स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रवादी आंदोलन, प्रजा परिषद् की कहानी ; उद्भव, संगठन और उसके उद्देश्य को जानिए (भाग-1)

05 Jun 2023 12:03:17
 
Praja Parishad Story, origin and relevence
 
 
1947 में देश की स्वाधीनता के बाद प्रजा परिषद् आन्दोलन स्वतंत्र भारत के इतिहास का पहला राष्ट्रवादी आन्दोलन था। भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के विलय से पहले, कश्मीर घाटी के विपरीत जम्मू संभाग में कोई प्रमुख राजनीतिक दल नहीं था। कुछ छोटे संगठनों में नौजवान सभा, मुस्लिम कॉन्फ्रेंस, हिंदू सभा, डोगरा सदर सभा और कुछ अन्य जैसे संगठन ही थे। लेकिन उनकी गतिविधियाँ समुदायों के कुछ वर्गों तक ही सीमित थीं। इसके अलावा विभिन्न बिरादरियों की कुछ जाति आधारित सभाएँ भी थीं। हालाँकि इस बीच 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ' (RSS) ने अपनी एक मजबूत इकाई विकसित कर ली थी। जम्मू कश्मीर में भारत के संविधान को पूर्णतया लागू कराने और भारत की एकता और अखण्डता के लिए चलाये गए इस आन्दोलन के प्रणेता पं. प्रेमनाथ डोगरा थे। पंडित प्रेम नाथ डोगरा और उनके समर्थकों ने 3 दिनों तक लम्बे विचार-विमर्श के बाद, प्रजा परिषद के नाम से एक पार्टी बनाने का फैसला किया। तत्पश्चात सर्वसम्मति से 17 नवंबर 1947 को प्रजा परिषद् की स्थापना जम्मू संभाग में की गई।  
 
 
pt Prem nath dogra praja parishad  
 संगठन सदस्यों के साथ बैठक में पंडित प्रेम नाथ डोगरा 
 
 
संगठन के सदस्य  
 
 
इसके पहले अध्यक्ष के रूप में हरि वज़ीर, श्री हंस राज पंगोत्रा महासचिव और इस संगठन के अन्य पदाधिकारियों में शाम लाल शर्मा, श्री दुर्गा दास वर्मा, श्री राजिंदर सिंह, श्री सहदेव सिंह, श्री ओम प्रकाश संगरा, श्री रूप लाल रोहमेत्रा, जगदीश राज साहनी, मुल्ख राज अरोड़ा, हंस राज रामनगर, माखन लाल ऐमा, जगदीश राज खादर भंडार, ईश्वर दत्त शास्त्री मगलूर, नाथा सिंह, देवरका नाथ और अन्य शामिल हुए। पं. प्रेमनाथ डोगरा और श्री भगवत स्वरुप मार्गदर्शक के रूप में शामिल हुए।
 
 
1947 में जब एक संगठन बनाने का निर्णय लिया गया, तो कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की राय थी कि संगठन का नाम 'जम्मू प्रजा परिषद' और उसके घोषणापत्र का नाम 'नया जम्मू' रखा जाना चाहिए। उनका यह मानना था कि यह 'कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस'  को जवाब होगा। लेकिन कुछ अन्य लोगों का विचार अलग था। उनका मानना था कि पार्टी को केवल एक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं दिखना चाहिए और न ही प्रतिक्रियावादी के रूप में आवाज उठानी चाहिए।
 
 
लिहाजा नाम को लेकर हो रहे कुछ मतभेदों के कारण संघ के कुछ शीर्ष नेताओं ने सलाह दी कि नई पार्टी को 'अखिल जम्मू और कश्मीर प्रजा परिषद' के रूप में नामित किया जाना चाहिए क्योंकि महाराजा हरी सिंह ने अपने पूरे राज्य के क़ानूनी अधिकारों को ध्यान में रखते विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। लिहाजा सभी विषयों पर चर्चा के उपरान्त उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए नए संगठन को 'अखिल जम्मू और कश्मीर प्रजा परिषद' और तिरंगे को उसके झंडे के रूप में नामित किया गया था। 
 
