6 फरवरी जयंती विशेष ; श्रीनगर को पाकिस्तानी हमलावरों से बचाने वाले स्वतंत्र भारत के पहले महावीर चक्र विजेता लेफ्ट. कर्नल दीवान रंजीत राय की शौर्यगाथा

    06-फ़रवरी-2025
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 Lt. Col. Dewan Ranjit Rai
 
India-Pakistani War 1947-48 : लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय का जन्म 6 फरवरी 1913 को वर्तमान में पाकिस्तान स्थित गुजरांवाला में हुआ था। दीवान रंजीत ने अपनी स्कूली शिक्षा शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पूरी करने के उपरान्त प्रतिष्ठित भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में शामिल हुए। 1 फरवरी 1935 को महज 22 साल की उम्र में कमीशन मिला और वे एक साल के लिए ब्रिटिश आर्मी रेजिमेंट से जुड़ गए। एक वर्ष बाद 24 फरवरी 1936 को रंजीत राय 11 सिख रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में तैनात किया गए। 1944 तक, उन्हें कार्यवाहक मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया था। बाद में वर्ष 1947 में, उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका में सैन्य अताशे के रूप में पोस्टिंग के लिए चुना गया था, लेकिन अक्टूबर 1947 में जैसे ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर हमला किया तो उन्हें दुश्मनों से जम्मू कश्मीर को मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
 
भारत-पाकिस्तान युद्ध: अक्टूबर 1947
 
 
कबाइलियों की भेष में पाकिस्तानी सैनिक 22 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के मुज्जफ्फराबाद, भीम्बर, कोटली (जो अब PoJK का इलाका है) जैसे शहरों में कत्लेआम और लूटपाट मचाने के बाद अब दोमेल होते हुए 23-24 अक्टूबर तक उरी और बारामुला पहुँच चुके थे। उरी, बारामुला में हैवानियत की सारी हदे पार करने के बाद पाकिस्तानी हमलावरों का अब अगला निशाना श्रीनगर एयर bबेस था। इधर महाराजा हरि सिंह के सेना प्रमुख रहे ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने अपने कुल 110 सैनिकों की यूनिट के साथ उरी में दुश्मनों को रोक रखा था। स्थिति को बिगड़ता देख महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी लेकिन भारत के साथ जम्मू कश्मीर का अभी अधिमिलन हुआ नहीं था लिहाजा भारतीय सेना युद्ध में सीधे तौर पर शामिल नहीं हो सकती थी।

 Lt. Col. Dewan Ranjit Rai  
इधर उरी और बारामुला के बाद 5000 से भी अधिक की संख्या में पाकिस्तानी हमलावर अब श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे। इसी बीच 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर किया और सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया। अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर करते ही पहले से तैयार बैठी भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट की टुकड़ी को श्रीनगर भेजने का आदेश दिया गया।
 
 

 Lt. Col. Dewan Ranjit Rai  
डकोटा विमान पहुंचा श्रीनगर
 
 
अक्टूबर 1947 के दौरान, लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रणजीत राय गुड़गांव में सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन की कमान संभाल रहे थे। वे बंटवारे के दौरान जो शरणार्थी भारत आ रहे थे उनकी व्यवस्था करने में व्यस्त थे। 27 अक्टूबर 1947 को, लेफ्टिनेंट कर्नल रणजीत राय को उनकी C और D कंपनियों के साथ श्रीनगर रवाना होने और श्रीनगर और उससे जुड़े क्षेत्रों को पाकिस्तानी हमलावरों से बचाने का जिम्मा सौंपा गया। अपने मिशन को पूरा करने के लक्ष्य के साथ कर्नल राय दिल्ली से सुबह करीब 5 बजे भारतीय वायुसेना के डकोटा विमान में उड़ान भरी। लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय और उनकी दो कंपनियां 27 अक्टूबर को सुबह 8:30 बजे श्रीनगर में उतरीं और स्थिति का प्रारंभिक आकलन करने के बाद कार्रवाई में जुट गईं।
 
