3 अप्रैल, जयंती विशेष : कहानी सैम मानेकशॉ की, जिन्होंने इंदिरा के आदेश पर कहा 'ना' और जिनकी बहादुरी का पाकिस्तान भी था कायल
03-अप्रैल-2024
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सैम मानेकशाॉ भारत के पहले फील्ड मार्शल थे लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर बहुत दिलचस्प रहा। रौबिली मूंछ, हर बात में तपाक से स्मार्ट सा जवाब देने वाले भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ, जिन्हें अधिकांश लोग सैम मानेकशॉ के नाम से जानते हैं। जिन्होंने पाकिस्तान को इतनी करारी शिकस्त दी थी कि डेढ़ दशक तक वो चूं भी नहीं कर पाया था। मानेकशॉ के ओहदे का अंदाज़ा अप इस बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान ने भी उन्हें अपनी सेना में आने का ऑफ़र दिया था, लेकिन उन्होंने साफ़ तौर पर इंकार कर दिया।
जनरल मानेकशॉ जैसा सेना प्रमुख हिन्दुस्तान तो क्या दुनिया में कहीं नहीं है। देश की आजादी के बाद अभी तक शौर्य और साहस की जितनी कहानियां सुनी और सुनाई जाती हैं, उनमें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की वीरगाथा सबसे अलग है। 3 अप्रैल, 1914 को जन्में सैम मानेकशॉ का बेहतरीन मिलिट्री करियर ब्रिटिश इंडियन आर्मी से शुरू हुआ और तकरीबन 4 दशकों चला। इस बीच 5 युद्ध हुए और खास बात ये रही कि इन सभी युद्धों में भारत ने जीत का परचम लहराया। पर इन युद्धों में सबसे खास और यादगार युद्ध रहा 1971 भारत-पाक युद्ध।
युद्ध के दौरान सैनिकों का हौसला बढाते सैम मानेकशॉ
1932 में सेना में हुए शामिल
सैम मानेकशॉ ने जब भारतीय सेना में जाने का फैसला किया तो उन्हें अपने पिता के विरोध का सामना करना पड़ा। परंतु अपने जिद्द के आगे उन्होंने पिता के की बात तनिक भी ना सुनी और इंडियन मिलिट्री अकैडमी, देहरादून में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा दी। परिणामस्वरूप वह 1932 में पहले 40 कैडेट्स वाले बैच में शामिल हुए। सैम मानेकशॉ को 1942 के दौरान बर्मा में जापान से लड़ते हुए 7 गोलियां लगी थीं, फिर भी वह मौत को हरा कर जिंदा रहे।
घायल अवस्था में सैम को जब हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा था तो कोई भी डॉक्टर उनका इलाज करने को तैयार नहीं हो रहा था। कारण था उनके शरीर में लगी 7 गोलियां। किंतु तमाम प्रयास के बाद सैम मानेकशॉ को अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां हॉस्पिटल में सर्जन ने उनसे पूछा कि उनको क्या हुआ था तो मानेकशॉ ने मजाकिया अंदाज में जवाब देते हुए बोला जवाब, 'मुझे खच्चर ने लात मार दिया था।
सैम मानेकशॉ की अनसुनी दास्ताँ
इसके अलावा सैम मानेकशॉ को लेकर कुछ और भी रोचक बातें थी जैसे एक बार मिजोरम में एक बटालियन उग्रवादियों से लड़ाई में हिचक रही थी और लड़ाई को टालने की कोशिश कर रही थी। इसके बारे में जब मानेकशॉ को पता चला तो उन्होंने चूड़ियों का एक पार्सल बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर को एक नोट के साथ भेजा। नोट में लिखा था, 'अगर आप दुश्मन से लड़ना नहीं चाहते हैं तो अपने जवानों को ये चूड़ियां पहनने को दे दें।' इस नोट का असर ऐसा हुआ कि वो बटालियन युद्ध के लिए तैयार हुई और विजय होकर लौटी।
रक्षामंत्री के सवाल पर मानेकशॉ का बेबाक जवाब
सैम मानेकशॉ सटीक और बेबाक तरीके से जवाब देने में माहिर थे। पूर्व आर्मी चीफ़ जनरल वीके सिंह ने अपनी किताब, ''लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी-बायो ग्राफीज़ ऑफ़ 12 सोल्जर्स'' में सैम मानेकशॉ से जुड़ा एक क़िस्सा बयान किया है। उन्होंने जिक्र करते हुए लिखा कि 'सैम मानेकशॉ जम्मू डिविज़न की कमान संभाल रहे थे, तत्कालीन रक्षामंत्री वीके मेनन वहां दौरा करने पहुंचे थे। बातचीत के दौरान रक्षामंत्री ने मानेकशॉ से आर्मी चीफ़ जनरल के.एस थिमैया के बारे में उनकी राय पूछी।
