Kargil War Story : 3 मई 1999 से शुरू हुआ कारगिल युद्ध 26 जुलाई 1999 को भारत की विजय के साथ खत्म हुआ। कारगिल युद्ध या कहे ऑपरेशन विजय देश के सैनिकों के वीरता की वो कहानी है जिसके किस्से सुनने के बाद हरेक भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और आखें नम हो जाती है।
भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरुआत
आजादी के बाद से ही पाकिस्तानी सेना के पहले जनरल अयूब खान भारत को कमजोर देश समझते थे। लिहाजा इसी कारण सन् 1965 में अयूब खान ने हिम्मत करके भारत पर हमला कर दिया। लेकिन अयूब खान भारतीय सेना के प्रतिकिया से इतना हिल गए थे कि उन्होंने पाकिस्तान की कैबिनेट में कहा कि मैं 5 मिलियन कश्मीरियों के खातिर 100 मिलियन पाकिस्तानी को खतरे में नहीं डाल सकता। 1965 की लड़ाई में भारत से हार के बाद अयूब खान कभी अपनी छवी सही नहीं कर पाए। लेकिन हार के बाद भी पाकिस्तान की सेना ने हिम्मत नहीं हारी, सन् 1971 में सेना के जनरल याह्या खान के आदेश पर पाकिस्तानी सेना ने एक बार फिर भारत के ऊपर हमला कर दिया। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी पाकिस्तानी सेना को हार का सामना करना पड़ा।
कारगिल युद्ध की शुरुआत
भारत के साथ युद्ध में हर बार मिली हार के बावजूद भी पाकिस्तानी सेना को शांति नहीं मिल रही थी। इसीलिए पाकिस्तानी सेना ने 1999 में 2 बार पाकिस्तान सरकार के पास कारगिल पर हमला करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन दोनों बार राजनीतिक नेताओं ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। लेकिन तीसरी बार पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ इसके लिए राजी हो गए। कारगिल युद्ध में परवेज के बाद सबसे अहम रोल लेफ्टिनेंट कर्नल जावेद अब्बास ने निभाया था।
पाकिस्तान ने बड़े मकसद को अंजाम देने के तहत अफगानिस्तान में तालिबान प्रमुख मुल्ला रब्बानी से भारत के खिलाफ जिहाद के लिए 20 से 30 हजार युवा लड़कों को भेजने का अनुरोध किया था। जाहिर है, रब्बानी ने लगभग 50,000 लड़कों को भेजा था, जिससे पाकिस्तानी सेना के अधिकारी बहुत खुश हुए थे। 1965 के युद्ध से पहले पाकिस्तान की सेना कारगिल की चोटियों पर हुआ करती थी। यह क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। 1965 और 1971 के युद्धों के बाद भारतीय सेना का इन चोटियों पर नियंत्रण हो गया था, और अब मुशर्रफ इन चोटियों को वापस चाहते थे।
भारत के वीर जवानों ने लहराया जीत का परचम
3 मई से शुरु हुए हमले के बाद से पाकिस्तान ने कई प्रमुख चोटियों पर कब्जा कर लिया था। लेकिन भारतीय सेना ने जवाब देते हुए 13 जून 1999 को तोलोलिंग चोटी को पाकिस्तानी कब्जे से मुक्त कराया। जिससे बाद इस चोटी की बाकि युद्ध में बड़ी मदद मिली। जल्द ही 20 जून 1999 को पाइंट 5140 को भी प्राप्त कर लिया गया, जो तोलोलिंग मिशन को पूरा करता है। लंबी लड़ाई के बाद भारतीय सेना ने 4 जुलाई 1999 को टाइगर हिल्स को भी घुसपैठियों से मुक्त कराया था।
युद्ध के दौरान भारतीय सेना की 14 वीं रेजिमेंट ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को निशाना बनाने के लिए शक्तिशाली बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल किया और जल्द ही भारत ने LOC में हवाई हमले शुरू कर दिए। पाकिस्तान उस वक्त अपनी वायु सेना का उपयोग नहीं कर सकता था, क्योंकि पाकिस्तान ने दुनिया को बताया हुआ था, कि इस लड़ाई में उसका कोई हाथ नहीं है। ये लड़ाई मुजाहिदीन अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे। लंबी लड़ाई के बाद 26 जुलाई को खत्म हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के 527 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। वहीं पाकिस्तानी सेना के भी करीब 1200 से ज्यादा जवान इसमें मारे गए थे।
