प्राणकोट-डाकीकोट नरसंहार: 17 अप्रैल 1998 – इस्लामी आतंक का वो काला दिन जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया

17 Apr 2025 15:38:44
 
Prankote Massacre 17 april
 
“जब मासूम बच्चों को उनके मां-बाप के सामने जिंदा जलाया गया, जब निर्दोषों की गर्दनें तलवार से काट दी गईं, तब इंसानियत चीख पड़ी थी — ये कहानी है जम्मू-कश्मीर के प्राणकोट-डाकीकोट नरसंहार की, जहां इस्लामी आतंक ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं।”
 
17 अप्रैल 1998 —
 
 
उस रात जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर (अब रियासी) जिले के एक शांत और खूबसूरत पहाड़ी गांव, प्राणकोट-डाकीकोट, पर आतंक का साया मंडरा रहा था। पाकिस्तान द्वारा पाले-पोसे गए 14 इस्लामी आतंकवादियों ने रात के अंधेरे में गांव पर हमला बोला — लेकिन यह हमला बंदूक से नहीं, बल्कि बर्बरता, दरिंदगी और हैवानियत से भरा हुआ था।
 
 
29 हिन्दुओं की निर्ममता से हत्या
 
आतंकियों ने एक साथ 29 हिन्दुओं की नृशंस हत्या कर दी। इन निर्दोषों में 12 मासूम बच्चे भी थे — कुछ की उम्र महज 3 या 4 साल थी। किसी का सिर धड़ से अलग कर दिया गया, तो किसी को उसके ही घर में जिंदा जला दिया गया। माँ-बाप के सामने बच्चों को मार दिया गया। जिन हथियारों का इस्तेमाल हुआ, वो बंदूकें नहीं थीं — बल्कि धारदार छुरे, तलवारें और आग थी।
 
 
यह केवल नरसंहार नहीं पूरी इंसानियत के खिलाफ युद्ध था
 
 
प्राणकोट-डाकीकोट का यह हत्याकांड कोई अचानक हुआ हमला नहीं था, बल्कि पाकिस्तान समर्थित इस्लामी आतंकवादियों की एक सुनियोजित साजिश थी। इनका मकसद था — हिंदुओं को डराकर भगाना, जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या संरचना को बदलना, और भारत की संप्रभुता को चुनौती देना।
 
गांव की भौगोलिक स्थिति इतनी दूर-दराज थी कि सरकार और सुरक्षा बलों तक खबर पहुंचने में 10 घंटे लग गए। जब तक सुरक्षा बल पहुंचे, आतंकी अपना काम कर चुके थे और अंधेरे का फायदा उठाकर गायब हो चुके थे। पीछे बचा था सिर्फ राख, लहू और दिल दहला देने वाला मातम।
 
 
हजारों हिंदू परिवारों ने डर के साए में घर छोड़ दिए
 
 
इस घटना के बाद आस-पास के गांवों के हजारों हिंदू परिवारों ने अपने पुश्तैनी घर छोड़ दिए। 1998 से लेकर आज तक, प्राणकोट नरसंहार के पीड़ित परिवार रियासी जिले के तलवाड़ा प्रवासी शिविर में रह रहे हैं। 25 साल से ज्यादा हो गए — वे न्याय की प्रतीक्षा में हैं, पहचान की उम्मीद में हैं, और वापसी की आस लगाए बैठे हैं।
 
आज, 17 अप्रैल को हमें नमन करना चाहिए उन सभी निर्दोषों को, जो सिर्फ इसलिए मारे गए क्योंकि वे ‘हिंदू’ थे।
 
प्राणकोट-डाकीकोट नरसंहार, भारत के खिलाफ छेड़े गए उस इस्लामी जिहादी युद्ध का हिस्सा था, जिसमें आतंकियों ने सिर्फ गोलियों से नहीं, बल्कि मासूमियत को कुचल कर युद्ध लड़ा।
 
आइए, इस दिन को सिर्फ याद न करें — बल्कि ये संकल्प लें कि ऐसी घटनाओं को कभी न दोहराने देंगे, न भूलने देंगे।
 
 
 
 
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