Major VK Singh Leadership in the Indian Army Biographies of Twelve Soldiers
मानेकशॉ ने बेबाक और सटीक अंदाज़ में जवाब दिया - ''मुझे अपने चीफ़ के बारे में राय बनाने की इजाज़त नहीं है। आप एक जनरल से पूछ रहे हैं कि आर्मी चीफ़ के बारे में उसकी क्या राय है''! कल आप मेरे जूनियर से मेरे बारे में यही सवाल करेंगे तो इससे तो सेना का पूरा डिसिप्लिन ही बिगड़ जाएगा। ज़ाहिर सी बात है कि रक्षामंत्री मेनन जनरल मानेकशॉ के तरीक़े और उनके जवाब से थोड़ा चिढ़ गए। उन्होंने कहा,'अँग्रेज़ों वाली सोच बदलो। मैं चाहूं तो थिमैया को हटा भी सकता हूं'। ऐसे में मानेकशॉ ने तुरंत जवाब देते हुए कहा कि 'आप उन्हें बेशक हटा सकते हैं, लेकिन उनके बदले जो अगला चीफ आएगा, उनके बारे में भी मेरा यही जवाब होगा'। इसके बाद मेनन बिना कुछ कहे वहां से चले गए।
1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध
सैम मानेकशॉ सन 1969 में वह भारतीय सेना के 8वें सेनाध्यक्ष बनाए गए और उनके नेतृत्व में भारत ने सन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजय प्राप्त की। इस युद्ध में सैम मानेकशॉ के कुशल नेतृत्व का नतीजा था कि पाकिस्तान ने अपने 90 हजार सिपाहियों के साथ भारतीय सेना के सामने घुटने टेक दिए। यह युद्ध इतिहास के पन्नों में आज भी सुनहरे अक्षरों में कैद है। इस युद्ध में मिली जीत के बाद ही एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ।
पाकिस्तानी ने मानेकशॉ के क़दमों में रखी पगड़ी
किस्सा है 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के खत्म होने के बाद का। युद्ध ख़त्म होने के बाद पाकिस्तान के हजारों युद्धबंदियों को भारत लाया गया और उनके लिए बंदी शिविर बनाए गए। मानेकशॉ सभी शिविरों में जाते और युद्धबंदियों से मुलाकात करते और उनसे पूछते कि क्या उन्हें कोई दिक्कत तो नहीं है' ? युद्धबंदियों में एक पाकिस्तानी कर्नल भी था। उसने मानेकशॉ से कहा, 'सर अगर आप ''कुरान'' की एक प्रति दिलवा दें तो बड़ी मेहरबानी होगी'। मानेकशॉ ने बिना समय गँवाए राजपूताना राइफल्स केंद्र में अपने एक सैनिक को भेजा, वहां एक मुस्लिम टुकड़ी थी। उनसे कुरान लेकर मानेकशॉ ने शाम होने से पहले ही पाकिस्तानी कर्नल तक पंहुचा दी।
मानेकशॉ के इस व्यवहार को देखकर एक पाकिस्तानी कर्नल बहुत प्रवभावित हुआ और उनसे बोला 'मैंने आपके बारे में बहुत सुना है। मुझे अफ़सोस है कि आप मेरे कमांडर नहीं है।' एक दूसरे मौके पर मानेकशॉ ने जब एक पाकिस्तानी जवान के कंधे पर हाथ रखकर उसका हालचाल पूछा, तो वो लगभग रोते हुए बोला, 'अपनी सेना के जनरलों को तो हम बस दूर से देख सकते थे। वो कभी सैनिकों से इस तरह रूबरू होकर बात नहीं करते थे।' हालाँकि इन युद्धबंदियों को लेकर पाकिस्तान में काफ़ी दुष्प्रचार चलता था।
एक रोज़ मानेकशॉ के साथ एक घटना हुई जिसने इस झूठ की पोल खोल दी। दरअसल हुआ ये कि लाहौर में आर्मी चीफ्स की मीटिंग हुई। इसमें हिंदुस्तान से जनरल मानेकशॉ को भी आमंत्रित किया गया। पाकिस्तानी फ़ौज ने लाहौर गवर्नर हाउस में भोजन का आयोजन किया था। भोजन के बाद मानेकशॉ को बताया गया कि गवर्नर हाउस के कर्मचारी उनसे मिलना चाहते हैं। मानेकशॉ मिलने पहुंचे तो एक पाकिस्तानी कर्मचारी ने अपना साफा उतार कर सैम मानेकशॉ के कदमों में रख दिया। जब उन्होंने इस कारण पूछा तो उस आदमी ने जवाब दिया, 'सर मेरे 5 लड़के आपकी कैद में हैं। वो मुझे खत लिखते हैं, उन्होंने लिखा कि आपने उन्हें कुरान दी, उन्हें चारपाई मिली है जबकि आपके सैनिक जमीन पर सोते हैं। अब मैं किसी पे विश्वास नहीं करता जो कहते हैं कि हिन्दुस्तानी खराब होते हैं'।
1971 युद्ध से जुड़े अन्य किस्से
