानी सेना ने हैवानियत की सारे हदें पार कर दी।
 
 
Pakistani Invadors
 
 पाकिस्तानी हमलावर 
 
 
राजौरी को मुक्त कराने के लिए आगे बढ़ी भारतीय सेना
 
 
पाकिस्तान के कब्जे से जम्मू कश्मीर के इन बड़े भू भाग को मुक्त कराने की जिम्मेदारी भारतीय सेना निभा रही थी। 18 मार्च 1948 तक नौशेरा के झांगर पोस्ट को भारतीय सेना ने पाकिस्तानियों से मुक्त करा लिया था। अब बारी थी राजौरी को मुक्त कराने की। राजौरी तक का रास्ता तय करना भारतीय सेना के लिए बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण था। क्योंकि पाकिस्तानी सैनिकों ने इन रास्तों में लैंड माइंस बिछा रखे थे। इसके अलावा रास्ते में पेड़ भी काटकर गिरा दिए थे, जिससे राजौरी पहुंचना भारतीय सेना के लिए सम्भव ना हो सके और पाकिस्तानी अपने नापाक मंसूबों में कामयाब हो सके। बहरहाल भारतीय सेना ने भी इस चुनौती को स्वीकार करते हुए दुश्मनों को उनकी औकात दिखाने के लिए 8 अप्रैल 1948 को चौथी डोगरा बटालियन राजौरी की तरफ आगे बढ़ी और बटालियन ने नौशेरा से 11 किमी दूर बरवाली रिज को पाकिस्तानियों से मुक्त करा लिया।
 
 
Jhangar Recapture
 
बहादुरी के किस्से
 
 
बरवाली रिज और चिंगस को मुक्त कराने के बाद भारतीय सेना का अब आगे बढ़ पाना मुश्किल होने लगा था। कारण था रास्तों में बिछाये गए माइंस और विशाल पेड़। लिहाजा सेना की डोगरा रेजिमेंट को इस मुसीबत से बाहर निकालने के लिए तब 37वीं असॉल्ट फील्ड कंपनी के एक सेक्शन कमांडर राम राघोबा राणे (Lieutenant Ram Raghoba Rane) मदद के लिए आगे आए। उन्होंने मार्ग साफ़ करने वाली टीम का नेतृत्व किया और खुद भी मार्ग में लगे माइंस को हटाने लगे। इस दौरान ऊँचाई पर मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों को इसकी भनक लगी और वो राघोबा राणे और उनकी टुकड़ी पर मोर्टार दागने शुरू कर दिए. दुश्मनों के इस हमले में राणे के 2 साथी वीरगति को प्राप्त हो गए और 5 जवान गंभीर रूप से घायल। हालाँकि इस हमले में लेफ्टिनेंट राणे भी जख्मी हुए थे लेकिन वे और उनकी टीम रुकी नहीं और सेना के लिए मार्ग बनाते रहे।
 
 
दुश्मनों पर भारतीय सेना के जवाबी हमलो के बीच लेफ्टिनेंट राणे और उनकी टीम ने बारूदी सुरंग शाम तक हटा दी। इससे टैंक्स को आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया। लेकिन अभी भी रास्ता सुरक्षित नहीं था उसे टैंकों के चलने लायक बनाना था। राणे ने रात भर में टैंकों के लिए रास्ता बनाया। अगले दिन फिर उनके सेक्शन ने लगातार 12 घंटे काम किया और बारूदी सुरंगें हटाते रहे रास्ता बनाते रहे। राणे के इस बहादुरी के चलते सेना को राजौरी तक पहुँचने में मदद मिलती रही। जहां रास्ता सही होता था, वहां पर वो डायवर्जन बनाते थे।
 
 
 
 
तीन दिन लगातार काम करके बनाया रास्ता
 
 
राणे और उनकी टीम पाकिस्तानी सेना के गोलियों की बौछार और मोर्टारों के हमलों के बीच पूरी बहादुरी से काम करती रही। 10 अप्रैल को राम राघोबा राणे अल सुबह उठे और रास्ता क्लियर करने में लग गए। 2 घंटे में उन्होंने काफी लम्बा रास्ता साफ कर दिया। इस दौरान पाकिस्तानी लगातार मोर्टार और मशीन गन से हमला करते रहे। राणे के इस काम की वजह से चौथी डोगरा बटालियन 13 किलोमीटर और आगे बढ़ पाई। राणे और उनकी टीम बारूदी सुरंगे हटाने, रास्ता साफ करने और उन्हें ठीक करने का काम कर रही थी और दूसरी तरफ डोगरा रेजिमेंट और उनके घातक टैंक पाकिस्तानियों को करारा जवाब दे रहे थे।
 
