13 अप्रैल 1984 : ऑपरेशन मेघदूत की कहानी, जब पाकिस्तान को मात देकर भारतीय सेना के जवानों ने सियाचिन पर लहराया था तिरंगा

    13-अप्रैल-2025
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13 april history operation meghdoot
 
13 अप्रैल 1984 Operation Meghdoot - भारतीय इतिहास का वो दिन जब दुनिया के सबसे ऊँचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर को 40 वर्ष पहले भारतीय सेना ने तमाम विपरीत परिस्थियों के बावजूद अपनी सूझ बुझ और अदम्य साहस का परिचय देते हुए जीत दर्ज की थी। यह वह इलाका है, जब भारतीय सेना ने 1984 में आज के ही दिन 'आपरेशन मेघदूत' चलाकर पाकिस्तान के मंसूबों को बर्फ में दफन कर दिया था।
 
 
सियाचिन ग्लेशियर
 
 
सियाचिन ग्लेशियर को पूरी दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है। सियाचिन ग्लेशियर; पूर्वी कराकोरम / हिमालय, में स्थित है। इसकी स्थिति भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास लगभग देशान्तर: 76.9°पूर्व, अक्षांश: 35.5° उत्तर पर स्थित है। सियाचिन ग्लेशियर का क्षेत्रफल लगभग 78 किमी है। सियाचिन, काराकोरम के 5 बड़े ग्लेशियरों में सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। समुद्र तल से औसतन 17 हजार 770 फीट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा "अक्साई चीन" इस इलाके में है। सियाचिन में भारत के 10 हजार सैनिक तैनात हैं और इनके रखरखाव पर प्रतिदिन तक़रीबन 5 करोड़ रुपये का खर्च आता है।
 
 
पाकिस्तान का सियाचिन पर दावा
 
 
देश के विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान की बुरी नजर हमेशा से भारत पर रही। पाकिस्तान जम्मू कश्मीर की ही तरह लद्दाख में विश्व के सबसे ऊँचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर को धोखे से कब्जा करना चाहता था। इसी कड़ी में 1982 में जब लेफ्टिनेंट जनरल मनोहर लाल छिब्बर नाॅदर्न कमांड के जनरल आफिसर कमांडिंग थे तो पाकिस्तान की ओर से एक प्रोटेस्ट नोट आया। इस पर भारत ने आपत्ति जताई लेकिन पाकिस्तान सियाचिन पर अपना दावा छोड़ने को राजी नहीं था।

 
Operation meghdoot
 
 
पाकिस्तानी कमांडर का प्रेस नोट
 
 
21 अगस्त 1983 को पाकिस्तान के नाॅदर्न सेक्टर कमांडर ने इंडिया के कमांडर को एक नोट भेजा इसमें सियाचिन पर उसने दावा करते हुए उधर किसी प्रकार की पेट्रोलिंग या कैंप नहीं रखने की बात कही। साथ ही यह कहा गया कि एलओसी पर शांति के लिए भारत को सहयोग करना चाहिए। इस पर भारत की तरफ से आपत्ति जताते हुए सियाचिन पर किसी प्रकार की पाकिस्तानी गतिविधियों पर लगाम लगाने को कहा गया। लेकिन गुप्त सूचना मिली कि पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जा की रणनीति बना रहा है। इसके लिए पाकिस्तान ने विशेष सेना की टुकड़ी तैयार करनी शुरु कर दी थी।
 
 
ऑपरेशन मेघदूत को मंजूरी
 
 
पाकिस्तान की इस घटिया हरकत को देखते हुए भारत ने उसे सबक सिखाने की ठानी। भारतीय सेना को दुश्मन को सबक सीखाने के लिए सियाचिन पर हुकूमत करने के लिए तमाम इक्वीपमेंट चाहिए था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक बात पहुंचाई गई। उन्होंने लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून को इक्वीपमेंट के लिए यूरोप भेजा। जनरल हून जिस सप्लायर से मिले उसने पाकिस्तान से पहले ही 150 इक्वीपमेंट का आर्डर ले रखा था। फिर वह दूसरे सप्लायर से मिले उसको आर्डर दिया।
 
