वैशेषिक दर्शन के रचनाकार महर्षि कणाद ; जिन्होंने न्यूटन की खोज से भी हजारों वर्ष पूर्व लिख दिए थे गति के नियम

04 Jan 2024 15:28:11
 
Maharishi Kanad the creator of Vaisheshika philosoph
 
 
भारत में प्राचीन काल में हमारे ऋषियों मुनियों के द्वारा विभिन्न प्रकार के खोज एवं आविष्कार हुए हैं। प्राचीन काल में, कई ऋषियों ने अपने कठिन तपस्या करने के पश्चात् हजारों वर्षों से भी पुराने वेदों में छुपे रहस्यों को पहचाना और फिर अपने ज्ञान से वेदों में छिपे ब्रह्मांड के कई रहस्यों की खोज सदियों पहले ही कर ली थी। लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि हम आज भी विज्ञान से जुड़े तमाम खोजों के लिए पश्चिमी देशों को क्रेडिट देते आए हैं। आज का यह लेख भारत में हुए ऐसे अविष्कारों के बारे में हैं जो प्राचीन तकनीकी और हमारे प्राचीन ऋषियों की खोज की प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं, जिन्हें आधुनिक विज्ञान ने भी प्रमाणित किया है। आज का लेख उस ऋषि से जुड़ा है जिन्होंने न्यूटन (Isaac Newton) से हजारों वर्ष पहले गति के नियम दुनिया को दे दिए थे। आज आइजक न्यूटन की जयंती है, लिहाजा उनकी जयंती पर इस विशेष लेख के जरिये आइजक न्यूटन और महर्षि कणाद द्वारा दिए गए गति के नियमों को जानेंगे। 
 
 
न्यूटन से पहले आचार्य कणाद ने दिए गति के नियम  
 
 
वैशेषिक दर्शन (Vaisheshika Sutra) के रचनाकार महर्षि कणाद (Maharishi Kanad) करीब 6000 BC (ईसा पूर्व) पहले, प्रभास क्षेत्र द्वारका के निकट गुजरात में जन्मे थे। ऐसा कहते हैं कि दुनिया को 'परमाणु' (Atom) का पहला ज्ञान देने वाले भी ऋषि कणाद ही हैं। इन्हीं के नाम पर परमाणु का एक नाम कण पड़ा। हम सभी बचपन से ही विज्ञान में ये पढ़ते आए हैं कि 'PHYSICS' यानि भौतिक विज्ञान में गति का नियम न्यूटन ने दिया था। लेकिन हम में से अधिकाँश लोग इस बात से परिचित नहीं होंगे कि न्यूटन (Isaac Newton)  से भी हजारों वर्ष पूर्व महर्षि कणाद ने गति के नियम वैशेषिक दर्शन में लिख दिए थे। वैशेषिक दर्शन में महर्षि कणाद ने गति के लिए कर्म शब्द प्रयोग किया है।  न्यूटन ने अपने शोध पत्र प्रिंसिपिया ऑफ मैथमैटिका में गति के तीन नियम दिए, जिसमें गुरुगुत्वाकर्षण, गतिज ऊर्जा और मोमेंटम के बारे में सिद्धांत दिए गए थे। जबकि भारतीय दर्शनशास्त्र के वैशेषिक सूत्र के अनुसार आचार्य कणाद ने 600 बीसी में ही गति के नियमों को स्थापित कर दिया था।
 
  
इसके कुल 5 प्रकार हैं जो निम्न हैं-: 
 
 
1. उत्क्षेपण (Upward motion)
 
 
2. अवक्षेपण (Downward motion)
 
 
3. आकुञ्चन (Motion due to the release of tensile stress)
 
 
4. प्रसारण (Shearing motion)
 
 
5. गमन (General Type of motion)
 
 
विभिन्न कर्म या motion को उसके कारण के आधार पर जानने का विश्लेषण वैशेषिक में किया है। 
 
 
(1) नोदन के कारण – लगातार दबाव
 
 
(2) प्रयत्न के कारण – जैसे हाथ हिलाना
 
 
(3) गुरुत्व के कारण – कोई वस्तु नीचे गिरती है
 
 
(4) द्रवत्व के कारण – सूक्ष्म कणों के प्रवाह से
 
 
ये दावा सिर्फ हम नहीं बल्कि 'नेचुरल साइंसेज ट्रस्ट के चेयरमैन' और शोभित विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियांक भारती ने भी अपने शोधपत्र, 'आचार्यकणाद : फादर ऑफ फिजिक्स एंडएं ट्रू इनवेंटर ऑफ लॉ ऑफ मोशंस' के प्रकाशन में किया है। इसके अलावा डॉ एन जी डोंगरी अपनी पुस्तक 'Physics in Ancient India' में वैशेषिक सूत्रों के ईसा की प्रथम शताब्दी में लिखे गए प्रशस्तपाद भाष्य में उल्लिखित वेग संस्कार और न्यूटन द्वारा 1675 में खोजे गए गति के नियमों की तुलना की है। 
 
