प्रजा परिषद : स्वतंत्र भारत का पहला राष्ट्रवादी आंदोलन और डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी का योगदान

16 Jun 2023 16:51:46

Dr Syama Prasad Mukherjee
 
देश की स्वाधीनता के बाद भारत में नए संविधान का निर्माण हो रहा था। धीरे-धीरे कर सभी देसी रियासतों में भारतीय संविधान लागू होना था। लेकिन जम्मू कश्मीर में जवाहर लाल नेहरू की अदूरदर्शिता और शेख़ अब्दुल्ला की चालबाज़ियों के चलते भारतीय संविधान की विभिन्न धाराओं को जम्मू कश्मीर में लागू होने से रोक दिया गया। 1950 में देश संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया और ये आर्टिकल परिणाम था शेख अब्दुल्ला की विभाजनकारी नीतियों का और नेहरू द्वारा शेख को अंध-समर्थन देने का। अनुच्छेद 370 की आड़ में जम्मू कश्मीर में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान की नीति अपनाई जा रही थी। साथ ही ऐसी कई नीतियाँ बनाई जा रही थीं जो देश के संविधान के विरुद्ध थी।
 

Dr Syama Prasad Mukherjee 
 
शेख की कुनीतियों का विरोध करने के लिए जम्मू कश्मीर में एक आंदोलन शुरू हुआ- प्रजा परिषद् आंदोलन। यह आंदोलन भारतीय संविधान के समर्थन में था। जम्मू में पंडित प्रेमनाथ डोगरा इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। देखते ही देखते यह आन्दोलन एक विशाल जनांदोलन का रूप ले लिया। दो विधान, दो निशान और दो प्रधान वाली इस अलगाववादी नीति को राष्ट्रीय स्तर पर सबसे पहले चुनौती जनसंघ के संस्थापक डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी ने दी थी। वो भी ऐसे वक्त में जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपने घनिष्ठ मित्र शेख़ अब्दुल्ला के ख़िलाफ़ एक शब्द भी सुनने को तैयार नहीं थे। डॉ मुखर्जी का यह स्पष्ट मत था कि एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान किसी क़ीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। उनका मानना था कि ऐसी नीतियों से अलगावाद को बल मिलता है लिहाज़ा ऐसी अलगाववादी नीतियों को उखाड़ फेंकना चाहिए।

Dr Syama Prasad Mukherjee
 
डॉक्टर श्याम प्रसाद मुखर्जी जीवन पर्यंत जम्मू कश्मीर में एक निशान, एक विधान और एक संविधान के लिए संघर्षरत रहे। इधर जम्मू कश्मीर में शेख़ अब्दुल्ला की देश विरोधी नीतियों को ख़त्म करने के लिए शुरू हुआ आंदोलन एक जनआंदोलन के रूप में उबर चुका था। आंदोलन को दबाने और सत्याग्रहियों की आवाज़ को कुचलने के लिए शेख़ अब्दुल्ला ने दमनकारी नीतियाँ अपनानी शुरू कर दीं। सत्याग्रहियों को पकड़ कर जेल में डाला जाने लगा, बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों को गोली मार दी गई। पर बावजूद इसके लोगों ने अपनी हक़ की लड़ाई को जारी रखा। अब्दुल्ला की इस कुकृत्य की जानकारी केंद्र में बैठी नेहरू सरकार को थी पर उन्होंने यह सब कुछ देखते हुए अपनी आँखें बंद कर ली थी।
 
जम्मू कश्मीर में जो कुछ हो रहा था उसकी जानकारी श्याम प्रसाद मुखर्जी को भलीभाँति थी। लिहाज़ा दिल्ली में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, एक भारतीय और एक सांसद के नाते जम्मू कश्मीर में क्या हो रहा है, यह देखना हमारा धर्म है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा, “एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे।” इस नारे के साथ उन्होंने घोषणा की कि वो जम्मू कश्मीर जाएँगे। उन दिनों जम्मू कश्मीर में जाने के लिए परमिट लगता था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा है और वो बिना परमिट के वहाँ जाएँगे। 11 मई 1953 को डॉ. मुखर्जी को केन्द्र एवं जम्मू कश्मीर सरकार के निर्देश पर रावी नदी के माधोपुर पुल से गिरफ्तार कर लिया गया।
 
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी गिरफ्तारी के दौरान कहा कि- "वाजपेयी वापस जाओ और देशवासियों को बताओं कि मैं जम्मू कश्मीर में बिना परमिट के प्रवेश कर चुका हूँ।" श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रीनगर जेल में रखा गया। वहाँ उनकी तबियत ख़राब हो गयी, उनका इलाज भी उचित रूप से नहीं किया गया।
 

Dr Syama Prasad Mukherjee
 
 
डॉ. मुखर्जी के पूर्ववर्ती डॉक्टरों के मना करने के बावजूद इंजेक्शन दिया गया, जिसके कुछ देर बाद ही उनकी रहस्यमयी हालत में मृत्यु हो गई। डॉ. मुखर्जी की मौत साजिश के तहत हुई और मौत की जांच के लिए नेहरू बिल्कुल तैयार नहीं थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हत्या स्वतंत्र भारत की प्रथम राजनीतिक हत्या थी। अंततोगत्वा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान के उपरान्त जम्मू कश्मीर में परमिट व्यवस्था खत्म हो गई। लेकिन जम्मू कश्मीर में फिर भी अनेक अलगाववादी तत्व रह गए थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान की प्रेरणा पाकर जम्मू कश्मीर में वहाँ के लोगों ने अपना आंदोलन जारी रखा।
 
अगस्त, 2019 में अलगाववादी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार अनुच्छेद 370 और 35A को भी समाप्त कर दिया गया। वहाँ पर राज्य के अलग संविधान और ध्वज को ख़त्म कर दिया गया। आज जम्मू कश्मीर में वहाँ को जनता के वेलफेयर के लिए अनेक क़ानून और आर्टिकल लागू कर दिए गए हैं, जैसे वहाँ के आदिवासी समाज को चुनावों में आरक्षण, दलित , वेस्ट पाकिस्तानी शरणार्थियों, गोरखा , दिव्यांगो और महिलाओं को आधिकारो को प्राप्ति हुई है। इसका श्रेय डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जाता है।
 
 
1947 से लेकर 1953 तक चला 'प्रजा परिषद' का आन्दोलन, जम्मू-कश्मीर राज्य के लोकतंत्रीकरण और उसके संघीय संवैधानिक व्यवस्था में एकीकरण के लिए चलाया गया था। इस आन्दोलन की अन्तिम परिणति तत्कालीन 'जनसंघ' के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की श्रीनगर की जेल में हुई रहस्यमय मृत्यु और राज्य के उस समय के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पतन में हुई। इस आन्दोलन ने राज्य के इतिहास और राजनीति की धारा बदल दी। परन्तु आश्चर्य होता है कि जहाँ एक तरफ वामपंथियों द्वारा मुस्लिम कान्फ्रेंस/नैशनल कान्फ्रेंस की अलगाववाद और देश विरोधी साजिशों का महिमामंडन कर उन्हें इतिहास में जगह दी गई वहीं इसके विपरीत देश के सबसे बड़े और लोकतान्त्रिक आन्दोलन 'प्रजा परिषद' का विश्लेषण और उसके प्रभावों की बात तो छोड़िए, उसका आज तक कोई सिलसिलेवार इतिहास तक नहीं लिखा गया।
 
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