22 मार्च 1990, कश्मीरी हिन्दू BK गंजू के नृशंस हत्या की कहानी ; आतंकियों ने उनकी पत्नी को पति के खून से रंगे चावल खाने को किया मजबूर

22 Mar 2024 15:34:14
 
22 March 1990 the story of the brutal murder of Kashmiri Hindu BK Ganju
 
कश्मीरी हिंदुओं का जातीय संहार स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक है। इस संहार में एक शांतिप्रिय, प्रगतिशील, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष समुदाय को उसके ही गृह प्रदेश में पूरी तरह से खत्म कर दिया गया। कश्मीर में अलगाववादी ताकतों ने एक अभियान चला कर अल्पसंख्यक हिंदुओं को कट्टर शत्रुओं के रूप में पेश किया था। अलगाववादियों का मानना था कि कश्मीरी हिंदू कश्मीर की धरती पर इस्लामी शासनतंत्र स्थापित करने के रास्ते की बाधा हैं और इसीलिए अलगाववादियों ने उन्हें घाटी छोड़ने पर मजबूर करने के लिए विविध रूपों वाले आतंक का राज स्थापित कर दिया। इस जिहादी अभियान के तहत नफरत फैलाने वाले भाषणों, चुन-चुन कर लोगों की हत्याओं, धमकियों और बम धमाकों जैसी सभी तरह की कार्रवाइयों का सहारा लिया गया था। ये बर्बर हत्याएं और अत्याचार वैसे ही थे जिनका सामना नाजियों के शासनकाल में यहूदियों ने किया था। यह सब कुछ ‘धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत’ में हुआ। ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि कश्मीरी हिंदुओं को निर्दयता से मार दिया गया और पूरी दुनिया इसे चुपचाप देखती रही।
 
 
कश्मीरी हिन्दू BK गंजू के नृशंस हत्या की कहानी 
 
 
आज के दिन हम बात करेंगे कश्मीरी हिन्दू BK गंजू की, जिनकी इस्लामिक आतंकियों ने 22  मार्च 1990 को उनके परिवार के सामने ही नृशंस ह्त्या कर दी। सिर्फ हत्या ही नहीं कि बल्कि उनके खून से सने चावल को भी उनकी पत्नी को खाने के लिए मजबूर किया।   1990 में 30 वर्षीय बी. के. गंजू एक श्रीनगर के छोटा बाजार इलाके में रहते थे। केंद्रीय सरकार का कर्मचारी होने के नाते आतंकियों की नजर लगातार बी.के. गंजू पर थी। 22 मार्च 1990 को बी.के. गंजू जब छिपते-छिपाते ऑफिस से घर पहुंचे, तो आतंकी भी उनका पीछा करते हुए घर तक आ धमके। 
 
 
गंजू की पत्नी ने आतंकियों को भांप लिया और पति के घर में घुसते ही तुरंत कुंडी लगा ली। लेकिन आतंकी भी दरवाजा तोड़कर घर के अंदर आ घुसे, इससे पहले ही बी. के. गंजू घर के तीसरे फ्लोर पर रखी चावल की टंकी में छिप गये। आतंकियों ने गंजू को ढूंढने के लिए पूरे घर को तहस-नहस कर दिया, लेकिन वो नहीं मिले।आतंकी जब निराश होकर निकल ही रहे थे, तो मुस्लिम पड़ोसी ने इशारा कर बता दिया कि बीके गंजू चावल की टंकी में छिपे हैं। इसके बाद आतंकियों ने गंजू को टंकी से ढूंढ निकाला और मारपीट के बाद अंधाधुंध गोली चलाकर नृशंस हत्या कर दी। इसके बाद इस्लामिक आतंकी यहीं पर नहीं रूके, उन्होंने बी.के. गंजू के खून में सने चावल को उनकी पत्नी को खाने को मजबूर किया। 
 
 
 
 
 
अगर आपने विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' देखी होगी तो उसमें भी इस सीन को बखूबी दर्शाया गया है। फिल्म में किरदार शारदा पंडित के पति और पुष्कर नाथ पंडित के बेटे के किरदार के जरिये टेलीकॉम इंजीनियर बी. के. गंजू की नृशंस हत्या को दर्शाया गया है। 
 
 
सामूहिक साम्प्रदायिक घटनाओं का नंगा नाच देख चुका हर कश्मीरी हिंदू उन दिनों को नहीं भूल सकता जब उनके पड़ोसियों, सहकर्मियों और आस पास के अन्य लोगों ने हिंदुओं के जातीय सफाये की कार्रवाइयों में जिहादियों का साथ दिया था। दुर्भाग्य से भारत सरकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस गंभीर त्रासदी का कोई संज्ञान नहीं लिया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कश्मीरी हिंदुओं के जातीय संहार का मूल्यांकन करते हुए, अपने आकाओं की मर्जी के मुताबिक काम किया और इसे और इस मानवीय त्रासदी को जातीय संहार घोषित करने से परहेज किया। मानवाधिकार आयोग से सवाल पूछा जा सकता है कि “सैकड़ों लोगों की हत्या, हजारों घरों को जलाने और मंदिरों में तोड़फोड़ के साथ ही 5 लाख से ज्यादा लोगों का उनकी मातृभूमि से सफाया करने का मतलब क्या होता है? क्या यह मानवता के खिलाफ अपराध नहीं है?
 
 
 
 
 
 
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