अगर कोई आपसे पूछे कि 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में क्या बदला तो ये दो तस्वीर दिखाइयेगा। एक तस्वीर बताती है कि कैसे कश्मीरी... अलगाववाद और आतंकवाद की सोच और खौफ को मिटाकर अपनी तरक्की और लोकतांत्रिक खुशहाली के लिए अपने प्रतिनिधि को चुनने के लिए कतार में लगे हैं। दूसरी तस्वीर बताती है.. कि कैसे पिछले 77 सालों तक पाकिस्तान के कब्जे और जुल्म से आजिज गुलामों ने मुक्ति के लिए बगावत छेड़ दी है। ये दोनों तस्वीर 5 साल पहले एक सपना लगती थी, लेकिन 2024 में यही हकीकत है।
पहली तस्वीर सोमवार की है, यहां श्रीनगर लोकसभा सीट पर हुए मतदान की है, कई दशक बाद कश्मीर घाटी में ये तस्वीर देखने को मिली हैं.. लोग बेखौफ लंबी-लंबी कतारों में लगे रहे, भारत के संविधान में आस्था जताते हुए भारत की संसद में अपनी संसद में अपने प्रतिनिधि को भेजने के लिए मतदान किया। 80 के दशक के बाद ये पहली बार था, जब न कोई बायकॉट की कॉल दी गयी और न ही मतदाताओं को धमकी। नतीजा इस बार का मतदान पिछले 4 दशक का रिकॉर्ड तोड़ गया।
श्रीनगर लोकसभा सीट पर सोमवार को करीब 38 पर्सेंट वोट डाले गये। अभी इस आंकड़े में पोस्टल बैलट औऱ माइग्रैंट्स के वोट शामिल नहीं किये गये हैं, यानि ये आंकड़ा 40 फीसदी को पार करेगा। देश के अन्य हिस्सों की तुलना में ये आंकड़ा आपको कम लग सकता है, लेकिन कश्मीर के मामले में ये किसी कमाल से कम नहीं है। कुछ आंकड़ों पर गौर करिए-
2019 में श्रीनगर लोकसभा सीट पर मात्र 14.43 पर्सेंट वोटिंग हुई थी। 2014 में 25.86%, 2009 में भी करीब-करीब उतना ही (25.55%), 2004 में उससे भी कम सिर्फ 18.57, 1999 में और कम.. सिर्फ 11.93 %, 1998 में 30.06 %, 1991 में कश्मीरी हिंदूओं के नरसंहार के बीच चुनाव हो ही नहीं पाये थे और 1989 में यहां कोई उम्मीदवार खड़ा ही नहीं हो पाया था। इन आंकड़ों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पिछले लगभग 4 दशकों में यहां चल क्या रहा था।
इस बार ये आंकड़ें इसीलिए भी बड़े हैं क्योंकि इस बार श्रीनगर लोकसभा के परिसीमन के बाद त्राल, शोपियां और पुलवामा विधानसभा का क्षेत्र श्रीनगर लोकसभा में जोड़ा गया था। जो कश्मीर को थोड़ा-बहुत भी जानता है, तो उसको पता है कि ये तीनों विधानसभा क्षेत्र किस कदर संवेदनशील रहे हैं आतंकवाद और अलगाववाद से पीड़ित थे। लेकिन इस बार यहां की वोटिंग देखिए पुलवामा में 43.39 %, शोपियां में 47.88 %. और त्राल में 40.29 % वोटिंग हुई। ऐसी बंपर वोटिंग.. निश्चित कश्मीर की जीत है, भारत के संविधान की जीत है.. एक अखंड भारत की जीत है।
जैसा मैने कहा कि ये पहली बार था.. जब न तो किसी बॉयकॉट का फतवा जारी किया और न ही धमकी। बल्कि इस बार तो वो नेता भी स्लो वोटिंग की शिकायत कर रहे थे, जो 8-9 वोटिंग के चलते चुनाव जीता करते थे। प्रशासन से गुहार लगाई जा रही थी कि वोटिंग की स्पीड बढ़ाई जाये। अब बताइये इससे अच्छे दिन और क्या ही आयेंगे।
खैर जम्मू कश्मीर के इस हिस्से ने तो बेहतर भविष्य का मंत्र साध लिया है, लेकिन जम्मू कश्मीर के उस दूसरी तस्वीर की बात करते हैं, जोकि 77 सालों से पाकिस्तान के कब्जे का शिकार है, लेकिन अंतत: अपने मुक्ति का आंदोलन छेड़ दिया है। पिछले कई दिनों से POJK के मुजफ्फराबाद, मीरपुर, कोटली में प्रदर्शनकारियों ने आजादी के नारों के साथ आंदोलन छेड़ रखा है। 77 सालों से पाकिस्तान.. इस क्षेत्र में कई डैम बनाकर, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता रहा है, लेकिन यहां की बिजली इस्लामाबाद-कराची को रोशन करती है और POJK में अंधेरा। आज POJK में न खाने को आटा है... न सड़कें.. कई नदियां होने के बावजूद भी न पीने को पानी। ऊपर से पाकिस्तान ने POJK को आतंकी जिहाद का अड्डा बनाकर रखा, एलओसी पार से घुसपैठ कराने के लिएं, आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए, यहां के लोग भी इस कृत्य का हर संभव समर्थन करते रहे। लेकिन भूख और बदहाली की आग ने जिहादी लबादे को उतार फेंका और उतर गये सड़कों।