1.स्वदेशी न्यूक्लियर सबमरीन निर्माण
मंजूरी: सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) ने स्वदेशी रूप से 2 न्यूक्लियर सबमरीन बनाने की योजना को हरी झंडी दी है।
उद्देश्य: यह कदम समुद्री क्षेत्र में भारत की रणनीतिक क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
2. MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन समझौता
कुल लागत: लगभग 80 हजार करोड़ रुपये।
ड्रोन की खरीद: अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन की खरीद लगभग 40 हजार करोड़ रुपये में हुई।
ड्रोन निर्माता: अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स द्वारा निर्मित।
असेंबली: कुछ ड्रोन भारत में ही असेंबल किए जाएंगे, जिनमें से 30% कंपोनेंट्स भारतीय सप्लायर्स से होंगे।
3. MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन की विशेषताएं:
लड़ाकू क्षमता: हेलफायर मिसाइल, प्रिसिजन-गाइडेड बम और हाई-फायर रोटरी तोप से लैस।
हंटर-किलर UAV: इसे लंबी दूरी तक चलने वाला एंड्योरेंस ड्रोन कहा जाता है, जो हवा से जमीन पर हमला करने में सक्षम है।
सर्विलांस और स्ट्राइक मिशन: इसका उपयोग जासूसी, सर्विलांस, जानकारी जुटाने और दुश्मन के ठिकानों पर चुपके से हमला करने के लिए किया जा सकता है।
रेंज और वजन: इसकी अधिकतम रेंज 1900 किमी है और यह 1700 किलोग्राम तक के हथियार लेकर जा सकता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम: इसे दो कंप्यूटर ऑपरेटर्स ग्राउंड स्टेशन से नियंत्रित करते हैं।
तकनीकी विवरण:
लंबाई: 36.1 फीट
विंगस्पैन: 65.7 फीट
ऊंचाई: 12.6 फीट
गति: 482 किमी/घंटा
अधिकतम ऊंचाई: 50,000 फीट
हथियार क्षमता: 4 AGM-114 Hellfire मिसाइलें, 2 लेजर गाइडेड GBU-12 Paveway II बम।
4. तैनाती और रणनीतिक उपयोग:
तैनाती स्थान: 31 ड्रोन में से नेवी को 15, आर्मी और एयरफोर्स को 8-8 ड्रोन मिलेंगे।
नेवी की तैनाती: INS राजाली (चेन्नई) और पोरबंदर (गुजरात)।
आर्मी और एयरफोर्स की तैनाती: गोरखपुर और सरसावा (उत्तर प्रदेश)।
लद्दाख और अरुणाचल सीमा की निगरानी: चीन के साथ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर निगरानी में ड्रोन अहम भूमिका निभाएंगे। समुद्री इलाकों और चीन-पाकिस्तान सीमाओं की निगरानी के लिए इन ड्रोन का उपयोग किया जाएगा।
अमेरिका ने भारत को स्वदेशी ड्रोन निर्माण में तकनीकी सहायता और सलाह देने का प्रस्ताव दिया है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान इस डील को अंतिम रूप दिया गया था। यह रक्षा समझौता भारत की सुरक्षा और सामरिक क्षमताओं में बड़ा बदलाव लाएगा। MQ-9B प्रीडेटर ड्रोन की खरीद और न्यूक्लियर सबमरीन का स्वदेशी निर्माण भारत की बढ़ती रक्षा आवश्यकताओं के प्रति एक ठोस कदम है।