पुण्यतिथि विशेष : स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रवादी आंदोलन 'प्रजा परिषद्' के प्रणेता पंडित प्रेमनाथ डोगरा

    20-मार्च-2025
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Premnath dogra
 
जन्म 24 अक्टूबर 1884
 
निधन 20 मार्च 1972
 
प्रजा परिषद के अध्यक्ष और भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष रहे पं. प्रेमनाथ डोगरा का जन्म 24 अक्टूबर 1884 को जम्मू संभाग से करीब 20 किमी दूर जम्मू-पठानकोट मार्ग से उत्तर में स्थित समयालपुर गाँव में हुआ था। उनके पिताजी पं. अनंत राय महाराजा रणवीर सिंह के समय में रणवीर गवर्नमेंट प्रेस के और फिर लाहौर में कश्मीर प्रापर्टी के अधीक्षक रहे। उनका महत्व इसी से समझा जा सकता है कि लाहौर में वे राजा ध्यान सिंह की हवेली में रहते थे और इसीलिए प्रेमनाथ जी की शिक्षा लाहौर में ही हुई। पढ़ाई में अच्छा होने के साथ ही वह एक बेहतरीन एथलीट व फुटबॉल खिलाड़ी भी थे। शिक्षा पूरी करने के उपरांत वे राज्य सेवा में तहसीलदार के पद पर नियुक्त हुए और फिर कुछ वर्षों के कार्यकाल के बाद डिप्टी कमिश्नर बन गए।
 
प्रजा परिषद् आंदोलन
 
 
जम्मू कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 के खात्में को लेकर पिछले 75 वर्षों में दर्जनों राष्ट्रवादी नेताओं ने कुर्बानी दी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका प्रजा परिषद् आंदोलन और इस आंदोलन के नेता पंडित प्रेमनाथ डोगरा की रही।पंडित डोगरा के राजनीतिक कद का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय जनसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आकस्मिक निधन के बाद उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित किया गया और वह इस पद पर लगभग एक वर्ष तक रहे। 1947 से 1963 तक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 लगाने तथा नेहरू व शेख अब्दुल्ला की कश्मीर नीतियों को लेकर जो भी आंदोलन चला उसकी कमान प्रजा परिषद पार्टी के हाथ में थी।
 
 
इस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में प्रेमनाथ डोगरा भी थे। नवंबर 1947 में जिस समय प्रजा परिषद पार्टी की स्थापना हुई उस समय वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक थे। इसी कारण से उन्होंने इस नवगठित संगठन का अध्यक्ष पद लेने से इंकार कर दिया। हरि वजीर को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया, हंसराज पंगोत्रा को महासचिव व ठाकुर सहदेव सिंह को सचिव बनाया गया। पर प्रजा परिषद पार्टी की नींव रख उन्होंने शेख अब्दुल्ला और नेहरू की कश्मीर नीतियों को चुनौती दी और बाद में 1950 के दशक में इस पार्टी की कमान भी संभाली। पंडित डोगरा कई बार इस आंदोलन के कारण जेल भी गए। प्रजा परिषद् का आन्दोलन स्वतंत्र भारत का एक अद्भुत आन्दोलन था जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों की सहभागिता थी। परिषद् भारतीय संविधान को जम्मू कश्मीर में ठीक उसी तरह लागू करवाना चाहती थी जैसे देश के अन्य राज्यों में लागू है।
 
 
Premnath dogra
 
  
साल 1952 में शेख अब्दुल्ला का राज्य की जनता से हर मोड़ पर टकराव हुआ। आश्चर्य की बात यह है कि राज्य के लोगों को स्वतंत्र भारत में भी अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ना ही नहीं पड़ रहा था बल्कि बलिदान देना पड़ रहा था। दिल्ली से लेकर श्रीनगर में राज्य सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहे थे। जिसके सूत्रधार 68 साल के लोकप्रिय नेता और प्रजा परिषद के अध्यक्ष प्रेमनाथ डोगरा थे। प्रेमनाथ डोगरा एक सुलझे हुए व्यक्ति थे। उनका मकसद शेख अब्दुल्ला की अलगाववादी और दमनकारी नीति से जम्मू कश्मीर के लोगों के हितों की रक्षा करना था। भारत के संविधान में निहित नागरिक और मौलिक अधिकारों को जम्मू-कश्मीर में लागू करवाना था। इधर नेहरु और शेख अब्दुल्ला के बीच दोस्ती इतनी गहरी थी कि नेहरु शेख अब्दुल्ला के बारे में कोई बात सुनने को राजी नहीं थे। शेख अब्दुल्ला की नीतियों और उसके करतूतों से अवगत कराने के लिए प्रेम नाथ डोगरा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से कई बार मिलने का अनुरोध किया और अपनी मांगों पर विचार करने का आग्रह भी किया। किन्तु दुर्भाग्यवश प्रधानमंत्री नेहरु को उनकी यह मांग सांप्रदायिक नज़र आती थी।
 
