भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण तारीखें हैं जो वैसे तो क्रांतिकारी घटनाओं से सम्बंधित हैं लेकिन उन तारीखों का भारतीय इतिहास में अपना अलग ही महत्त्व है। उन तारीखों में आज की तारीख यानि 8 अप्रैल बेहद महत्वपूर्ण है। दरअसल आज ही के दिन 8 अप्रैल 1929 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके स्वतंत्रता आन्दोलन में उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के सेंट्रल असेंबली में बम फेंक कर हलचल मचा दी थी। सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकने के तुरंत बाद उन दोनों ने अपनी गिरफ़्तारी भी दी। हालाँकि वैसे तो यह घटना एक क्रांतिकारी हिंसात्मक गतिविधि प्रतीत होती है, लेकिन दरअसल इसके पीछे का मुख्य उद्देश्य भारत के युवाओं के मन में देशप्रेम की भावना का संचार करना था। यह घटना भगत सिंह की दूरगामी योजना का हिस्सा थी।
दरअसल अंग्रेजों ने दिल्ली स्थित सेंट्रल असेंबली में ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पास करवा चुकी थी और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ पर चर्चा हो रही थी। ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ के तहत मजदूरों द्वारा की जाने वाली हर तरह की हड़ताल पर पाबंदी लगाने का प्रावधान था। तो वहीं ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ पर अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल का फैसला आना बाकी था, जिसमें सरकार को संदिग्धों पर बिना मुकदमा चलाए ही उन्हें गिरफ्तार करने का हक मिल रहा था। अंग्रेजों द्वारा लाए जा रहे इस काले कानून के खिलाफ स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े क्रांतिकारियों में बेहद रोष था। लिहाजा अब उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी जो सीधे तौर पर अंग्रेजों के होश उड़ा सके।
भगत सिंह की योजना -
इन काले कानूनों के खिलाफ भगत सिंह के मन में एक योजना चल रही थी। वे समझ चुके थे कि क्रांतिकारी संगठन को हिंसा के सहारे आगे बढ़ाना मुश्किल है, लेकिन देश के युवाओं को क्रांतिकारियों के भावनाओं से जोड़ना होगा। इसी को उन्होंने एक अवसर के रूप में देखा और सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई। हालाँकि भगत सिंह को यह भी ज्ञात था कि इस तरह की कार्रवाई के बावजूद भी अंग्रेजों पर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा और ना ही इन बिल को कानून बनने से रोका जा सकेगा। लेकिन बावजूद इसके भगत सिंह ने इस घटना को अंजाम देने की योजना बनाई। क्योंकि भगत सिंह चाहते थे कि अंग्रेज यह जाने कि इस बिल को लेकर क्रांतिकारियों और लोगों में कितनी नाराजगी है।
धमाके के बाद गिरफ़्तारी
इस घटना को लेकर भगत सिंह का कहना था कि सेंट्रल असेंबली में बम का धमाका बहरी अंग्रेज सरकार के कान खोलने का प्रतीक होगा जिससे वह यह सुन सके कि यह कानून गलत है। अंग्रेजों को यह मालूम हो सके कि इस भारत के लोग इस कानून के खिलाफ हैं। इस घटना में सबसे ख़ास बात जो थी वो यह कि जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में 2 बम फेंके, तो उस दौरान उन्होंने इस बात का ख़ास ख्याल रखा कि किसी को कोई नुकसान ना पहुंचे। ये सोच समझकर उन्होंने बिलकुल खाली पड़े स्थान पर बम फेंका। बम भी बिलकुल साधारण था किसी को नुकसान नहीं पहुँचता। इस बीच इस घटना के दौरान जो एक और ख़ास बात थी वो यह कि इस घटना को अंजाम देने के बाद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त वहां से फरार होने की सोचे भी नहीं। घटना को अंजाम देने के तुरंत बाद उन्होंने स्वयं आगे बढ़कर अपनी गिरफ़्तारी दे दी।
गिरफ़्तारी के दौरान वे बिल के विरोध में नारे लगाते रहे और पर्चे फेकते रहे और इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए अपनी गिरफ़्तारी दे दी। इस बीच इस घटना ने खूब सुर्खियाँ बटोरी। साथ ही इस बात की चर्चा होने लगी कि आखिरकार उन पर्चियों में क्या लिखा है ? दरअसल दोनों क्रांतिकारियो ने असेंबली मे जो पर्चे फेंके उसका पहला शब्द ‘नोटिस.’ था। इसके बाद उनमें पहला वाक्य फ्रेंच शहीद अगस्त वैलां का था- बहरों को सुनाने के लिए विस्फोट के बहुत ऊंचे शब्द की आवश्यता होती है। यही एक भगत सिंह के प्लान का सबसे प्रमुख हिस्सा था और जिस तरह से उन्होंने बिना किसी को मारे और भागे गिरफ्तारी दी वो अपने आप में महत्वपूर्ण बात थी।
दोनों ही स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ मुकदमा
जिस वक्त यह धमाका हुआ उस दौरान गिरफ्तारी के समय अंग्रेजी सुरक्षा कर्मी दोनों क्रांतिकारियों के करीब आने से डर रहे थे। उन्हें ऐसा लगने लगा कि दोनों लोगों के पास कोई घातक हथियार होगा, लेकिन ऐसा नहीं था किसी के पास भी कोई हथियार नहीं था। गिरफ़्तारी के बाद कोर्ट में पेशी हुई और जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ मुकदमा चला तो उस दौरान अंग्रेजों ने कुछ गवाह ऐसा पैदा करने की कोशिश की जो कह सकें कि गिरफ्तारी के समय भगत सिंह के पास पिस्तौल थी। हालाँकि कुल मिलाकर मुकदमे में ज्यादा दम नहीं था जिससे दोनों क्रांतिकारियों को बड़ी सजा मिल सके।
भगतसिंह ने अदालत में अपने आरोपों पर बहुत शानदार जवाब दिए जिससे उनके और क्रांतिकारियों के लिए देश में एक सकारात्मक महौल बना। उन्होंने खुद पर लगे हर आरोपों पर सफाई देते हुए अदालत को अपने काम का मकसद बताया। उन्होंने खुद को आम हिंसक अपराधियों से अलग साबित भी किया। उनकी दलीलें देश के अखबारों के जरिए लोगों तक पहुंचीं कई युवाओं में देशभक्ति की भावना पनपी। इस सब का नतीजा यह हुआ कि बटुकेश्वर दत्त को उम्र कैद हुई लेकिन अंग्रेज लाहौर हत्याकांड के मामले में भगतसिंह को फांसी की सजा दिलाने में सफल रहे।