यूं तो कण-कण में राम विराजमान हैं लेकिन प्रभु श्रीराम का एक ख़ास रिश्ता हमारे भारतीय संविधान से भी है। आज हम अपने इस वीडियो में संविधान की मूल प्रति में बनाई गई श्री राम और भगवान कृष्ण के साथ-साथ पौराणिक पात्रों की तस्वीरों के बारे में चर्चा करेंगे। भारतीय संविधान की मूल प्रति में मौलिक अधिकारों से जुड़े अध्याय यानि संविधान के भाग 3 के आरम्भ में एक स्केच है। यह स्केच मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण का है। बताया जाता है कि यह तस्वीर लंका में रावण पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त जब प्रभु राम अयोध्या वापस जा रहे थे तब की है। लेकिन मौलिक अधिकारों के बीच में श्री राम ही क्यों ?
लंका पर विजय प्राप्ति के बाद अयोध्या लौटते श्री राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण की तस्वीर
ऐसा इसलिए क्योंकि श्रीराम भारत के सांस्कृतिक, नैतिक और राजनैतिक मूल्यों के आदर्श रहे हैं। उनका व्यक्तित्व एवं जीवन दर्शन हमारे संवैधानिक मूल्यों के समरूप हैं। जब अंग्रेजी शासन से देश स्वाधीन हुआ और भारतीय संविधान लागू हुआ तो उस वक्त समस्त अधीन प्रजा जनों को उनके मौलिक अधिकार प्राप्त हुए। बिना किसी भेदभाव के एक सामान अधिकार। यह स्थिति साफ तौर पर 'राम राज्य' को दर्शाती है। राम राज्य में सभी को एक सामान अधिकार प्राप्त था।
संविधान का अनुच्छेद 21 : जोकि ‘प्राण और दैहिक स्वतंत्रता’ की बात करता है, अर्थात जीने के अधिकार (Right to Life) की बात करता है। इसके अंतर्गत सभी को सम्मान पूर्वक जीवन यापन के साथ-साथ मृत्यु के पश्चात गरिमामय अंतिम संस्कार का भी अधिकार प्राप्त है। लंका में रावण से युद्ध में विजय प्राप्ति के बाद भगवान श्री राम ने अपने शत्रु का वध करने के पश्चात् उनका ससम्मान अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया।
लेकिन कल्पना कीजिये कि क्या आज के समय में ये ऐसा करना संभव होता ? आज स्थिति ऐसी है कि अगर स्कूलों के पाठ्यक्रम में भारतीय संस्कृति, भारतीय शास्त्र व श्री राम की तस्वीर आ जाये तो उसे साम्प्रदायिक रंग दे दिया जा जाता है। लेकिन हमारे संविधान निर्माताओं ने सर्वसम्मत्ति से संविधान की मूल प्रति में भगवान राम, युद्ध के मैदान में अर्जुन को उपदेश देते श्रीकृष्ण, भगवान बुद्ध और हमारी अन्य भारतीय संस्कृति को स्थान देने का काम किया।
अर्जुन को उपदेश देते श्री कृष्ण
इन चित्रों को बनाने की जिम्मेदारी उस समय के मशहूर चित्रकार और शांति निकेतन से जुड़े नंदलाल बोस को दी गई। नंदलाल बोस और उनके शिष्यों ने 22 चित्रों के अलावा संविधान के पन्नों के किनारों को भी डिजाइन किया। संविधान को बनाने में दो साल 11 महीने और 18 दिन का समय लगा था। हालांकि, उसे लिखने में 6 महीने का समय लगा। संविधान सभा के 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान पर हस्ताक्षर किए थे। मूल संविधान में 10 पेज पर सभी लोगों के हस्ताक्षर हैं।
जब हम राम के शासन की आकांक्षा करते हैं तो हमारा तात्पर्य होता है – ‘रामराज्य’, न कि ‘रामराज’। राम के राज्य का अर्थ है प्रजाहित में सुरक्षित, संपन्न, प्रगतिशील व सकारात्मक राज्य की स्थापना। इसी प्रकार हमारे संविधान ने भी भारत को व्यक्ति केंद्रित ‘राज’ तक सीमित नहीं रखा। बल्कि संविधान एक ‘प्रजा केंद्रित’ राज्य को स्थापित करता है। एक ऐसा सकारात्मक व प्रगतिशील राज्य जिसकी परिकल्पना राम के आदर्शों का प्रतिविम्ब ही है। यह स्वीकारना गलत नहीं होगा कि भारत के सांस्कृतिक, नैतिक और राजनैतिक मूल्यों के आदर्श श्री राम का व्यक्तित्व एवं जीवन दर्शन हमारे संवैधानिक मूल्यों के समरूप है।