 
Praja Parishad Team
 
 प्रजा परिषद संगठन के कार्यकर्त्ता 
 
 
संगठन का उद्देश्य 
 
 
प्रजा परिषद का मुख्य उद्देश्य शेष भारत के साथ अन्य राज्यों की ही तरह जम्मू कश्मीर का पूर्ण एकीकरण प्राप्त करना था। साथ ही शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की डोगरा विरोधी सरकार से जम्मू संभाग के लोगों के वैध लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करना था। प्रजा परिषद का मानना था कि जम्मू-कश्मीर भारत का महत्वपूर्ण और अविभाज्य अंग है और पार्टी भारतीय संस्कृति के आधार पर ऐसी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था स्थापित करेगी जिसमें जाति, मजहब, रंग और रंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो। आस्था के लिए सभी नागरिकों को प्रगति के समान अवसर प्रदान किए जाएंगे।
 
 
प्रजा परिषद् आन्दोलन के समर्थन के लिए देशभर में दौरा
 
 
पं. प्रेमनाथ डोगरा आन्दोलन के समर्थन के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर प्रजा परिषद् की मांगों को रखा। 5 अक्टूबर को पूणे में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ‘राज्य के लोग, खासकर जम्मू, लद्दाख के लोग रियासत का भारत में पूर्ण एकीकरण चाहते है। वे शेख अब्दुल्ला के स्वतंत्र कश्मीर की अवधारणा के खिलाफ है।’ महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा के समीप सोलापुर में उन्होंने अपनी मांगों को दोहराते हुए कहा कि ‘प्रजा परिषद् राज्य का पूर्ण एकीकरण चाहती है, जबकि शेख सीमित एकीकरण के पक्ष में है। ’10 अक्टूबर को चेन्नई, 16 अक्टूबर को नागपुर में लोगों से मुलाकात कर अपनी मांगों से अवगत कराया। 20 अक्टूबर को दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि ‘हम जम्मू संभाग के लोग राज्य में नए झंडे फहराते हुए चुपचाप नहीं देख सकते।’ उनका कहना था कि ‘जब देश में 4 करोड़ मुसलमान शांति और सम्मान से रह सकते है तो 20 लाख मुसलमानों के लिए अलग झंडे का कोई कारण नहीं है।’
 
 
Pt. Prem nath dogra meeting  with praja parishad member
 
 पं. डोगरा अपने निवास कच्ची छावनी जम्मू में प्रजा परिषद के कार्यकारी सदस्यों के साथ
 
 
प्रजा परिषद् की प्रमुख मांगे
 
 
प्रजा परिषद् जम्मू कश्मीर को भारतीय गणराज्य में अन्य राज्यों के समान रखने की मांग की।
 
जम्मू और लद्दाख को प्रशासन में समान स्थान दिलाना।
 
पाकिस्तान द्वारा बलपूर्वक कब्जा किए गये क्षेत्र को खाली कराना।
 
पूरे जम्मू कश्मीर राज्य में एक ऐसी आर्थिक नीति बनाना जिससे पिछड़े हुए क्षेत्र एवं वर्गो का विकास हो।
 
जम्मू के पर्यटन स्थलों का विकास करना।
 
 
“एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान- नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे ”
 
प्रजा परिषद् का आन्दोलन स्वतंत्र भारत का एक अद्भुत आन्दोलन था जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों की सहभागिता एक बराबर थी। यह परिषद् 'भारतीय संविधान' को जम्मू कश्मीर में भी ठीक उसी प्रकार से लागू करवाना चाहती थी जैसे देश के अन्य राज्यों में भारतीय संविधान लागू था। 14 नवंबर 1952 को प्रजा परिषद् ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए सत्याग्रह की शुरूआत की और इसी दिन जम्मू धर्म क्षेत्र से कुरूक्षेत्र में परिवर्तित हो गया। प्रजा परिषद् जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र की लडाई लड़ रही थी, शेख अब्दुल्ला जम्मू और लद्दाख संभाग के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को सौंपने को तैयार नहीं थे। लिहाजा लोकतांत्रिक अधिकारों की आवाज बुलंद करने के लिए 24 नवंबर को जम्मू संभाग में पं. प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद् ने एक जुलूस निकाला। जुलुस के दौरान उन्होंने कहा कि ‘प्रजा परिषद् की मांग राज्य में पूर्ण एकीकरण की है, लिहाजा जो इस मांग के साथ है हम उसके साथ हैं। जो इस मांग के खिलाफ है, हम भी उसके खिलाफ है।’ आन्दोलनकारियों के हाथों में तिरंगा और गले में डा. राजेंद्र प्रसाद का चित्र था।
 
