#RememberingOurHeroes : कारगिल युद्ध के महानायक कैप्टन हनीफुद्दीन की वीरगाथा, बेटे के पार्थिव शरीर के लिए माँ को करना पड़ा था 43 दिन का इंतजार
कैप्टन हनीफुद्दीन : जन्म : 23 अगस्त 1974, दिल्ली
6 जून 1999 को 18000 फीट की ऊंचाई पर लद्दाख के तुरतुक एरिया में 'ऑपरेशन थंडरबॉल्ट' शुरू हुआ। इस ऑपरेशन के लिए 11वीं राजपुताना राइफल्स की एक टुकड़ी तैनात की गई थी। जिससे कि इलाके में भारतीय सेना की पकड़ और भी ज्यादा मजबूत हो सके। साथ ही भारतीय सेना को दुश्मनों की गतिविधियों की निगरानी करने में भी सहायता मिल सके।
ऑपरेशन को कैप्टन हनीफुद्दीन कर रहे थे लीड
इस ऑपरेशन को कैप्टन हनीफुद्दीन लीड कर रहे थे। कैप्टन ने एक जूनियर कमीशन अधिकारी और 3 अन्य रैंक के अधिकारियों के साथ ऑपरेशन शुरू किया। अपनी सुझबुझ का परिचय देते हुए कैप्टन ने 4 और 5 जून की रात को महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पास की जगहों को दुश्मन सैनिकों से मुक्त करा लिया। इसके बाद ऑपरेशन को आगे बढ़ाते हुए कैप्टन हनीफुद्दीन अपनी टुकड़ी के साथ अदम्य साहस का परिचय देते हुए आगे बढ़ रहे थे। 18,500 फीट की उंचाई पर हाड गला देने वाली ठंड भी उनके साहस को डिगा नहीं पा रही थी। इसी बीच दुश्मन ने कैप्टन हनीफुद्दीन की गतिविधियों को समझ लिया और अचानक गोलीबारी शुरू कर दी।
हथियार खत्म होने के बाद भी किया मुकाबला
बर्फ से ढकी चोटियों पर दुश्मन को मार गिराने के लिए हनीफ तोपों की गोलाबारी के बावजूद आगे बढ़ते रहे। हथियार खत्म होने बावजूद हनीफ आखिरी दम तक दुश्मन से संघर्ष करते रहे। कैप्टन समझ गए कि दुश्मन की तादाद ज्यादा और उनकी टीम छोटी है। यहां सिर्फ मातृभूमि के प्रति अमर अनुराग ही काम आ सकता है और हुआ भी वही। कैप्टन ने अपने साथियों की चिंता की और उनको सुरक्षित जगह पर निकालने के लिए दुश्मन का ध्यान भटकाया। शत्रु उन पर अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। इस बीच कैप्टन हनीफुद्दीन अपना सबसे बड़ा बलिदान देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए लेकिन वे अपने प्राण न्योछावर करके अपने साथियों की जान बचाने में कामयाब रहे। जिस पोस्ट को वो हासिल करने के लिए गए थे उससे 200 मीटर की दूरी पर ही वीरगति को प्राप्त हो गए।
वीर चक्र पुरस्कार से सम्मानित
कैप्टन हनीफुद्दीन को इस अदम्य साहस के लिए भारत सरकार ने वीर चक्र से सम्मानित किया। ‘वीर भोग्या वसुंधरा’ के बीज मंत्र को कैप्टन हनीफुद्दीन ने पूरी तरह चरितार्थ किया। भारी बर्फ़बारी के कारण कैप्टन का पार्थिव शरीर वक्त पर उनके घर नहीं पहुँच सका था, जब हालात के बारे में उनकी माँ को पता चला तो उन्होंने कहा कि ''मैं नहीं चाहती कि मेरे बेटे के पार्थिव शरीर को लाने के लिए किसी दुसरे जवान की जिंदगी खतरे में डाली जाए'' आखिरकार बलिदान के 43वें दिन कैप्टन हनीफ का पार्थिव शरीर परिवार के पास पहुंचा। सेना ने उनके सम्मान में तुरतुक का नाम हनीफुद्दीन सब सेक्टर रखा है। माँ भारती के जाबांज सिपाही और देश के वीर जवान कैप्टन हनीफुद्दीन की 24 वीं पुण्यतिथि पर हम नमन करते हैं।
जीवन-परिचय
देश की राजधानी दिल्ली के रहने वाले हनीफुद्दीन का जन्म 23 अगस्त 1974 को हुआ था। 08 साल की कम उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया। हनीफुद्दीन के नफीस और समीर दो भाई थे। उनकी मां हेमा अज़ीज़ एक शास्त्रीय संगीत गायिका हैं और उन्होंने दिल्ली में संगीत नाटक एकेडमी और कथक केन्द्र के लिए भी काम किया था।
गायक भी थे कैप्टन हनीफुद्दीन
राजधानी दिल्ली के शिवाजी कॉलेज से स्नातक करने वाले हनीफुद्दीन एक अच्छे गायक भी थे। यह गुण उन्हेंअपनी मां से विरासत में मिला था। कॉलेज के दिनों में हनीफ अपने दोस्तों के बीच काफी मशहूर थे। हनीफुद्दीन छात्र जीवन से ही बहुत खुश मिजाज इंसान थे। भारतीय सेना में जाने के बाद अक्सर वे अपने सैनिक साथियों का गाकर हौंसला बढ़ाते थे। वे हमेशा अपना म्यूजिक सिस्टम अपने साथ रखते थे। संगीत का शौक उन्हें दूसरे साथी सैनिकों से अलग भी करता था।
गायकी नहीं, करनी थी मातृभूमि की सेवा
शिवाजी कॉलेज से स्नातक करने के बाद हनीफुद्दीन बाकी सभी नौकरियों को छोड़कर सेना में भर्ती की तैयारी में जुट गए। बिना किसी मार्गदर्शन के उन्होंने परीक्षा पास की और ट्रेनिंग में भी अच्छे अफसरों में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गए। 07 जून, 1997 को उन्हें राजपुताना राइफल्स की 11वीं बटालियन सियाचिन में कमीशन किया गया। बाद में, कारगिल युद्ध के दौरान उनकी बटालियन को लद्दाख के तुरतुक में तैनात किया गया था।