जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की नींव अब दरकने लगी है। मोदी सरकार की सख्त नीतियों के कारण वह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस, जो कभी पाकिस्तान का मोहरा बनकर कश्मीर को भारत से अलग करने का सपना देखती थी, अब अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। हाल ही में हुर्रियत से जुड़े 4 प्रमुख घटक दलों – जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (JKPM), जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल मूवमेंट (JKKPM), जम्मू कश्मीर तहरीकी इस्तेकलाल (J&K Tahreeqi Isteqlal) और जम्मू कश्मीर तहरीक-ए-इस्तिकामत (J&K Tahreek-I-Istiqamat) ने अलगाववाद से अपने सभी संबंध तोड़ने का ऐलान किया है। इन संगठनों का राष्ट्र की मुख्यधारा में लौटना, न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे भारत के लिए एक बड़ी जीत है।
अलगाववाद से तौबा: ‘हम भारत के वफादार नागरिक हैं’
JKPM के अध्यक्ष शाहिद सलीम और JKDPM के नेता वकील शफी रेशी ने भारत के संविधान के प्रति अपनी निष्ठा जताते हुए हुर्रियत की अलगाववादी विचारधारा से खुद को अलग कर लिया है। शाहिद सलीम ने एक बयान में कहा,
"मैं भारत का वफादार नागरिक हूं। मेरा संगठन और मैं, दोनों भारत के संविधान के प्रति पूरी निष्ठा रखते हैं। हमारा किसी ऐसे समूह या विचारधारा से कोई संबंध नहीं है, जो भारत के हितों के खिलाफ हो।"
सलीम का यह बयान कश्मीर में बदलते हालात का प्रतीक है। वह लोग, जो कभी भारत विरोधी विचारधारा का हिस्सा थे, अब तिरंगे के साए में खड़े होकर देशभक्ति की शपथ ले रहे हैं।
गृह मंत्री अमित शाह ने सराहा निर्णय
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन संगठनों के फैसले को ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि यह कदम भारत की एकता और अखंडता को मजबूत करेगा। शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा,
"हुर्रियत से जुड़े दो संगठनों का अलगाववाद से सभी संबंध तोड़ना भारत की एकता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मैं इस निर्णय का स्वागत करता हूं और अन्य समूहों से भी अपील करता हूं कि वे आगे आएं और अलगाववाद को हमेशा के लिए खत्म कर दें।"
शाह ने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "विकसित, शांतिपूर्ण और एकीकृत भारत" के सपने की एक बड़ी जीत बताया।
अलगाववाद का पतन: कश्मीर में बदल रही फिजा
जम्मू-कश्मीर में अब अलगाववाद का आकर्षण समाप्त हो रहा है। जिन संगठनों ने कभी पाकिस्तान समर्थित एजेंडे का अनुसरण किया था, वे अब मुख्यधारा में लौटने को तैयार हैं। इसका असर सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी दिख रहा है। स्थानीय लोग अब शांति, विकास और स्थायित्व की राह पर बढ़ना चाहते हैं। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस, जो कभी आतंकवाद और अलगाववाद की आग को हवा देती थी, अब हाशिये पर पहुंच चुकी है। इसके अधिकांश घटक दल या तो प्रतिबंधित हो चुके हैं या फिर अपनी विचारधारा त्याग चुके हैं।
हुर्रियत का पतन: पाकिस्तान का ‘मोहरा’ खत्म होने की कगार पर
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना पाकिस्तान की शह पर कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए हुई थी। दशकों तक इस संगठन ने कश्मीरी युवाओं को भटकाने का काम किया, पत्थरबाजी, हिंसा और आतंक को बढ़ावा दिया। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।केंद्र सरकार की सख्त नीतियों, आतंक पर कड़ी कार्रवाई और अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अलगाववादियों की जमीन खिसक गई। नतीजतन, हुर्रियत के घटक दल अब आत्ममंथन कर रहे हैं और भारत की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं।
कश्मीर का भविष्य: शांति और विकास की राह पर
जम्मू-कश्मीर में अब बदलाव की बयार बह रही है। एक समय जो क्षेत्र आतंकवाद और हिंसा का गढ़ था, वहां अब शांति और विकास की किरणें दिखने लगी हैं।
• नए उद्योगों की स्थापना हो रही है
• पर्यटन में तेजी आ रही है
• स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल रहा है
• सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे लोगों तक पहुंच रहा है
शाहिद सलीम और शफी रेशी जैसे नेताओं का अलगाववाद को त्यागकर भारत के संविधान में आस्था जताना इस बदलाव का प्रतीक है।
अलगाववाद के ताबूत में आखिरी कील?
हुर्रियत से जुड़े संगठनों का अलगाववाद छोड़ना, कश्मीर में एक नए युग की शुरुआत का संकेत है। यह न केवल कश्मीर में शांति और स्थिरता को मजबूत करेगा, बल्कि पाकिस्तान के मंसूबों पर भी पानी फेर देगा। अमित शाह के शब्दों में –"यह भारत की एकता और अखंडता की जीत है।" अब कश्मीर के लोग हिंसा और अलगाव के अंधकार से बाहर निकलकर एक नए, उज्ज्वल भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं – भारत के साथ, संविधान के साथ, विकास के साथ।