Anglo-Sikh War 1846-49 : चिलियांवाला युद्ध की कहानी, जब सिख योद्धाओं ने अंग्रेजों को पहुँचाया था भारी नुकसान

    13-जनवरी-2024
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Battle of Chillianwala
 
 
Written By : Arnav Mishra   
 
सन 1845-46 में पहली बार सिख और ब्रिटिश शासकों के बीच युद्ध लड़ा गया था, जिसे हम युद्ध (Anglo-Sikh War) 1845-46 के नाम से जानते हैं। हालाँकि दुर्भाग्यवश इस युद्ध में सिखों को हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन इसके ठीक 3 वर्षों बाद 1848-49 ई में अंग्रेजों और सिखों के बीच एक बार युद्ध छिड़ा जिसे इतिहास में चिलियांवाला के नाम से जाना गया। यह दूसरा Anglo-Sikh युद्ध पंजाब के चिलियांवाला में लड़ा गया जोकि देश के बंटवारे के बाद से अब पाकिस्तान का हिस्सा है। इस युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से लगभग 15 हजार से अधिक सैनिक थंव वहीं दूसरी तरफ 10 हज़ार के करीब सिख योद्धा। इस दूसरे युद्ध में अंग्रेजों को भारी नुकसान हुआ। बहरहाल इस युद्ध के बारे में जानने से पहले इतिहाsस में हम थोड़ा पीछे चलते हैं। और जानने का प्रयास करेंगे कि आखिरकार किस प्रकार से एंग्लो-सिख युद्ध की शुरुआत हुई थी।
 
 
Battle of Chillianwala Maharaja Ranjeet Singh
 
 महाराजा रंजीत सिंह 
 
First Anglo-Sikh War 1845-49 : कहते हैं कि जब तक महाराजा रंजित सिंह (Maharaja Ranjeet Singh) जीवित थे तब तक अंग्रेज आँख उठाकर पंजाब (Punjab) की तरफ नहीं देख पाए थे। हालाँकि 1809 में हुए अमृतसर समझौते के बाद अंग्रेजों ने महाराजा रंजित सिंह के विस्तार को रोक दिया था, और 1809 में सतलुज नदी को ब्रिटिश कंपनी (East India Company) और महाराजा रंजीत सिंह के लाहौर किंगडम को एक सीमा मान लिया गया था। इस संधि के बाद महाराजा रंजित सिंह अपने साम्राज्य को सतलुज नदी के दक्षिण में विस्तार नहीं दे पा रहे थें। लिहाजा उन्होंने अपने साम्राज्य को दूसरे दिशा में विस्तार देना शुरू किया। सन 1818 में महाराजा रंजित सिंह ने मुल्तान को अपने कब्जे में ले लिया था, 1819 में कश्मीर और 1834 तक पेशवर को भी लाहौर किंगडम का हिस्सा बना लिया। इन सभी क्षेत्रों के लिए महाराजा रंजीत सिंह ने गवर्नर नियुक्त कर रखे थे। जब तक वे जीवित रहे तब तक सब कुछ ठीक रहा लेकिन जून 1839 में उनके मृत्यु के बाद सिख साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। इस बीच शेर सिंह से लेकर खडग सिंह ने कुछ वर्षों तक सिख साम्राज्य की बागडोर संभाली लेकिन 1845 से महाराजा दिलीप सिंह लाहोर किंगडम को सँभालने लगे।
 

अब 1845 में पहली बार ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लाहौर किंगडम पर यह आरोप लगाया कि वे सतलुज नदी के दक्षिण में अपनी सेना को भेजकर अमृतसर समझौते को तोड़ा है। इसके बाद से अंग्रेजों ने सिख साम्राज्य पर हमला कर दिया और इस तरह से 1845 में एंग्लो सिख वार की शुरुआत हो गई। आखिरकार 1846 में लाहौर संधि के साथ यह पहला युद्ध ख़त्म हुआ लेकिन इसमें सिखों को नुकसान हुआ। हालाँकि लाहौर संधि के बाद अंग्रेजों और सिख साम्राज्य के बीच एक और संधि हुआ, जिसे भैरोवाल संधि के नाम से जाना जाता है। इस संधि के बाद से सिख साम्राज्य की पूरी कमान एक अंग्रेज सर हेनरी लॉरेन्स' के हाथों आ चुकी थी। इस संधि के बाद सिखों को लगातार हानि पहुँचाया गया, उनसे जम्मू कश्मीर को भी छीन लिया गया। अब ब्रिटिश सरकार मुल्तान के गवर्नर मूलराज से टैक्स की मांग करने लगी। लेकिन मूलराज ने टैक्स देने से साफ़ इंकार कर दिया। 