Operation meghdoot lt gen premnath hoon 
                                                                                                                                                        
लेफ्टिनेंट जनरल प्रेमनाथ हून
 
 
हालांकि, पाकिस्तान की तैयारियां देख, सेना को यह लग गया कि आर्डर का इंतजार करने से देरी हो जाएगी। सेना में सियाचिन ग्लेशियर के लिए कर्नल Narendra Kumar के नेतृत्व में प्रशिक्षण चल रहा था। लद्दाख व कुमाउं रेजीमेंट के जवानों को इस अभियान के लिए तैयार किया जा रहा था। ऑपरेशन मेघदूत’ एक कोड नेम था। लेफ्टिनेंट जनरल प्रेमनाथ हून उस वक्त श्रीनगर के 15 कॉर्प्स के कमांडर हुआ करते थे। उन्होंने ‘ऑपरेशन मेघदूत’ में काफी अहम भूमिका निभाई थी।
 
 
प्रशिक्षण पा रहे जवानों से पूछा गया कि क्या वह बिना सही कपड़ों व इक्वीपमेंट के इस अभियान में जा सकते हैं। देशभक्ति के जज्बे से भरे जवानों ने एकस्वर में हामी भरी। 12 अप्रैल 1984 को 1 शाम 5 बजे MI-17 हेलिकॉप्टर से ले.जनरल प्रेम नाथ हून इक्वीपमेंट भी लेकर पहुंच गए। अगले दिन बैशाखी थी और पाकिस्तान को इस दिन इंडिया के ऑपरेशन की कोई उम्मीद नहीं थी। 13 अप्रैल, 1984 की सुबह चीता हेलिकॉप्टरों ने जवानों को ऊंचाई वाले इलाकों पर पहुंचाना शुरू कर दिया। शाम को सामान पहुंचते ही आपरेशन को हरी झंडी मिल गई। जिसके बाद 4 टीमों को सियाचिन को कब्जे में लेने के लिए तैयार किया गया।
 
13 april history operation meghdoot
 
 
सियाचिन पर फहराया भारतीय तिरंगा
 
 
13 अप्रैल 1984 की अलसुबह हेलीकाॅप्टर्स से जवानों को पहुंचाया गया। 30 जवानों ने कैप्टन संयज कुलकर्णी के नेतृत्व में बिलाफोंड ला को आसानी से कब्जे में ले लिया। उसके बाद काफी बर्फबारी शुरू हो गई। लेकिन अगले दो दिन बाद सिया ला भारत के कब्जे में था।
 
 
इसके बाद पाकिस्तान ने जून के महीना में ऑपरेशन अबाबील को चलाया। गोलियों और मोर्टार को दाग कर भारतीय जवानों को हटाना चाहा लेकिन यहां भी एक बार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। अगस्त महीने में पाकिस्तानी सेना को पीछे खदेड़ते हुए भारतीय सेना ने 'ग्योंग ला' पर भी तिरंगा फहरा दिया। इस युद्ध के बाद से ही पूरा सियाचिन भारत के कब्जे में सुरक्षित हो गया।
 
 
मुस्तैदी के साथ डटी है भारतीय सेना
 
 
भारतीय जवानों ने दुश्मनों के ऐसे छक्के छुड़ाए कि वह आज तब इस बर्फीले रेगिस्तान की ओर देख तक न सके। तब से ही इस इलाके में भारतीय सेना मुस्तैदी के साथ डटी है। देश-दुनिया इसे ‘आपरेशन मेघदूत’ के नाम से जानती है और भारतीय सेना का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन सबसे कठिन और सबसे ऊँचाई वाले क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर किया गया।