 
महर्षि प्रशस्तपाद लिखते हैं
 
 
‘वेगो पञ्चसु द्रव्येषु निमित्त-विशेषापेक्षात्‌कर्मणो जायते नियतदिक्‌क्रिया प्रबंध हेतु: स्पर्शवद्‌द्रव्यसंयोग विशेष विरोधी क्वचित्‌कारण गुण पूर्ण क्रमेणोत्पद्यते।'
 
 
अर्थात्‌ वेग या मोशन पांचों द्रव्यों (ठोस, तरल, गैसीय) पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है। तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है। अब ऊपर दिए गए प्रशस्तिपाद की भाषा को 3 भागों में विभाजित करें तो न्यूटन के गति सम्बंधी नियमों से इसकी समानता स्पष्ट होती है। 
 
 
(1) वेग: निमित्तविशेषात्‌कर्मणो जायते
 
The change of motion is due to impressed force (न्यूटन का पहला सिद्धांत)
 
 
(2) वेग निमित्तापेक्षात्‌कर्मणो जायते नियत्दिक्‌क्रिया प्रबंध हेतु
 
The change of motion is proportional‌ to the motive force impressed and is made in the direction of the right line in which‌ the force is impressed  (न्यूटन का दूसरा सिद्धांत)
 
 
(3) वेग: संयोगविशेषाविरोधी
 
To every ‌action there is always an equal‌ and opposite reaction  (न्यूटन का तीसरा सिद्धांत)
 
 
द्रव्य क्या है? इसकी महर्षि कणाद की व्याख्या बहुत व्यापक एवं आश्चर्यजनक है। वे कहते हैं-
 
 
पृथिव्यापस्तेजोवायुराकाशं कालोदिगात्मा मन इति द्रव्याणि
 
वैशेषिक दर्शन 1/5
 
 
अर्थात्‌ पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा जीवात्मा तथा मन ये द्रव्य हैं। यहां पृथ्वी, जल आदि से कोई हमारी पृथ्वी, जल आदि का अर्थ लेते हैं। पर ध्यान रखें इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में ये 9 द्रव्य कहे गए, अत: स्थूल पृथ्वी से यहां अर्थ नहीं है। वे कहते हैं, पृथ्वी यानि द्रव्य का ठोस (solid) रूप, जल यानि द्रव्य (liquid) रूप तथा वायु (gas) रूप, यह तो सामान्यत: दुनिया में पहले से ज्ञात था, पर महर्षि कणाद कहते हैं कि तेज भी द्रव्य है। जबकि पदार्थ व ऊर्जा एक है यह ज्ञान 20वीं सदी में आया है।
 
 
इसके अतिरिक्त वे कहते हैं- आकाश भी द्रव्य है तथा आकाश परमाणु रहित है और सारी गति आकाश के सहारे ही होती है, क्योंकि परमाणु के भ्रमण में हरेक के बीच अवकाश या प्रभाव क्षेत्र रहता है। अत: हमारे यहां घटाकाश, महाकाश, हृदयाकाश आदि शब्दों का प्रयोग होता है।
 
 
महर्षि कणाद कहते हैं- दिक्‌ (space) तथा काल (time) यह भी द्रव्य है। जबकि पश्चिम से इसकी अवधारणा आइंस्टीन के सापेक्षतावाद के प्रतिपादन के बाद आई। महर्षि कणाद के मत में मन तथा आत्मा भी द्रव्य हैं। हालाँकि इस अवधारणा को मानने की मानसिकता आज के विज्ञान में भी नहीं है। प्रत्येक द्रव्य की स्थित आणविक है, वे गतिशील हैं तथा परिमण्डलाकार उनकी स्थिति है। अत: ये कहना कदापि गलत नहीं होगा कि न्यूटन से पहले महर्षि कणाद ने मोशन के नियम दे दिए थे। अर्थात ये भी कहा जा सकता है कि न्यूटन ने कणाद के लिखे सिद्धांत को कॉपी किया और फिर उसे ही पूरी दुनिया ने सच मान लिया।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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