 
Battale of Chilianwala anglo sikh war 1849
 
 
फिर शुरू हुआ दूसरा एंग्लो-सिख युद्ध
 

लिहाजा अंग्रेजों द्वारा अप्रैल, 1848 ई. में मूलराज के स्थान पर एक सिख उत्तराधिकारी कहन सिंह की नियुक्ति हुई। उसे लेकर अंग्रेज अधिकारी वैन एग्न्यू और लेफ्टिनेंट विलियम एंडरसन और एक छोटे अनुरक्षक के साथ मुल्तान पहुंचे। मूलराज ने किले की चाबियां सौंप दीं, लेकिन जैसे ही वैन एग्न्यू की पार्टी ने कब्जा करने का प्रयास किया, मूलराज के अनियमित सैनिकों और शहर की भीड़ ने उन पर हमला कर दिया। इस हमले में दोनों अधिकारी घायल हो गए। उन्हें शहर के बाहर एक मस्जिद में ले जाया गया। जहां पर अगले दिन भीड़ द्वारा दोनों अधिकारियों की हत्या कर दी गई। इस घटना को अपने अनुकूल मानकर मूलराज ने मुल्तान और उसके दुर्ग पर अधिकार कर लिया। अंग्रेजों ने स्थानीय सेना खड़ी करके दुर्ग को घेर लिया। साथ ही शेरसिंह के नेतृत्वई में लाहौर से एक सिख सेना भेजी गई, किन्तु यह सेना मूलराज से मिल गई। इस प्रकार एक स्थानीय विद्रोह ने बृहत रूप धारण कर लिया और 'दूसरा एंग्लो-सिख युद्ध’ की शुरुआत हो गई। 

 
Major General Joseph Thackwell
 
  मेजर जनरल जोसेफ थैकवेल
 
अंग्रेजों को हुई भारी क्षति 
 

दूसरे एंग्लो-सिख युद्ध के दौरान भारत का गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी था। जिसने इस विद्रोह को दबाने के लिए अपने कमांडर इन चीफ लॉर्ड गफ के नेतृत्व में सेना भेजी। चिनाब नदी के किनारे रामनगर में अंग्रेजों और सिखों में प्रारम्भिक झड़प हुई, जिसमें अंग्रेजों की बुरी तरह हार हुई। 1 दिसंबर 1848 को कैवेलरी डिविजन के साथ मेजर जनरल जोसेफ थैकवेल आगे बढे। उन्होंने रामनगर से चेनाब नदी को पार किया जहाँ उनकी शेर सिंह के साथ सदुल्लापुर में भिड़ंत हुई। इस चक्कर में रामनगर पर शेर सिंह की पोजिशन कमजोर हुई तो थैकवेल ने खाली पड़े इलाके को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया। थैकवेल को लगा, कि अगले दिन पूरी ताकत से हमला कर वो शेर सिंह को पीछे खदेड़ देंगे। 

 
लेकिन शेर सिंह ने इस दौरान बेहद समझदारी से काम लेते हुए उत्तर की ओर आगे बढा और चेनाब के पास अपना अधिपत्य जमाए रखा। हालाँकि इस बीच दोनों सेनाएं कई सप्तानह तक एक दूसरे के आगे बढ़ने का इंतजार करती रही। कुछ अंग्रेज इतिहासकार मानते हैं, कि इस युद्ध में सिख सेना की संख्या 23 से 30 हजार के बीच थी, लेकिन इसमें संशय है, क्योंाकि पहले Anglo-Sikh युद्ध के बाद खालसा सेना सिर्फ 12 हजार तक सीमित रह गई थी। ज्यासदातर इतिहासकारों का दावा है कि, चिलियांवाला में सिख सेना की संख्या 10 हजार से ज्या्दा नहीं थी। वहीं अंग्रेजी सेना की तदाद 15000 थी।
 
 
Battle of Chillianwala
 
 
चिलियांवाला युद्ध की कहानी 
 

Battle of Chillianwala : आखिरकार कई सप्ता ह के इंतजार के बाद 13 जनवरी 1849 की शाम करीब 3 बजे लॉर्ड गफ ने अपनी सेना को आगे बढ़ने का आदेश दिया। दोनों तरफ से जोरदार लड़ाई शुरू हो गई। सिखों द्वारा किए गए ग्रेपशॉट के हमले से अंग्रेजों के बीच अफरा तफरी मच गई। सिखों ने अंग्रेजों के बाएं फ्लैंक की ब्रिगेड से क्वीन कलर छीन लिया। इससे घबरा कर अंग्रेजी ब्रिगेडियर पोप ने सेना को पीछे हटने का आदेश दिया। तब सिख सेना ने मौका पाकर चौतरफा हमला बोल दिया। सेना को हारती देख रिजर्व ब्रिगेड को भी बुला लिया गया। तब तक रात भी हो चुकी थी।  

 
sir hugh gough
 
सर ह्यू गफ

सर ह्यू गफ ने पूरी सेना को पीछे हटने का आदेश दिया। लड़ाई खत्म होने तक गॉफ की सेना के 757 सिपाही मारे जा चुके थे, जिसमें 1651 घायल हुए थे और 104 गायब थे। दूसरी तरफ सिख सेना के 4000 सिपाही मारे गए थे। हालांकि इस युद्ध का कोई निर्णय नहीं निकल सका। युद्ध में सिख सेना ने गॉफ को आगे बढ़ने से रोक दिया था, इसलिए सिख सेना ने इसे अपनी जीत करार दिया। अगले दिन दोनों सेना अपनी-अपनी पोजिशन में डटी रही। इसके बाद, शेर सिंह अपनी सेना के साथ उत्तर की तरफ चला गया। वहीं ब्रिटिश सेना तीन दिन बाद वहां से हटी। इस युद्ध के 2 दिन के अन्दर ही सर ह्यू गफ को उसके पद से हटा दिया गया।