 
Jhangar Recapture Ram Raghoba Rane
 
 
पाकिस्तानी चूँकि ऊंचाई पर मौजूद थे जिससे वह आसानी से सड़क पर सीधे हमला कर रहे थे। पाकिस्तानियों की यह चाल देखकर राम राघोबा राणे ने एक टैंक के पीछे छिपकर रोड ब्लॉक को ब्लास्ट करके हटाया। यह काम उन्होंने रात होने से पहले खत्म कर दिया था। अगले दिन 11 अप्रैल को राणे और उनकी टीम ने फिर 17 घंटे काम किया। अब ये लोग चिंगास तक पहुंच गए थे यानि नौशेरा और राजौरी का मिड-वे। यह पुराना मुगलकालीन मार्ग था। 8 से 11 अप्रैल के बीच जो रास्ते बनाए उनकी वजह से भारतीय सेना राजौरी तक पहुंच पाई। राजौरी पहुँचते ही भारतीय सेना के बहादुर जवानों ने कबाइलियों की भेष में बैठी पाकिस्तानी सेना के 500 से ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। भारतीय शूरवीरों का पराक्रम देख अन्य पाकिस्तानी सैनिक अपनी जान बचाकर भाग निकले और हजारों की संख्या में घायल भी हुए।
 
 
Paramveer Awardee Ram Raghoba Rane
 
 
जीवित रहते परमवीर चक्र से सम्मानित
 
 
21 जून 1950 को सेकेंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे को दुश्मनों के समक्ष अदम्य साहस और वीरता का परिचय देने के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसके अलावा हाल में बीते वर्ष केंद्र की मोदी सरकार ने देश के सभी 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर अंडमान निकोबार के 21 द्वीपों के नाम रखें। इनमें 1 द्वीप का नाम राघोबा राणे द्वीप रखा गया था। राम राघोबा राणे देश के पहले ऐसे भारतीय सौनिक थे जिन्हें यह सम्मान जीवित रहते मिला था। उससे कुछ महीने पहले ही उन्हें लेफ्टिनेंट का पदभार सौंपा गया था। इसके बाद उनकी बहादुरी को देखते हुए 1954 में कैप्टन बनाया गया। तत्पश्चात 25 जनवरी 1968 को राघोबा राणे मेजर के पद से सेवानिवृत हुए। 1994 को पुणे के कमांड हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम साँसे ली।
 
 

Paramveer Awardee Ram Raghoba Rane 
 
राघोबा राणे का संक्षिप्त परिचय
 
 
26 जून 1918 को कर्नाटक के हावेरी गाँव में जन्में राम राघोबा राणे के पिता राज्य पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात थे। कहा जाता है कि राणे जब 12 साल के थे तब उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन को बेहद करीब से देखा था। आंदोलन से वह इतना प्रभावित हुए कि उनके साथ जुड़ने का मन बना लिया था। लेकिन पिता को यह मंजूर नहीं था। इसलिए वे पैतृक गांव चंदिया चले गए। इस बात को 10 साल बीत चुके थे और उधर बर्मा बॉर्डर पर युद्ध छिड़ चुका था। राणे के अंदर देश सेवा का बीज तो पहले ही अंकुरित हो गया था, लेकिन अब उस अंकुरित हुए बिज को सिंचित कर उसे बड़ा करने की जरुरत थी।
 
 
वह सेना में भर्ती होने का सपना संजोने लगे। 10 जुलाई 1940 को 22 वर्ष की उम्र में राम राघोबा राणे ब्रिटश भारतीय सेना की बॉम्बे इंजीनियर्स रेजिमेंट में भर्ती हुए। उन्हें सबसे पहले 26वीं इन्फैंट्री डिवीजन की इंजीनियरिंग यूनिट में तैनात किया गया, जो उस दौरान बर्मा बॉर्डर पर जापानियों से लोहा ले रही थी। इस दौरान उन्होंने युद्ध में भी अपनी बहादुरी से सभी को चकित कर दिया था। परिणाम स्वरूप उन्हें पद्दोन्नति मिली और वह अब सिपाही से JCO यानि (Junior Commissioned Officer) हो गए। जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी हमले के बीच उन्हें वहां पोस्टिंग मिली।
 
 
 
 
उज्जवल मिश्रा (अर्नव)