 
Praja Parishad Andolan
  
 
26 नवंबर को जम्मू संभाग में पं. प्रेमनाथ डोगरा ने एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए प्रजा परिषद् के 14 साथियों के साथ पहली गिरफ्तारी दी। उनकी गिरफ्तारी के बाद जम्मू के लोगों ने जगह-जगह धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। पूरे जम्मू में पं. प्रेमनाथ डोगरा का दिया हुआ एक ही नारा गुँजने लगा “एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान- नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। ” सांबा में डोगरी भाषा के प्रख्यात कवि रघुनाथ सिंह के नेतृत्व में भारी संख्या में लोगों ने प्रदर्शन किया। एक सप्ताह के भीतर ही प्रजा परिषद् का यह आन्दोलन सूदूर के गांवों तक जन आन्दोलन के रूप में फैल गया। स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों ने जगह जगह पर सरकारी भवनों में तिरंगा फहराने लगे।
 
 
Praja Parishad Andolan story
 
 
आन्दोलनकारियों पर सरकारी दमन चक्र 
 
 
प्रजा परिषद् ने 14 दिसंबर को छंब तहसील के मुख्यालय पर तिरंगा फहराने का निश्चय किया। पुलिस को सख्त आदेश था कि किसी भी कीमत पर तिरंगा नहीं फहराना चाहिए। आन्दोलनकारी मेलाराम ने तिरंगा फहराने की कोशिश की, पुलिस ने गोली चला दी जिससे उनकी मौत हो गई, मेलाराम की मौत प्रजा परिषद् आन्दोलन का पहला जन बलिदान था। इसी तरह सुंदरबनी में तिरंगा फहराने के दौरान पुलिस और कश्मीर मिलिशिया की गोली से तीन लोगों की मौत और 25 से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हो गए। कश्मीर मिलिशिया  एक प्रकार से शेख अब्दुल्ला की प्राइवेट सेना ही थी।  वास्तव में यह आन्दोलन देश विभाजन के बाद राष्ट्रवाद और जम्मू कश्मीर में बचे खुचे अलगाववाद के बीच था। राष्ट्रवाद के पक्ष में जम्मू-कश्मीर के लोग भी अपने हिस्से की आहूति डाल रहे थे। वजह थी कि लोग शेख अब्दुल्ला की साजिश को समझ चुके थे। 
 
 
11 जनवरी 1953 को हीरानगर में पुलिस और कश्मीर मिलिशिया ने 200 राउंड फायरिंग की जिसमें 2 लोगों की मौत और 70 से ज्यादा लोग घायल हुए। बाद में दोनों शव अधजले हालात में रावी नदी के तट पर मिले। 12 वर्ष के बालक तिलक को स्कूल में तिरंगा फहराने के आरोप में गिरफ्तार कर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। थाने में अहिंसक सत्याग्रही आन्दोलनकारियों को जाड़े के दिनों में पीटने के बाद ठंडे पानी से नहलाया जाता था, बिना कपड़े के रात बितानी पड़ती थी। थाने में हर समय दो मुसलमान पुलिसकर्मी तैनात रहते थे ताकि कोई सत्याग्रहियों से उचित व्यवहार न कर सके।
 
 
Praja Parishad Andolan lathi charge
 
 
शेख सरकार आन्दोलन को दबाने के लिए आत्याचार की सभी सीमाएं लांघ गई। सरकार सत्याग्रही आन्दोलनकारियों की संपत्ति पर जबरन कब्जा कर रही थी। गांवों में बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो के साथ अमानवीय बर्ताव किया जाता था। फसलों को नष्ट करना, घरों को धराशायी करना, संपत्ति नीलाम कराकर अर्थदंड वसूल करना आदि तरह-तरह के अत्याचार किया जाने लगा। शेख अब्दुल्ला की प्राइवेट सेना लोगों को नेशनल कांफ्रेंस में शामिल होने के लिए मजबूर कर रही थी।
 
 
पं. जवाहरलाल नेहरु और शेख अब्दुल्ला अपने को जन आन्दोलन की उपज मानते थे, लेकिन दोनों अपनी हठधर्मिता के कारण जनमानस के मांगों को बर्बरतापूर्वक दबाने का प्रयास कर रहे थे। जम्मू कश्मीर के हीरानगर में पुलिस गोली से मारे गए दो प्रदर्शनकारियों की अस्थियाँ श्रद्धांजलि के लिए दिल्ली आने वाली थी। पुलिस ने श्रद्धांजलि सभा में शामिल होने से पहले ही धारा 144 के भंग करने के आरोप में डा. श्यामाप्रसाद मुकर्जी, निर्मलचंद्र चटर्जी, नंदलाल शर्मा और वैद्य गुरुदत्त को गिरफ्तार कर लिया। विरोध करने पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया और आंसु गैस छोडे, इस बर्बर पुलिस लाठी चार्ज में सैकड़ो लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
 
