World Heritage Day : हर साल 8 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य विश्व की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण और संरक्षण के महत्व को उजागर करना है। जब हम भारत की समृद्ध विरासत की बात करते हैं, तो जम्मू-कश्मीर का नाम गौरव और गर्व के साथ लिया जाता है। यह केवल एक भौगोलिक प्रदेश नहीं, बल्कि संस्कृति, सभ्यता और अध्यात्म का जीवंत प्रतीक है।
इतिहास की गवाही देते किले और मंदिर
जम्मू-कश्मीर की धरती पर कदम रखते ही ऐसा प्रतीत होता है मानो इतिहास की गूंज कानों में सुनाई दे रही हो। श्रीनगर में स्थित शंकराचार्य मंदिर, लगभग 2500 वर्ष पुराना, न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण भी है।
जम्मू संभाग का रणबीर महल, हरि निवास, बाहु किला, और मोबारक मंडी पैलेस जैसे स्थल आज भी डोगरा शासकों की महानता की गाथा कहते हैं।
मंदिरों और ज्ञान की घाटी – कश्मीर
पुराने समय में कश्मीर को 'ऋषियों की भूमि' कहा जाता था।
प्राचीन मार्तंड सूर्य मंदिर, अनंतनाग में स्थित यह मंदिर आठवीं शताब्दी में राजा ललितादित्य ने बनवाया था। आज यह खंडहर अवस्था में है, लेकिन इसकी विशालता और शिल्पकला आज भी देखने वालों को अभिभूत कर देती है।
पवित्र श्री बाबा अमरनाथ की गुफा, जहाँ सदियों से शिवभक्तों की श्रद्धा उमड़ती है, एक आध्यात्मिक धरोहर से कम नहीं।
शारदापीठ
शारदापीठ देवी सरस्वती का प्राचीन मन्दिर है जो पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर अर्थात (POJK) में शारदा के निकट किशनगंगा नदी (नीलम नदी) के किनारे स्थित है। शारदा पीठ मुजफ्फराबााद से लगभग 140 किलोमीटर और कुपवाड़ा से करीब 30 किलोमीटर दूर है।
हिंदूओं का यह धार्मिक स्थल लगभग 5 हजार वर्ष पुराना है। प्राचीन काल से कश्मीर को शारदापीठ के नाम से ही जाना जाता है, जिसका अर्थ है देवी शारदा का निवास। यह मंदिर पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले क्षेत्र PoJK में नीलम नदी के तट पर स्थित है। पाकिस्तान के कब्जे में जाने के बाद धीरे-धीरे यह मंदिर खंडित हो चुका है।
मान्यता है कि देवी सती के शरीर के अंग उनके पति भगवान शिव द्वारा लाते वक्त यहीं पर गिरे थे। इसलिए यह 18 महाशक्ति पीठों में से एक है या कहें कि ये पूरे दक्षिण एशिया में एक अत्यंत प्रतिष्ठित मंदिर, शक्ति पीठ है। आज भारतीय हिंदू माता के दर्शन के लिए उत्सुक रहते है, लेकिन पाकिस्तान के कब्जे में होने के कारण कोई भारतीय आसानी से यहां नहीं जा पाता है।
विरासत में रची-बसी लोक संस्कृति
जम्मू-कश्मीर की विरासत केवल इमारतों तक सीमित नहीं है। यहाँ की लोककला, संगीत, वेशभूषा और शिल्पकला भी उतनी ही समृद्ध है।
कश्मीरी कालीन, पेपर माचे कला, वुड carving और फिरन – ये सब न केवल स्थानीय जीवनशैली का हिस्सा हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय पहचान को मजबूत करते हैं।
संरक्षण की ज़रूरत और हमारी ज़िम्मेदारी
आज जब आधुनिकता की तेज़ रफ्तार में हम आगे बढ़ रहे हैं, तब यह ज़रूरी है कि हम अपनी इन अनमोल धरोहरों को संरक्षित और संवर्धित करें। सरकारें अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं, लेकिन यह हमारी व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारी भी बनती है कि हम इन स्थलों का सम्मान करें, इनके इतिहास को जानें, और आने वाली पीढ़ियों तक इन्हें सुरक्षित पहुँचाएं।
जम्मू-कश्मीर केवल बर्फीली वादियाँ और सुंदर झीलें नहीं, यह भारत की आत्मा का वो हिस्सा है जहाँ इतिहास सांस लेता है, जहाँ संस्कृति बोलती है और जहाँ हर पत्थर, हर नदी, हर घाटी एक कहानी कहती है।
इस विश्व विरासत दिवस पर आइए संकल्प लें — कि हम अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर को जानेंगे, समझेंगे और बचाएंगे। क्योंकि विरासत केवल अतीत की पहचान नहीं होती, वह भविष्य की दिशा भी होती है।