लेफ्टिनेंट कर्नल रणजीत राय ने कैप्टन कमलजीत सिंह के नेतृत्व में C कंपनी को बारामुला भेजा। इसके अलावा मेजर हरवंत सिंह के नेतृत्व में D कंपनी को आबादी के बीच व्यवस्था और विश्वास बहाल करने के लिए फ्लैग मार्च करने के लिए श्रीनगर भेजा गया था। कर्नल राय ने खुद श्रीनगर हवाई क्षेत्र पर रुकने और अपनी बाकी 2 कंपनियों के आने का इंतजार करने और उन्हें बारामुला ले जाने का फैसला किया। बारामुला के पास पहुंचने पर कैप्टन कमलजीत को एहसास हुआ कि बारामुला पूरी तरह से पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के हाथ लग चुका है। लिहाजा उन्होंने पट्टन के पास बारामूला-श्रीनगर राजमार्ग पर रुककर बचाव करने का फैसला किया। यहाँ से श्रीनगर की दुरी महज 21 किलोमीटर है। श्रीनगर में फ्लैग मार्च करने के बाद मेजर हरवंत सिंह ने एक प्लाटून बारामुला से कुछ मील की दूरी पर सोपोर में झेलम पर पुल की सुरक्षा के लिए और दूसरे प्लाटून को हवाई क्षेत्र की रक्षा के लिए छोड़ दिया। वह एक प्लाटून के साथ 28 अक्टूबर को सुबह 4.30 बजे मील 32 पर C कंपनी में शामिल हो गए।
 
 
 Lt. Col. Dewan Ranjit Rai
 
 
कर्नल राय की दोनों टुकड़ियों में लगभग 140 से 150 सैनिक थे जबकि पाकिस्तानी हमलावरों की संख्या हजारों में। बावजूद इसके बहादुर सैनिक दुश्मनों से लोहा लेने के लिए पूरी तरह से तैयार थे। लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय का अपने सैनिकों के साथ कोई संचार नहीं था क्योंकि संचार उपकरण ले जाने वाले विमान में खराबी आ गई थी, जिसके कारण उसे रास्ते में ही जम्मू में लैंड करना पड़ा था। जब 28 अक्टूबर की सुबह उनकी 2 अन्य कंपनियाँ श्रीनगर नहीं पहुँचीं, तो उन्होंने आगे बढ़ने और माइल 32 पर अपने सैनिकों के साथ शामिल होने का फैसला किया और सहायक को निर्देश दिया कि जैसे ही शेष दो कंपनियाँ उतरें, उन्हें बिना किसी देरी के आगे भेज दिया जाए।
 
 
पाकिस्तानी हमलावरों से श्रीनगर की रक्षा
 
 
27 अक्टूबर को दुश्मन ने भारी मशीनगनों और 3 इंच मोर्टारों के साथ मील 32 पर हमला किया। पाकिस्तानी हमलावरों के इस हमले को कर्नल राय की टुकड़ी ने सफलतापूर्वक रद्द कर दिया। साथ ही कम संख्या में होने के बावजूद कर्नल राय की टुकड़ी ने दुश्मनों पर जमकर गोलीबारी शुरू कर दी। जब दुश्मन को एहसास हुआ कि वह लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय और उनकी टुकड़ी को हटा नहीं सकती तो पाकिस्तानी सैनिक खुद पीछे हटने और दूसरी तरफ से हमला करने का निर्णय लिया।
 
 
इधर जब शेष 2 कंपनियां समय पर श्रीनगर नहीं पहुंचीं और माइल 32 पर स्थिति अस्थिर हो गई, तो लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय ने माइल 32 से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया। हालांकि तब तक दुश्मन द्वारा वापसी का मार्ग लगभग काट दिया गया था। अपने सैनिकों को दुश्मन के घेरे से निकालने के इस अत्यंत कठिन कार्य के दौरान लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय दुश्मन की गोली के शिकार हो गए और वीरगति को प्राप्त हो गए। लेकिन वीरगति को प्राप्त होने से पहले कर्नल राय और उनकी टुकड़ी ने पाकिस्तानी हमलावरों से श्रीनगर को पूरी तरह से बचाए रखा और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
 

 Lt. Col. Dewan Ranjit Rai  
स्वतंत्र भारत के पहले महावीर चक्र विजेता
 
 
लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय ने जिस तरह से युद्ध के दौरान खुद की सुरक्षा की परवाह किए बिना आगे बढ़कर अपनी सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व किया, और एक प्रेरणादायक कमांडिंग ऑफिसर के रूप में दुश्मनों से श्रीनगर हवाई बेस की रक्षा की। उनके उत्कृष्ट नेतृत्व, उत्तम युद्ध कौशल और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें देश का दुसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, "महावीर चक्र" से सम्मानित किया गया। वह महावीर चक्र (मरणोपरांत) प्राप्त करने वाले स्वतंत्र भारत के पहले अधिकारी बने।
 

 Lt. Col. Dewan Ranjit Rai  
 
चूंकि इस पूरे सैन्य अभियान में सिर्फ पैदल सेना का ही योगदान था, इसलिये इस दिन को इन्फैंट्री डे ( पैदल सेना दिवस) के रूप में मनाया जाता है। देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानी महावीर चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय की पुण्यतिथि पर नमन।
 
 
Written By : Ujjawal Mishra