 
शेख अब्दुल्ला की दमनकारी नीति
 
 
शेख ने हिन्दुओं विशेषकर प्रजा परिषद् से जुड़े लोगों को नौकरी से निकाल दिया था और उनकी पेंशन बंद कर दी गयी। हिन्दू अल्पसंख्यकों को डराया जाने लगा। उन्हें धमकियाँ दी गईं कि जल्दी ही वे अपने घर खाली कर दूसरे राज्यों में चले जाए। राज्य सरकार ने सांस्कृतिक और भाषाई विभाजन के सुनियोजित प्रयास किए। भारत के साथ अधिमिलन से पहले वहां हिंदी और उर्दू को समान महत्व मिला हुआ था। लेकिन शेख ने उर्दू को राजकीय भाषा का दर्जा दे दिया, जबकि हिंदी की उपेक्षा की जाने लगी। स्कूलों में बच्चों को भारतीय राष्ट्रवाद के जगह कश्मीरी राष्ट्रवाद पढ़ाया जाने लगा। एक समिति बनाई, जिसे पाठ्यक्रम को तय करने की जिम्मेदारी दी गई। लेकिन इसमें एक भी हिन्दू को शामिल नहीं किया गया।
 
 
14 नवंबर 1952 को पंडित प्रेम नाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद् ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए सत्याग्रह की शुरूआत की और इसी दिन जम्मू धर्मक्षेत्र से कुरूक्षेत्र में परिवर्तित हो गया। प्रजा परिषद् लोकतंत्र के लिए लड़ रही थी, शेख अब्दुल्ला जम्मू और लद्दाख संभाग के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को देने को तैयार नहीं थे। 24 नवंबर को जम्मू में पं. प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद् ने एक विशाल जुलूस निकाला। जिसमें उन्होंने कहा कि ‘प्रजा परिषद् की मांग राज्य में पूर्ण एकीकरण की है जो इसके साथ है हम उसके साथ है। जो इसके खिलाफ है, हम भी उसके खिलाफ है।’ धीरे धीरे यह आन्दोलन एक जनांदोलन में बदल गया। हालाँकि इस बीच शेख अब्दुल्ला ने आन्दोलन को रोकने के लिए अनेक प्रयास किए। प्रेम नाथ डोगरा समेत संगठन के नेताओं को जेल में भी डाला किन्तु शेख अब्दुल्ला की दमनकारी नीति के आगे हर बार जीत राष्ट्रवाद की हुई। अंततः डा. श्यामाप्रसाद मुकर्जी के बलिदान, पंडित प्रेमनाथ डोगरा और प्रजा परिषद् आन्दोलन में शामिल लाखों सत्याग्रहियों के सामने सरकार झुकने को मजबूर हुई और शेख अब्दुल्ला के पतन के साथ जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के बड़े भाग को लागू करना पड़ा।
 
 
शेर-ए-डुग्गर के नाम से जाने जाते हैं प्रेम नाथ डोगरा
 
 
प्रेमनाथ डोगरा जम्मू वासियों के लिए आज भी श्रद्धेय हैं। जम्मू के लोग मानते हैं कि प्रेमनाथ जी ने ही जम्मू को संरक्षण प्रदान किया और उन्हें शेर-ए-डुग्गर के नाम से याद करते हैं। कुछ बड़े इतिहासकारों का कहना है कि अगर महाराजा गुलाब सिंह ने इस राज्य का निर्माण किया था तो, प्रेमनाथ डोगरा ने देश की स्वतंत्रता के पश्चात् इसे भारत का अभिन्न अंग बनाए रखने तथा जम्मू की पहचान उसे दिलाने में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। जिसके लिए राष्ट्रवादी शक्तियां अभी भी प्रयत्नशील हैं। पं. प्रेमनाथ डोगरा के जीवन के सम्बंध में कुछ ऐसे पक्ष भी हैं जिनके बहुत ही कम उल्लेख हुए हैं।
 
वह प्रशासन में उच्च पदों पर रहे। महाराजा के काल में उनकी प्रजा सभा के सदस्य चुने गए। 1955-1956 में उन्हें भारतीय जन संघ का अध्यक्ष चुना गया। और फिर 1957 से लेकर 1972 तक तीन बार राज्य विधानसभा के सदस्य भी रहे। किन्तु उन्होंने कोई सम्पत्ति नहीं जुटाई और अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्हें आर्थिक कठिनाइयां भी देखनी पड़ीं। उन्होंने अपने निवास स्थान का एक बड़ा भाग अपने राजनीतिक संगठन को अर्पित कर दिया। यहां आज भी प्रदेश भाजपा का मुख्य कार्यालय बना है। पंडित प्रेमनाथ डोगरा आज हमारे बीच भले ही ना हों, परंतु राष्ट्रहित के लिए सब कुछ न्योछावर करने की जो परंपरा वो छोड़ गए, उसे डोगरों ने आज तक नहीं छोड़ा। अंततः 20 मार्च, 1972 को पंडित प्रेमनाथ डोगरा का देहांत हो गया।