17 मई 1999 : कारगिल युद्ध में अकेले 10 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारने वाले कैप्टन अमित भारद्वाज की शौर्य गाथा
14 मई 1999 जानकारी मिली कि कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठ की है। इस बात का अंदेशा होने के बाद 14 मई , 1999 को कैप्टेन सौरभ कालिया अपने 5 जवानो के साथ पेट्रोलिंग पर निकल गए। 4 जाट रेजीमेंट की इस पेट्रोलिंग पार्टी को सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण 'बजरंग पोस्ट' तक पहुंचना था। हालांकि बिगड़ते मौसम और भारी बर्फ़बारी के कारण सेना की यह टुकड़ी उस दिन बजरंग पोस्ट तक नहीं पहुँच सकी। लिहाजा अगले दिन जब वे पोस्ट तक पहुँचने वाले थे तभी अचानक उन पर पाकिस्तानी सेना ने हमला कर दिया। दरअसल मौसम का फायदा उठाकर पाकिस्तानी सेना घुसपैठ कर पहले से ही चौकी पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान की तरफ से जारी गोलीबारी का जवाब सौरभ कालिया और उनकी टीम के अन्य जवानों ने देना शुरू कर दिया। लेकिन थोड़ी ही देर में उनके पास जो हथियार और गोला बारूद था वो खत्म हो गया। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने उनको घेर लिया और वे गिरफ्तार कर लिए गए।
सर्च ऑपरेशन पर निकले कैप्टन अमित भारद्वाज
चूंकि पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी मिलने पर सौरभ कालिया की टीम केवल पेट्रोलिंग करने और जानकारी इकट्ठा करने पोस्ट की तरफ बढ़ी थी। उन्होंने भारी मात्रा में हथियार नहीं रखा था, लिहाजा बेहद कम वक्त में ही उनके हथियार खत्म हो गए और अन्ततः पाकिस्तानी सेना द्वारा बंधक बना लिए गए। जब सौरभ कालिया की टीम लापता हो गई तो उस समय कैप्टन अमित भरद्वाज अपने 30 जवानों की टीम के साथ उन्हें ढूंढने निकले। यह टीम जब बजरंग पोस्ट के पास पहुंची तो कैप्टेन अमित भारद्वाज को इस बात का आभास हुआ कि पाकिस्तानी घुसपैठिये यहाँ बड़ी संख्या में छिपे बैठे हैं। ऐसे समय में उन्होंने अपनी टुकड़ी की फॉर्मैशन को कुछ इस तरह से बनाने के आदेश दिए कि एक सुरक्षित स्थान से मौर्चा संभाला जा सके और नीचे बेस कैम्प तक पाकिस्तानी घुसपैठ की सूचना दी जा सके।
अकेले 10 पाकिस्तानी सैनिकों को उतारा मौत के घाट
अमित भारद्वाज ने समझदारी का परिचय देते हुए अपनी टुकड़ी को थोड़ा नीचे उतरने के आदेश दिए और खुद एक जवान हवलदार राजबीर के साथ मोर्चा संभाला ताकि अपनी टुकड़ी को कवर फायर दिया जा सके। तभी अचानक पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना के इस टुकड़ी का आहट मिला। पाकिस्तानी सेना ने फायरिंग शुरू कर दी। पाकिस्तानी सेना बेहद सुरक्षित स्थान पर पहाड़ के ऊपर की तरफ थी, लेकिन बावजूद इसके कैप्टेन अमित और हवलदार राजबीर ने पाकिस्तानियों को मुहतोड़ जवाब दिया। इस गोलीबारी के बीच अमित के दोनों पैरो में गोलिया लगी थी लेकिन उसके बाद भी हिम्मत ना हारते हुए वे लड़ते रहे। आखिरकार अपने उत्तम युद्ध कौशल से कैप्टन अमित ने कम से कम 10 के करीब पाकिस्तानी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया।
57 दिनों तक बर्फ में रहा अमित का पार्थिव शरीर
आखिरकार देश की सुरक्षा में तैनात रहने वाले कैप्टन अमित पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लेते हुए 17 मई 1999 को युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हो गए। कैप्टेन अमित भारद्वाज का मृत शरीर करीब 57 दिनों तक पहाड़ी पर भारी बर्फबारी के बीच पड़ा रहा। अमित के परिवार वाले इस बात को मानने को ही तैयार नहीं थे कि उनका बेटा अब जीवित नहीं है। 13 जुलाई , 1999 को युद्ध की समाप्ति के बाद अमित भारद्वाज का पार्थिव शरीर बरामद हुआ। हड्डिया कंपा देने वाली ठंड में किस तरह से हमारे देश के जवानो ने पाकिस्तानी सेना का डटकर मुकाबला किया होगा, इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब उनका शव बरामद हुआ तब भी कैप्टेन अमित भारद्वाज ने अपनी बन्दूक हाथ में पकड़ी थी मानो दुश्मन को अभी भी वो चुनौती दे रहे हो ।
27 वर्ष की उम्र में देश के लिए दिया बलिदान
कैप्टेन अमित भारद्वाज जयपुर के रहने वाले थे । महज 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान दिया। अपने स्कूली दिनों में बेहद सरल स्वभाव के कारण कैप्टन अमित अपने टीचर्स के बीच बेहद प्रिय थे। उनकी पहली पोस्टिंग पिथोरागढ़ थी। कारगिल युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले ही कारगिल के काकसर में उनकी पोस्टिंग हुई थी ।