3 दशक बाद वैदिक मंत्रों से गूंजा ज्ञानवापी ; पढ़ें ज्ञानवापी के उस व्यास तहखाने की कहानी, जहां 30 वर्षों बाद हुई आरती

01 Feb 2024 13:44:11

Gyanvapi Vyas ji
 
 
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद मामले में गत बुधवार हिन्दू पक्ष को वाराणसी जिला न्यायालय से बड़ी सफलता प्राप्त हुई। दरअसल वाराणसी जिला कोर्ट ने हिन्दू पक्ष को ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में पूजा की अनुमति प्रदान कर दी है। वाराणसी जिला अदालत ने पूजा पर लगी रोक को हटाते हुए DM को 7 दिन के अंदर पूजा शुरू कराने का आदेश दिया था। लगभग 3 दशक से यहाँ पूजा पाठ बंद था, जिसे बुधवार देर रात कड़ी प्रशासन व्यवस्था के अंदर एक बार फिर पूजा पाठ के लिए खोल दिया गया। ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मिलने के बाद देर रात करीब 2 बजे कड़ी सुरक्षा के बीच वेद आचार्यों द्वारा व्यास तहखाने का शुद्धिकरण किया गया और यहाँ पूजा-अर्चना की गई। करीब 30 साल बाद ज्ञानवापी के तहखाने में आरती और वैदिक मंत्रों की गूंज सुनाई दी।
 
 
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कब से बंद था पूजा पाठ ? 
 
 
गौरतलब है कि यहाँ ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में 1993 से पूजा पाठ बंद थी। केस में हिंदू पक्ष का दावा है कि नवंबर 1993 से पहले व्यास तहखाने में पूजा-पाठ को उस वक़्त की प्रदेश सरकार ने रुकवा दिया था। लिहाजा इस मांग को लेकर हिन्दू पक्ष ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जबकि मुस्लिम पक्ष ने अस्वीकार्यता जाहिर करते हुए 'प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट' का हवाला देते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की थी। तभी अगस्त 2021 में 5 महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के समक्ष एक याचिका दायर की। इस याचिका में उन्होंने ज्ञानवापी के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी। महिलाओं की याचिका पर विचार करते हुए जिला जज रवि कुमार दिवाकर ने ज्ञानवापी परिसर का एडवोकेट सर्वे कराने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश पर पिछले साल 3 दिन तक सर्वे हुआ था।
 
 
 
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जब हर हर महादेव के नारों से गूंजा ज्ञानवापी परिसर  
 
 
इसी सर्वे के दौरान हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर में वजुखाना में एक आकृति देखी। आकृति देखते ही हिन्दू पक्ष ने यह मांग की कि वजुखाने का पानी कम कराकर वहां भी सर्वे किया जाए। इस मांग को मुस्लिम पक्ष ने फिर अस्वीकार किया लेकिन आदेश के अनुसार वजुखाने का भी सर्वे हुआ जिसमें शिवलिंग की आकृति का एक विशाल पत्थर नजर आया। हिन्दू पक्ष ने दावा किया कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है। हालांकि यहाँ भी मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है। लेकिन फिर कई तरह के सवाल उठने लगे कि आखिरकार सदियों पहले बिजली थी नहीं तो फिर फव्वारा का क्या काम ? इसके अतिरिक्त अगर वो फव्वारा था तो फिर उसमें किसी भी प्रकार पाइप क्यों नहीं जैस अनगिनत सवाल थे जिसका जवाब मिलना मुश्किल। 
 
 
 
 
 
वजुखाने में शिवलिंग की आकृति मिलने के बाद ज्ञानवापी परिसर 'हर हर महादेव के नारों' से गूंज उठा। इसके बाद हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की। मांग पर विचार करते हुए सेशन कोर्ट ने इस इलाके को सील करने का आदेश दिया था। सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया यानि मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। SC ने केस जिला जज को ट्रांसफर कर इस वाद की पोषणीयता पर नियमित सुनवाई कर फैसला सुनाने का निर्देश दिया था। मुस्लिम पक्ष की ओर से यह दलील दी गई थी कि ये प्रावधान के अनुसार और उपासना स्थल कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में यह वाद पोषणीय नहीं है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं हो सकती है। हालांकि, कोर्ट ने इसे सुनवाई योग्य माना था।
 
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मार्च 2023 में उठी ASI सर्वे की मांग  
 