पाकिस्तान की अपने सैनिकों के प्रति शर्मनाक करतूत
कारगिल युद्ध के शुरुआत में ही पाकिस्तान ने पूरी दुनिया से झूठ बताया था कि कारगिल में लड़ रहे ये सिपाही पाकिस्तानी सैनिक नहीं बल्कि मुजाहिदीन है। यहाँ तक कि पाकिस्तानी आर्मी के 249 जवानों के शव ऐसे थे, जिनको पाकिस्तान ने क्लेम नहीं किया। लेकिन भारतीय सेना ने सैन्य सम्मान का परिचय देते हुए पूरे सम्मान के साथ उन पाकिस्तानी सैनिकों के शवों को दफनाया। अपने सैनिकों के प्रति पाकिस्तान की यह सबसे शर्मनाक करतूत थी। लेकिन जब विश्व के दबाव में पाकिस्तान ने अपनी सेना को वापस बुलाया, तब दुनिया के सामने आया कि पाकिस्तान मुजाहिदीनों को नियंत्रित कर सकता है। कारगिल युद्ध के खत्म होने के साथ पाकिस्तान मुजाहिदीन के नाम पर कश्मीर घाटी में आतंक फैला रहा है, ये सच भी सबके सामने आ गया।
पाकिस्तान-भारत युद्ध की शुरूआत 1947-48
देश के आजादी के वक्त भारत में 500 से ज्यादा रियासतें थी। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के मुताबिक रियासतों के शासकों पर निर्भर था कि वो भारत या पाकिस्तान किस देश में अपने रियासत का विलय करना चाहते है। विलय करने का फैसला शासकों के हाथ में था। देश के उन्हीं रियासत में से एक रियासत जम्मू कश्मीर भी था। भारत की स्वतंत्रता के समय इस रियासत के आखरी राजा और शासक महाराजा हरि सिंह थे। पाकिस्तान को उम्मीद था कि जम्मू-कश्मीर का विलय पाकिस्तान में होगा। लेकिन राजा हरि सिंह कि मर्जी भारत में विलय की थी। पाकिस्तान को इस बात का अंदाजा लग चुका था कि जम्मू कश्मीर उसके हाथ से निकल गया है।
नेहरु की एक गलती से और बदल गया भारत का डेमोग्राफी
इसी लिए 22 अक्टूबर 1947 के दिन पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर के बड़े भूभाग पर कबाइलियों के साथ मिलकर हमला कर दिया और कई महत्वपूर्ण क्षेत्र अपने कब्जे में ले लिया। लेकिन उसके बाद भारतीय सेना ने भी मुंह तोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तानी सेना को पीछे धकेल कर कई क्षेत्रों को खाली करवा दिया था। अब बारी थी पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर को खाली कराने की लेकिन तभी अंग्रेजों के साजिश के शिकार होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया। कहते हैं कि नेहरु अंतराष्ट्रीय शक्तियों के भ्रम और उनके समर्थन के जाल में फंस गए।
नेहरु की इस सबसे बड़ी गलती ने पाकिस्तान को मौका दिया और भारत का एक बड़ा भूभाग पाकिस्तान के ही कब्जे में रह गया। जिसे हमें पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर या POJK, पाकिस्तान अधिक्रांत लद्दाख क्षेत्र, यानि POTL कहते है। मीरपुर, भीम्बर, कोटली, बाग, मुजफ्फराबाद, POJK का हिस्सा है। गिलगित, बाल्तिस्तान आदि PoTL के हिस्से में आता है। अगर उस वक्त जम्मू कश्मीर के मुद्दे को लेकर नेहरु UN में नहीं जाते और सेना को आगे बढ़ने का आदेश दे दिए होते तो आज यह सारा हिस्सा हमारा हिस्सा होता। लेकिन नेहरु की एक गलती ने भारत को सबसे बड़ा घाव दिया।