अब 1845 में पहली बार ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लाहौर किंगडम पर यह आरोप लगाया कि वे सतलुज नदी के दक्षिण में अपनी सेना को भेजकर अमृतसर समझौते को तोड़ा है। इसके बाद से अंग्रेजों ने सिख साम्राज्य पर हमला कर दिया और इस तरह से 1845 में एंग्लो सिख वार की शुरुआत हो गई। आखिरकार 1846 में लाहौर संधि के साथ यह पहला युद्ध ख़त्म हुआ लेकिन इसमें सिखों को नुकसान हुआ। हालाँकि लाहौर संधि के बाद अंग्रेजों और सिख साम्राज्य के बीच एक और संधि हुआ, जिसे भैरोवाल संधि के नाम से जाना जाता है। इस संधि के बाद से सिख साम्राज्य की पूरी कमान एक अंग्रेज सर हेनरी लॉरेन्स' के हाथों आ चुकी थी। इस संधि के बाद सिखों को लगातार हानि पहुँचाया गया, उनसे जम्मू कश्मीर को भी छीन लिया गया। अब ब्रिटिश सरकार मुल्तान के गवर्नर मूलराज से टैक्स की मांग करने लगी। लेकिन मूलराज ने टैक्स देने से साफ़ इंकार कर दिया।
लिहाजा अंग्रेजों द्वारा अप्रैल, 1848 ई. में मूलराज के स्थान पर एक सिख उत्तराधिकारी कहन सिंह की नियुक्ति हुई। उसे लेकर अंग्रेज अधिकारी वैन एग्न्यू और लेफ्टिनेंट विलियम एंडरसन और एक छोटे अनुरक्षक के साथ मुल्तान पहुंचे। मूलराज ने किले की चाबियां सौंप दीं, लेकिन जैसे ही वैन एग्न्यू की पार्टी ने कब्जा करने का प्रयास किया, मूलराज के अनियमित सैनिकों और शहर की भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। इस हमले में दोनों अधिकारी घायल हो गए। उन्हें शहर के बाहर एक मस्जिद में ले जाया गया। जहां पर अगले दिन भीड़ द्वारा दोनों अधिकारियों की हत्या कर दी गई। इस घटना को अपने अनुकूल मानकर मूलराज ने मुल्तान और उसके दुर्ग पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों ने स्थानीय सेना खड़ी करके दुर्ग को घेर लिया। साथ ही शेरसिंह के नेतृत्वई में लाहौर से एक सिख सेना भेजी गई, किन्तु यह सेना मूलराज से मिल गई। इस प्रकार एक स्थानीय विद्रोह ने बृहत रूप धारण कर लिया और 'दूसरा एंग्लो-सिख युद्ध’ की शुरुआत हो गई।
दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध के दौरान भारत का गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी था। जिसने इस विद्रोह को दबाने के लिए अपने कमांडर इन चीफ लॉर्ड गफ के नेतृत्व में सेना भेजी। चिनाब नदी के किनारे रामनगर में अंग्रेजों और सिखों में प्रारम्भिक झड़प हुई, जिसमें अंग्रेजों की बुरी तरह हार हुई। 1 दिसंबर 1848 को कैवेलरी डिविजन के साथ मेजर जनरल जोसेफ थैकवेल आगे बढे। उन्होंने रामनगर से चेनाब नदी को पार किया जहाँ उनकी शेर सिंह के साथ सदुल्लापुर में भिड़ंत हुई। इस चक्कर में रामनगर पर शेर सिंह की पोजिशन कमजोर हुई तो थैकवेल ने खाली पड़े इलाके को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया। थैकवेल को लगा, कि अगले दिन पूरी ताकत से हमला कर वो शेर सिंह को पीछे खदेड़ देंगे।
Battle of Chillianwala : आखिरकार कई सप्ता ह के इंतजार के बाद 13 जनवरी 1849 की शाम करीब 3 बजे लॉर्ड गफ ने अपनी सेना को आगे बढ़ने का आदेश दिया। दोनों तरफ से जोरदार लड़ाई शुरू हो गई। सिखों द्वारा किए गए ग्रेपशॉट के हमले से अंग्रेजों के बीच अफरा तफरी मच गई। सिखों ने अंग्रेजों के बाएं फ्लैंक की ब्रिगेड से क्वीन कलर छीन लिया। इससे घबरा कर अंग्रेजी ब्रिगेडियर पोप ने सेना को पीछे हटने का आदेश दिया। तब सिख सेना ने मौका पाकर चौतरफा हमला बोल दिया। सेना को हारती देख रिजर्व ब्रिगेड को भी बुला लिया गया। तब तक रात भी हो चुकी थी।
सर ह्यू गफ ने पूरी सेना को पीछे हटने का आदेश दिया। लड़ाई खत्म होने तक गॉफ की सेना के 757 सिपाही मारे जा चुके थे, जिसमें 1651 घायल हुए थे और 104 गायब थे। दूसरी तरफ सिख सेना के 4000 सिपाही मारे गए थे। हालांकि इस युद्ध का कोई निर्णय नहीं निकल सका। युद्ध में सिख सेना ने गॉफ को आगे बढ़ने से रोक दिया था, इसलिए सिख सेना ने इसे अपनी जीत करार दिया। अगले दिन दोनों सेना अपनी-अपनी पोजिशन में डटी रही। इसके बाद, शेर सिंह अपनी सेना के साथ उत्तर की तरफ चला गया। वहीं ब्रिटिश सेना तीन दिन बाद वहां से हटी। इस युद्ध के 2 दिन के अन्दर ही सर ह्यू गफ को उसके पद से हटा दिया गया।