 
बहरहाल इस बीच मई 2023 में 5 वादी महिलाओं में से 4 महिलाओं ने कोर्ट में एक नई याचिका दाखिल की, इसमें मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर का ASI से सर्वे कराया जाए। महिलाओं की इस मांग पर जिला जज एके विश्वेश ने संज्ञान लेते हुए अपना फैसला सुनाते हुए ASI सर्वे कराने का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी परिसर का ASI सर्वे कराया गया था। 18 दिसंबर, 2023 को ASI ने जिला जज की अदालत में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसके बाद हिंदू पक्ष ने मांग की थी कि सर्वे रिपोर्ट की कॉपी दोनों पक्षों को सौंपी जाए। जिस पर 24 जनवरी 2024 को जिला कोर्ट ने सभी पक्षों को सर्वे रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश के अनुसार दोनों पक्षों को रिपोर्ट सौंपी गई। 
 
 
 
 
 
सर्वे में हिन्दू मंदिर होने का दावा
 
 
सर्वे रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद इस मामले में मुख्य वकील विष्णु शंकर जैन ने एक प्रेसवार्ता किया और बताया कि GPR सर्वे पर ASI ने कहा है कि 'यह कहा जा सकता है कि प्राचीन समय में यहां पर एक बड़ा भव्य हिन्दू मंदिर था।' सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक ज्ञानवापी में अभी के ढांचा के पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। ASI के मुताबिक वर्तमान जो ढांचा है उसकी पश्चिमी दीवार पहले के बड़े हिंदू मंदिर का हिस्सा है यहां पर एक प्री एक्जिस्टिंग स्ट्रक्चर है उसी के ऊपर बनाए गए। हिंदू पक्ष ने आगे रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पिलर्स और प्लास्टर को थोड़े से मोडिफिकेशन के साथ मस्जिद के लिए फिर से इस्तेमाल किया गया है। हिंदू मंदिर के खंभों को थोड़ा बहुत बदलकर नए ढांचे के लिए इस्तेमाल किया गया। पिलर के नक्काशियों को मिटाने की कोशिश की गई। 
 
 
 
 
 
मंदिर के मिले 32 से ज्यादा साक्ष्य 
 
 
ASI सर्वे के मुताबिक यहाँ पर 32 ऐसे शिलालेख मिले हैं जो पुराने हिंदू मंदिर के हैं। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि अगर देखें तो काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी का विवाद काफी हद तक अयोध्या और बाबरी जैसा ही है। हालांकि, अयोध्या धाम के मामले में मुगलों द्वारा मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बना दी गई थी थी और इस मामले में मंदिर-मस्जिद दोनों ही बने हुए हैं। लेकिन ASI सर्वे के बाद मिले साक्ष्य यह चीख चीख कर बता रहे हैं कि मस्जिद से पूर्व यह भव्य हिन्दू मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बना दिया गया। काशी विवाद में हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी लेकिन विडंबना यह है कि साक्ष्य मौजूद होने के बावजूद मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बनी थी।
 
 
 
 
 
काशी विश्वनाथ का इतिहास  
 
 
वहीं इसके अलावा अगर हम इतिहासकारों और जानकारों की माने तो उनका भी कहना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को अकबर के 9 रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने बनवाया था। इसे 1585 में बनाया गया था। लेकिन 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण कराया। इसके बाद एक बार फिर 1735 में रानी अहिल्याबाई ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया, जो आज भी मौजूद है। रानी अहिल्याबाई की एक भव्य प्रतिमा काशी विश्वनाथ मंदिर के भीतर मौजूद है। हालांकि, ज्ञानवापी स्थित व्यासजी के तहखाना प्रकरण को लेकर शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास ने कोर्ट में इस बात का दावा किया कि आदि विश्वेश्वर की पूजा का इतिहास 473 साल पुराना है। शैलेंद्र कुमार द्वारा कोर्ट में जो दलील दी गई है उसके मुताबिक, ज्ञानवापी में शतानंद व्यास ने वर्ष 1551 में आदि विश्वेश्वर की पूजा शुरू की थी। इसके बाद व्यास परिवार की कई पीढ़ियों ने जिम्मेदारी निभाई और साल 1930 में इस परिवार के बैजनाथ व्यास ने पूजा-पाठ का जिम्मा संभाला। फिर उनके बेटी राजकुमारी उत्तराधिकारी बनीं जिनके चार बेटे हुए जिनमें से एक का नाम सोमनाथ व्यास था। शैलेंद्र कुमार इन्हीं सोमनाथ व्यास की बेटी ऊषा रानी के बेटे के रूप में तहखाने में पूजा का अधिकार मांग रहे थे। बहरहाल अब 3 दशक बाद एक बार फिर व्यास तहखाने की शुद्धि करण 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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