देशभक्ति कोई शब्द नहीं, एक भावना है — और कुछ वीर ऐसे होते हैं जो इस भावना को अपने लहू से सींच कर अमर कर जाते हैं। ग्रेनेडियर मोहम्मद इकराम खान उन्हीं अमर वीरों में से एक हैं, जिनका बलिदान भारत माटी में सदा के लिए अंकित हो गया।
संक्षिप्त परिचय
सन् 1976, राजस्थान के सीकर ज़िले के रोलसाहबसर गांव में जन्मे मोहम्मद इकराम खान ने बचपन से ही देशसेवा की भावना को अपनी धड़कनों में बसाया। उनके पिता कैप्टन इक़बाल खान कायमखानी, भारतीय सेना में सेवा दे चुके थे, और उन्होंने अपने बेटे को भी वही संस्कार दिए — अनुशासन, देशप्रेम और बलिदान।
सेना में सेवा की शुरुआत
साल 1994, युवा मोहम्मद इकराम ने भारतीय सेना की Grenadiers Regiment जॉइन की, जो वीरता की परंपरा में सबसे अग्रणी मानी जाती है। कड़े प्रशिक्षण और समर्पण के बाद, वे 6 ग्रेनेडियर्स बटालियन में शामिल हुए। सेना में उन्होंने जल्द ही अपने अनुशासन, बहादुरी और अद्वितीय साहस से अपने साथियों और वरिष्ठों का दिल जीत लिया।
कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि और ऑपरेशन रक्षक
साल 1999, जब पाकिस्तानी सेना ने अवैध कारगिल में घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया तब इकराम खान की बटालियन को ऑपरेशन रक्षक के तहत जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया। दुर्गम पहाड़, घने जंगल, और लगातार आतंकियों के हमले — पर इन बाधाओं ने उनके हौसले को तोड़ने के बजाय और मज़बूत कर दिया।
वो आखिरी ऑपरेशन — 7 अप्रैल 2000
राजौरी ज़िले के नैटी गांव में एक खुफिया ऑपरेशन के तहत, आतंकियों की तलाश शुरू हुई। जैसे ही सर्च टीम जंगलों में आगे बढ़ी, भारी गोलाबारी शुरू हो गई। लेकिन इकराम डरे नहीं। उन्होंने दो आतंकियों को भागते देखा और बिना समय गंवाए उनका पीछा किया।
एक आतंकी को मौके पर ही ढेर कर दिया और दूसरे को घायल कर दिया। लेकिन जब वे घायल आतंकी को पकड़ने आगे बढ़े, तभी सामने से गोलीबारी हुई — एक गोली उनके आंख के पास लगी।
अंतिम विदाई, अमर बलिदान
घायल अवस्था में उन्हें तुरंत उधमपुर के सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ 9 दिन तक डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की हर संभव कोशिश की। परंतु 12 अप्रैल 2000 को यह वीर सपूत देश की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ।
शौर्य चक्र से सम्मानित
उनकी अद्वितीय वीरता और सर्वोच्च बलिदान के लिए, उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया — जो भारत का एक प्रमुख शांति काल का वीरता सम्मान है।
परिवार का गौरव, देश की शान
ग्रेनेडियर मोहम्मद इकराम खान अपने पीछे छोड़ गए हैं अपनी पत्नी श्रीमती बलकेश बानो और भाई सुबेेदार मोहम्मद इक़रार, जो स्वयं भी भारतीय सेना में सेवारत हैं। उनका परिवार आज भी उसी जज़्बे के साथ देशसेवा में समर्पित है।
ग्रेनेडियर इकराम खान जैसे वीरों का नाम इतिहास नहीं, बल्कि हर हिंदुस्तानी के दिल में लिखा जाता है। उनकी कहानी सिर्फ एक सैनिक की नहीं, बल्कि उस भारत की है जो हर मोर्चे पर अपने सपूतों की वीरता से चमकता है।
जय हिंद।