1971 'बसंतर युद्ध' के परमवीर मेजर होशियार सिंह की वीरगाथा ; जिनका पराक्रम देख युद्ध भूमि छोड़ उल्टे पाँव भागने को मजबूर हुई थी पाकिस्तानी सेना

06 Dec 2023 11:10:12
 
Story of Major Hoshiyar Singh Dahiya Herro Of Basantar
 
 
(जन्म : 5 मई, 1937 ; मृत्यु : 6 दिसम्बर, 1998)
 

आजादी के इन 76 वर्षों में भारत ने अब तक 5 युद्ध लड़े हैं। इनमें से 4 युद्धों में भारत का मुकाबला हमारे देश पर अपनी नापाक नजर रखने वाले पाकिस्तान (Pakistan) से हुआ है। इन चारों युद्धों की शुरुआत भले ही पाकिस्तान ने की हो पर युद्ध का अंत हमेशा भारत के जाबांज और वीर बहादुर सैनिकों ने किया है और हर युद्ध में जीत का जश्न भारत में मना। मेजर होशियार सिंह दहिया (Major Hoshiyar Singh Dahiya) की वीरता की कहानी भी इन्हीं में से एक है। मेजर होशियार सिंह बसंतर की लड़ाई (Battale Of Basantar 1971) में घायल होने के बाद भी अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किये थे और घायल होने के बावजूद पाकिस्तानी सेना को वापस भागने पर मजबूर कर दिया था।

 
जीवन परिचय
 

मेजर होशियार सिंह दहिया का जन्म 5 मई, 1936 को सोनीपत, हरियाणा (Sonipat, Hariyana) के एक गाँव सिसाना में हुआ था। उनकी शुरूआती शिक्षा स्थानीय हाई स्कूल में और उसके बाद जाट सीनियर सेकेन्डरी स्कूल में हुई थी। पढ़ाई में अच्छे होने के साथ-साथ होशियार सिंह खेल-कूद में भी आगे रहते थे। इसी कारण होशियार सिंह का चयन राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के लिए बॉलीबाल की पंजाब कंबाइंड टीम में हुआ था। इसी टीम को बाद में राष्ट्रीय टीम में चुना गया था और टीम के कैप्टन होशियार सिंह थे। इनका एक मैच जाट रेजिमेंटल सेंटर के एक उच्च अधिकारी ने देखा और वे होशियार सिंह से काफी प्रभावित हुए थे। यहीं से होशियार सिंह के फौज में शामिल होने की भूमिका बनी। साल 1957 में उन्होंने जाट रेजिमेंट (Jat Regiment) में प्रवेश लिया और बाद में वे 3-ग्रेनेडियर्स में अफसर बने थे। साल 1965 में हुये भारत-पाकिस्तान युद्ध (India Pakistan War During 1965) में भी होशियार सिंह ने अहम् भूमिका निभाई थी। बीकानेर सेक्टर (Bikaner Sector) में अपने क्षेत्र में आक्रमण पेट्रोलिंग करते हुए उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण सूचना सेना तक पहुंचाई, जिसके कारण बटालियन को जीत मिली थी।

 
Battale Of Basantar 1971 Major Hoshiyar Singh
 
 
1971 का युद्ध और बांग्लादेश का उदय
 

पाकिस्तान (Pakistan) के साथ हुए इन चारों युद्धों में से 1971 के युद्ध (1971 War) को बेहद ही महत्वपूर्ण माना जा सकता है। कारण है कि इस युद्ध में पाकिस्तान की सेना को भारतीय सेना के सामने घुटने टेंकने पर मजबूर होना पड़ा था। 1971 के इस युद्ध में पाकिस्तान के पराजित होने के साथ एक ऐसे नए राष्ट्र (बांग्लादेश) (Bangladesh) का उदय हुआ जो पाकिस्तान का हिस्सा था और वर्षों से पाकिस्तानी फ़ौज का अन्याय सहन कर रहा था। जब से पाकिस्तान बना,तभी से पश्चिम पाकिस्तान सत्ता का केंद्र रहा। दूसरी ओर पूर्वी पाकिस्तान, पूर्वी बंगाल था जो विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से में आ गया था। यह हिस्सा बांग्ला भाषियों से भरा था। पाकिस्तान फ़ौज पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) के लोगों पर जो जुल्म किया उससे लगभग पूरी दुनिया वाकिफ है। पाकिस्तानी सैनिक यहाँ के लोगों को गोलियों से भूनने लगीं। 

