वर्ष 1996 से लेकर 2001 के बीच के इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो कश्मीर संभाग की ही तरह आतंक का दंश झेल चुके जम्मू संभाग के लोगों का दर्द भी सामने आ जाएगा। 90 के दशक का दौर जम्मू कश्मीर के लिए एक काले धब्बे से कम नहीं था। कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार करने के बाद आतंक की हवा पीर पंजाल की पहाड़ियां पार कर जम्मू संभाग में आ पहुंचीं थीं।
वर्ष 1990 के बाद धर्म के नाम पर खूनी खेल खेला गया। 90 के दशक में डोडा जिला (तब इसमें रामबन, बनिहाल और किश्तवाड़ भी शामिल थे) में आतंकवाद अपने चरम पर पहुंच गया था। डोडा में स्वामी राज काटल, सतीश भंडारी, अनिल परिहार, चंद्रकात सहित कई राष्ट्रवादी लोगों की इस्लामिक जिहादियों द्वारा हत्याएं की गईं।पाकिस्तान के इशारे पर आतंकियों ने चुन-चुनकर हिंदुओं को अपना निशाना बनाया और उनकी हत्याएं कर दी। ऐसा ही एक नरसंहार डोडा ज़िले के अंतर्गत आने वाले गाँव बरशल्ला में हुआ। जब इस्लामिक आतंकियों ने यहाँ एक साथ 16 हिंदुओं का नरसंहार किया।
5 जनवरी, 1996 : डोडा के बरशल्ला में 16 हिंदुओं की हत्या
कहानी है 5 जनवरी 1996 की जब आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार के आतंकवादियों ने डोडा जिले के बरशल्ला में एक साथ 16 हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी थी। इन आतंकियों ने सबसे पहले उन सभी 16 हिंदुओं को मुसलमानों से अलग कर एक लाइन में खड़ा किया। फिर एक साथ उन सभी हिंदुओं की हत्या कर दी। आतंकियों ने जब इस वारदात को अंजाम दिया तो उस वक्त सभी लोग एक घर में बैठ कर टेलीविजन देख रहे थे। ये एक बेहद ही ख़ौफ़नाक मंजर था और जान गँवाने वाले सभी लोगों का दोष सिर्फ़ इतना था कि वो सभी हिंदू थे। दिल दहलाने वाले इस नरसंहार में मारे गए 16 लोगों में से 10 लोग एक ही परिवार के थे और उनका एकमात्र दोष यह था कि वे सभी हिंदू थे।
नरसंहार को अंजाम देने के बाद इलाके की सुदूरता का फायदा उठाते हुए आतंकवादी आसानी से मौके से फरार हो गए। जम्मू संभाग के पीर पंजाल क्षेत्र में हिंदुओं की यह हत्याएं 1993 में ही शुरू हो गईं थी। इस बेल्ट में इस तरह का पहला नरसंहार 1993 में हुआ था, जब आतंकवादियों द्वारा किश्तवाड़ जिले के सरथल इलाके में मुसलमानों से अलग होने के बाद 17 हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी। विडंबना यह है कि इस नरसंहार के 26 से अधिक वर्षों के बाद भी, केवल हिंदू होने के कारण इस्लामिक जिहादियों द्वारा आज भी हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है। किसी ने सच ही कहा है, आप मुर्दों के साथ नहीं मर सकते, लेकिन उनकी यादों के साथ जीना मौत से भी ज्यादा क्रूर है।
बरशल्ला नरसंहार में मारे गए बलिदानी
शिव (17 वर्ष)
अजय (18 वर्ष)
राजिंदर (19 वर्ष)
सुशील (20 वर्ष)
भूषण (22 वर्ष)
शशि (22 वर्ष)
भूषण (25 वर्ष)
स्वामी (28 वर्ष)
शशि राज (28 वर्ष)
जगदीश (30 वर्ष)
सोम (40 वर्ष)
कृष्ण (54 वर्ष)
भरत (56 वर्ष)
मनोहर (58 वर्ष)
हंस राज (65 वर्ष)
5 January 1996 Barshala Massacre
दहशत और वहशत के उस दौर को आतंकवाद का सबसे खतरनाक व भयंकर दौर माना जाता है। साल 1996 में ही एक और नरसंहार हुआ जब कमलाडी गांव में 9 लोगों की निर्ममता से हत्या कर दी गई। आतंकवादी यहीं नहीं रुके बेलगाम इन जिहादियों ने 25 जुलाई 1996 को डोडा जिले के ही सरोधार गांव में 13 लोगों को बर्बरतापूर्वक मार दिया था। इसी तरह आतंकवादियों ने कुदधार गांव में 14 और 15 अक्तूबर 1997 की रात गांव सुरक्षा समिति के 6 लोगों की हत्या कर दी।
आतंक के उस दौर में आतंकवादियों ने जो कहर बरपाया उसमें छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक मारे गए। महिलाओं की इज्जत लुटी गई, नौजवानों पर ज़ुल्म ढाए गए। उस दौर में अनगिनत नरसंहार हुए जिन्हें याद कर आज भी कलेजा सिहर उठता है। आज इस नरसंहार को 27 वर्ष हो गए मगर आतंक ने जो घाव दिया वो आज भी हरा है। नरसंहार में मारे गए उन सभी बलिदानियों को हमारा नमन।
प्रमुख घटनाएँ
5 जनवरी, 1996 : डोडा के बरशाला में 16 लोगों की हत्या
2 अगस्त, 1998 : भद्रवाह-चंबा में 35 लोगों की हत्या
28 जुलाई, 1998 : डोडा के शानाए ठाकरे में विवाह समारोह में 27 लोगों की हत्या
21 अप्रैल, 1998 : प्राणकोट और डाकीकोट ऊधमपुर में 26 लोगों की हत्या
19 अप्रैल 1998 : ऊधमपुर के थब गांव में 13 लोगों की हत्या
10 फरवरी 2001 : राजौरी के मोरहा सुलाही में 10 लोगों की हत्या
13, जुलाई 2001 : जम्मू संभाग के कासिम नगर में 12 महिलाओं सहित 25 की हत्या
2003 में सुरनकोट में सेशन जज सहित 4 लोगों की हत्या