श्रीनाथ राघवन की किताब '1971 ए ग्लोबल हिस्ट्री ऑफ क्रिएशन ऑफ बांग्लादेश' में इसका जिक्र है। किताब में 1971 युद्ध के बारे में जिक्र करते हुए लिखा गया है कि युद्ध को लेकर पहले मानेकशॉ तैयार नहीं थे। 25 मार्च 1971 को पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू किया और उस वक्त उनका पहला निशाना हिन्दू ही थे। पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से बड़ी संख्या में हिन्दू पलायन कर भारत की सीमा में आने लगे। भारत के लिए ये चिंता का विषय बना गया। बंगाल के मुख्यमंत्री ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को शरणार्थियों की बढ़ती समस्या पर रिपोर्ट भेजी। लिहाजा इंदिरा गाँधी ने भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ को मीटिंग में बुलाया।
इंदिरा गांधी के साथ मानेकशॉ
शरणार्थियों की बढ़ती समस्या वाली रिपोर्ट को इंदिरा गांधी ने जनरल मानेकशॉ की तरफ फेंकते हुए सवाल करते हुए कहा- ''क्या कर रहे हो सैम''? चूँकि मानेकशॉ भी जवाब देने में माहिर थे उन्होंने तुरंत जवाब दिया- ''इसमें मैं क्या कर सकता हूं''। मानेकशॉ के इस जवाब पर इंदिरा गांधी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा- "I want you to march in East Pakistan" जनरल ने बड़े इत्मिनान से जवाब दिया- इसका मतलब तो जंग है मैडम। प्रधानमंत्री ने भी अपने अंदाज में कहा- जो भी है, मुझे इस समस्या का हल चाहिए। इंदिरा गांधी के इस आदेश को सुनकर मानेकशॉ ने मुस्कुराते हुए कहा- 'मैडम ये इतना आसान नहीं है कि आप कहे कि मुझे जंग चाहिए और जंग हो जाए।
लिहाजा मीटिंग में मौजूद वित्त मंत्री यशवंत चौव्हाण ने उनसे सवाल किया जो जनरल की डिक्शनरी में कभी था ही नहीं। उन्होंने मानेकशॉ से पूछा कि ''क्या तुम डर गए हो जनरल''? मानेकशॉ ने कहा मैं एक फौजी हूं, बात डरने की नहीं समझदारी और फौज की तैयारी की है। इस समय हम तैयार नहीं हैं। अगर आप चाहती हैं तो हम लड़ लेंगे। लेकिन मैं गारंटी देता हूं हम हार जाएंगे। दरअसल, सैम जानते थे कि गर्मियों के मौसम में हिमालय में बर्फ पिघलना शुरू हो गई है। वहां मौजूद दर्रे खुलने लगेंगे और पाकिस्तान की मदद के लिए उसका पड़ोसी दोस्त चीन आ खड़ा होगा।
सैम मानेकशॉ एक ऐसे योद्धा थे जो जानते थे कि युद्ध के लिए केवल नीयत ही नहीं नीति की भी जरूरत होती है इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री जैसी शख्सियत को ना करने का माद्दा दिखाया। जिसका फायदा ये हुआ कि भारतीय सेना को युद्ध में उतरने के लिए तैयारी करने का अतिरिक्त समय मिल गया। नतीजा जब पाकिस्तान ने हवाई हमला किया तो उसका मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी की जा चुकी थी। 16 दिसंबर 1971 पाकिस्तान ने 92 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया था। सरेंडर की वो तस्वीरें इतिहास के पन्नों में एक अहम अध्याय की तरह दर्ज हैं। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान का नया नामकरण हुआ और बांग्लादेश के नाम से एक आजाद मुल्क अस्तित्व में आया।
मानेकशॉ की ऑस्टिन शीरलाइन गाड़ी
1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन में जहाँ सभी लोग उनसे खौफ खाते थे उस दौरान सैम मानेकशॉ से उनकी आँखों में आँखें डाल कर सीधा सपाट जवाब देते थे। 1971 युद्ध के सारी तैयारी पूरी कर लेने के उपरान्त एक मीटिंग के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से पूछा था कि क्या लड़ाई की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं? इस पर मानेकशॉ ने तपाक से जवाब देते हुए कहा था ‘I am always ready Sweety’।
पद्म विभूषण समेत कई सम्मानों से किए गए सम्मानित
सैम मानेकशॉ ने अपने बेहतरीन सैन्य करियर के दौरान पद्म विभूषण समेत कई अन्य सम्मानों से नवाजे गए थे। 1971 में मिली जीत के बाद भारत सरकार ने 1972 में उन्हें पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया था। 3 अप्रैल 1914 को जन्में सैम मानेकशॉ ने 27 जून 2008 को अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली। सैम मानेकशॉ की कहानियां और उनकी देशभक्ति हर देशवासियों को सदा प्रेरित करती रहेंगी।