 
बमबारी से निहत्थे नागरिकों को तथा बांग्ला भाषी अर्ध सैनिक बलों को कुचला जाने लगा और हालात ऐसे हो गए कि पाकिस्तानी सैनिकों की बर्बरता से बचने के लिए बांग्ला भाषी लोग भाग कर भारत में शरण लेने लगे देखते-देखते लाखों शरणार्थी भारत की सीमा में घुस आए। उनके भोजन और आवास की जिम्मेदारी भारत पर आ गई। भारत ने जब पाकिस्तान से इस बारे में बात की, तो उसने इसे अपना अंदरूनी मामला बताते हुए भारत को इससे अलग रहने को कहा, साथ ही शरणार्थियों की समस्या के बारे में पाकिस्तान ने हाथ झाड़ लिए। ऐसे में भारत के पास सिर्फ एक चारा था कि वह अपने सैन्य बल का प्रयोग करे जिससे पूर्वी पाकिस्तानी नागरिकों का वहाँ से भारत की ओर पलायन रुक सके। इस मजबूरी में भारत को उस सैनिक कार्रवाई में उतरना पड़ा जो अंततः 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के रूप में परिवर्तित हो गई।
 
 
Battale Of Basantar 1971
 
 
परमवीर योद्धा मेजर होशियार सिंह की शौर्य गाथा
 

1971 में हुए भारत पाकिस्तान के इस युद्ध को भारत ने कई मोर्चो पर लड़ा इनमें से एक मोर्चे की जिम्मेदारी मेजर होशियार सिंह (Major Hoshiyar Singh) को भी सौंपी गई। भारत की सैन्य दक्षता तथा शौर्य के आगे पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े और अंततः पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा समूचे पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बन गए, जो बांग्लादेश कहलाया। इस युद्ध में भारत ने न केवल विजय हासिल की वरन् पूर्वी पाकिस्तान के निरीह, निहत्थे नागरिकों को पाकिस्तानी सैनिकों के बर्बरता का शिकार होने से भी बचाया।

 
शकरगढ़ पठार भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्त्वपूर्ण ठिकाना था। भारत अगर इस पर क़ब्ज़ा जमा लेता, तो वह एक तरफ तो जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) तथा उत्तरी पंजाब को सुरक्षित रख सकता था, दूसरी ओर पाकिस्तान के ठीक मर्मस्थल पर प्रहार कर सकता है। इसी तरह अगर पाकिस्तान इस पर क़ब्ज़ा जमाता तो वह भारत के भीतर घुस सकता था। जाहिर है कि यह बेहद महत्वपूर्ण ठिकाना था जिसपर पाकिस्तान की ख़ास नजर थी।
 
 
Battale of Basantar 1971

बसंतर का युद्ध (Battale Of Basantar)
 

शकरगढ़ पठार का 900 किलोमीटर का वह संवदेनशील क्षेत्र पूरी तरह से प्राकृतिक बाधाओं से भरा हुआ था जिस पर दुश्मन ने बहुत सी बारूदी सुरंगें बिछाई हुई थीं। 14 दिसम्बर 1971 को 3 ग्रेनेडियर्स के कमांडिंग ऑफिसर को सुपवाल खाई पर ब्रिगेड द्वारा हमला करने के अदेश दिए गए। इस 3 ग्रेनेडियर्स को जरवाल तथा लोहाल गाँवों पर क़ब्ज़ा करना था। 15 दिसम्बर 1971 को 2 कम्पनियाँ, जिनमें से एक बटालियन का नेतृत्व मेजर होशियार सिंह संभाल रहे थे, हमले के लिए आगे बढ़ीं। दोनों कम्पनियों ने अपनी फ़तह दुश्मन की भारी गोलाबारी, बमबारी तथा मशीनगन की बौछार के बावजूद हासिल कर ली। इन कम्पनियों ने पाकिस्तानी सैनिकों के 20 जवानों को युद्ध बंदी बना लिया और भारी मात्रा में उनका हथियार और गोलाबारूद अपने कब्जे में ले लिया उन हथियारों में उन्हें मीडियम मशीनगन तथा रॉकेट लांचर्स मिले।