 
Dr Shayama Prasad Mukharji Praja Parishad
 
 
आन्दोलन की अन्तिम परिणति
 
 
29-31 दिसंबर 1952 को कानपुर में 'भारतीय जनसंघ' का पहला अखिल भारतीय अधिवेशन हुआ जिसमें जनसंघ अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुकर्जी ने प्रजा परिषद् आन्दोलन का समर्थन किया। उन्होंने कहा राज्य और केंद्र सरकार इस आन्दोलन को जान-बूझकर गलत ढंग से पेश कर रही है। डॉ. मुखर्जी इस आन्दोलन को अपना समर्थन देने के लिए जम्मू पहुंचे, कठुआ में उन्होंने कहा कि ‘मैं जम्मू कश्मीर के लिए या तो भारत का संविधान लाऊँगा या अपने प्राण दूंगा।’ 23 जून 1953 को जम्मू कश्मीर के एकीकरण के प्रयास में डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी ने अपना बलिदान दिया।
 
 
अंततः डा. श्यामाप्रसाद मुकर्जी के बलिदान, पंडित प्रेमनाथ डोगरा और प्रजा परिषद् आन्दोलन में शामिल लाखों सत्याग्रहियों के सामने सरकार झुकने को मजबूर हुई और जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के बड़े भाग को लागू करना पड़ा। 1947 से लेकर 1953 तक चला प्रजा परिषद का आन्दोलन जम्मू-कश्मीर के लोकतंत्रीकरण और उसके संघीय संवैधानिक व्यवस्था में एकीकरण के लिये चलाया गया था। इस आन्दोलन की अन्तिम परिणति तत्कालीन जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की श्रीनगर जेल में हुई रहस्यमय मृत्यु और राज्य के उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पतन में हुई।
 
 
Praja Parishad Story, origin and relevence..
 
 
इस आन्दोलन ने जम्मू कश्मीर के इतिहास और राजनीति की धारा के स्वरुप को पूरी तरह से बदल दिया। परन्तु आश्चर्य इस बात का है कि एक तरफ जहाँ मुस्लिम कान्फ्रेंस/नैशनल कान्फ्रेंस के आन्दोलन का इतिहास केवल लिखा ही नहीं बल्कि अकादमिक जगत में उसका गंभीर विश्लेषण भी किया गया, वहीं इसके विपरीत देश के पहले राष्ट्रवादी आन्दोलन 'प्रजा परिषद' का विश्लेषण और उसके प्रभावों की बात तो छोड़िए, उसका आज तक कोई सिलसिलेवार इतिहास तक नहीं लिखा गया।
 
 
अनुच्छेद 370 का खात्मा और महान नेताओं को सच्ची श्रद्धांजलि
 
 
इसी आंदोलन का नतीज़ा था कि अगले 75 वर्षों तक जम्मू कश्मीर में लोग राष्ट्रवाद की प्रेरणा पाते रहे और अनुच्छेद 370 समेत अलगाववादी सोच के खिलाफ देश का झंडा बुलंद करते रहे। नतीजतन 5 अगस्त 2019 को केंद्र की मोदी सरकार ने संसद में संविधान से अनुच्छेद 370 को निरस्त कर प्रजा परिषद् से जुड़े पंडित प्रेमनाथ डोगरा, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और अन्य सभी आन्दोलनकारियों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की।
 
 
प्रजा परिषद आंदोलन के परिणाम स्वरूप ही तत्कालीन केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में जाने के लिए परमिट सिस्टम समाप्त कर दी। राज्य की संविधान सभा ने रियासत के भारत में विलय का अनुमोदन किया। राज्य में निर्वाचित प्रधान का पद समाप्त कर के अन्य राज्यों की तर्ज पर ही राज्यपाल का पद स्थापित किया गया। राज्य के प्रधानमंत्री के लिए मुख्यमंत्री पद नाम ही स्वीकार किया गया। समय के अंतराल में धारा 370 के माध्यम से संघीय संविधान के लगभग 200 उपबंधों को राज्य में लागू किया गया। उच्चतम न्यायालय और चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र जम्मू कश्मीर तक बढाया गया। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि प्रजा परिषद आंदोलन ने जो जन जागृति पैदा की उसने जम्मू कश्मीर के इतिहास और राजनीति की धारा के स्वरुप को पूरी तरह से बदल दिया। राष्ट्र हमेशा ऐसे महान नेता के प्रति कृतज्ञ रहेगा।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
Powered By Sangraha 9.0