जम्मू कश्मीर में 1990 का दौर मानवीय इतिहास के सबसे काले अध्याय में से एक था। यह वह दौर था जब जम्मू कश्मीर में रहने वाले लाखों कश्मीरी हिन्दू अलगाववाद और आतंकवाद की भेंट चढ़ गए। आतंकवाद के कारण उन्हें अपनी जन्मभूमि छोड़कर देश के अन्य हिस्सों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1989-90 के दौरान कश्मीर घाटी में आतंकवाद अपने चरम पर था। कश्मीर में रहने वाले मुस्लिम आवाम के दिलों में भी कट्टरपंथियों द्वारा आतंकवाद का जहर घोल दिया गया था। वो सदियों से साथ रहते आए हिंदूओं को अचानक अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझने लगे थे। बडगाम निवासी तेज कृष्ण राजदान भी इसी जहर के शिकार बने। लिहाजा आज की कड़ी में हम 12 फरवरी के उस काले दिन की बात करेंगे जब इंस्पेक्टर TK राजदान का एक वर्षों पुराना साथी उनके जान का दुश्मन बना और उनकी नृशंस हत्या कर दी।
तेज़ कृष्ण राज़दान, जम्मू कश्मीर के बढियार भल्ला, श्रीनगर के रहने वाले थे। तेज़ कृष्ण राज़दान 'केंद्रीय जांच ब्यूरो' (CBI ) में बतौर इंस्पेक्टर नियुक्त हुए थे। उन दिनों उनकी पोस्टिंग पंजाब में थी। फरवरी,1990 में तेज़ कृष्ण राज़दान छुट्टियों में अपने गांव आए हुए थे। राजदान छुट्टियों के बाद अपने पूरे परिवार को अपने साथ पंजाब में रहने के लिए ले जाना चाहते थे। लेकिन शायद समय को यह मंजूर नहीं था। तारीख थी 12 फरवरी 1990, इंस्पेक्टर राजदान बडगाम में अपने एक मुस्लिम दोस्त से मिले जिसका नाम मंज़ूर अहमद शल्ला था। लेकिन तेज़ कृष्ण राज़दान को इस बात का नहीं पता था की उनका पुराना मुस्लिम दोस्त अब एक आतंकी बन चुका था। वो अब 'जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट' (JKLF) नामक आतंकी संगठन के लिए काम करता था।
मंज़ूर अहमद शल्ला ने तेज़ कृष्ण राज़दान को लाल चौक किसी काम से चलने के लिए कहा और दोनों लाल चौक के लिए बस में बैठकर निकल गए। थोड़ी दूर ही बस गाँव-कदल में दूसरी सवारियों को उतारने के लिए रुकी, तो अचानक मंज़ूर अहमद शल्ला ने एक रिवॉल्वर निकाली और तेज़ कृष्ण राज़दान को कई बार सीने में गोली मारी। आतंकी मंज़ूर अहमद शल्ला ने टी.के राज़दान को बस से बाहर खींचा और मुस्लिम यात्रियों को राज़दान के शव को पैरों के नीचे रौंदने के लिए उकसाया। काफी दूर तक उसे सड़क पर घसीटा गया और उनके शव को एक मस्जिद के किनारे फेंक दिया।
मस्जिद के बाहर फेंकने के बाद उस आतंकी ने हिन्दुओं को अपनी बर्बरता का उदाहरण देने के लिए और हिंदुओं के मन में दहशत भरने के लिए टी.के राज़दान के पहचान पत्र निकाले और उन पहचान पत्रों को एक-एक कर कीलों से उनके शरीर पर घोंप दिए। उनका शव तब तक वही पड़ा रहा जब तक कि उनके मृत शरीर को पुलिस ने अपने कब्ज़े में नहीं ले लिया। बाद में पुलिस ने बताया कि JKLF आतंकी मंज़ूर अहमद शल्ला द्वारा यह हत्या की गई थी जो की टी.के राज़दान का बहुत अच्छा मित्र था। उनके शव का CRPF ने उनके पहचान पत्र के साथ अंतिम संस्कार कर दिया था।