 
1971 basantar india pakistan war 
 
अगले ही दिन 16 दिसम्बर, 1971 को 3 ग्रेनेडियर्स बटालियन को दुश्मनों के साथ घमासान युद्ध का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान जवाबी हमला कर अपना गंवाया हुआ क्षेत्र वापस पाने की जुगत में लगा हुआ था। किन्तु दूसरी तरफ भारतीय सैनिकों का भी मनोबल सातवें आसमान पर था जो दुश्मनों पर भारी पड़ रही थी। भारतीय सैनिक युद्ध में पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे जवाबी हमलों को लगातार नाकाम किए जा रहे थे। 17 दिसम्बर, 1971 को सूरज की पहली किरण के पहले ही दुश्मन की एक बटालियन ने बम और गौलीबारी से मेजर होशियार सिंह की कम्पनी पर फिर हमला कर दिया। मेजर होशियार सिंह ने अपने जवानों का हौसला बढ़ाते हुए दुश्मनों के इस हमले का जवाब एकदम निडर होकर दिया, जिसमें कई पाकिस्तानी सैनिक ढेर भी हुए।
 

Battale Of Basantar 1971 
 
पाकिस्तान के कमांडिंग ऑफिसर समेत 89 सैनिक ढेर
 

किन्तु इस बीच मेजर होशियार सिंह भी दुश्मनों की भारी गोलीबारी में घायल हो चुके थे, बावजूद इसके वो अपने सैनिकों का मनोबल बढाते रहे। उन्होंने खुद भी एक मीडियम मशीनगन अपने हाथों में थाम ली यह देख उनकी बटालियन के अन्य सैनिकों का जोश पूरी तरह से बढ़ गया और वो दुश्मनों पर टूट पड़े। उस दिन पाकिस्तानी सेना के 89 जवान मारे गए, जिनमें उनका कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद अकरम राजा भी शमिल था। 35 फ्रंटियर फोर्स राइफल्स का यह ऑफिसर भारतीय सैनिकों द्वारा अपने 3 और अधिकारियों के साथ उसी मैदान में मारा गया था। 


Battale Of Basantar 1971 
 
सर्वोच्च सैन्य सम्मान से किया गया सम्मानित
 

शाम 6 बजे आदेश मिला कि 2 घण्टे बाद युद्ध विराम हो जाएगा। लिहाजा भारतीय सेना की दोनों ही बटालियन इन 2 घण्टों में ज्यादा-से-ज्यादा वार करके पाकिस्तान को युद्ध के मैदान में धूल चटा देना चाहते थे और हुआ भी वही। हालाँकि जब युद्ध विराम का समय आया तो उस समय तक मेजर होशियार सिंह की 3 ग्रेनेडियर्स का 1 अधिकारी तथा 32 फौजी वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। इसके अलावा 3 अधिकारी 4 जूनियर कमीशंड अधिकारी तथा 86 जवान गोलीबारी में घायल हुए थे। परन्तु मेजर होशियार सिंह को जो जिम्मेदारी सौंपी गई थी उसे उन्होंने अपने टीम के साथ पूरा किया और पाकिस्तान को युद्ध के मैदान में धूल चटा दिया। युद्ध के खात्में के बाद मेजर होशियार सिंह की बटालियन को जीत का सेहरा पहनाया गया। भारत सरकार ने मेजर होशियार सिंह को कुशल नेतृत्व, असाधारण युद्ध कौशल, अदम्य साहस के लिए सर्वोच्च भारतीय सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया। 

 
Battale of Basantar during 1971 india pakistan war
 
 
 
 
 
 
 
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