8 अप्रैल 1950 : नेहरु लियाकत समझौता और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नेहरु मंत्रिमंडल से इस्तीफा, पढ़ें पूरी कहानी

08 Apr 2025 14:19:36

Nehru Liaquat Pact shyama prasad mukherjee resignation
 
 
Nehru Liaquat Pact : दिल्ली में एक बंद कमरे में हुए हुए नेहरु-लियाकत समझौते का अगर सबसे अधिक किसी ने विरोध किया था तो वे थे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी। मुखर्जी का साफ़ तौर पर मानना था कि इस समझौते की शर्तें मुस्लिम तुष्टीकरण की बानगी ही हैं। इस समझौते के लागू होने से पाकिस्तान में हिंदुओं पर और अधिक खतरा पैदा हो जाएगा। मुखर्जी का साफ़ तौर पर मानना था कि इस समझौते से हिन्दुओं का कोई भला नहीं होने वाला है। लिहाजा समझौते को लेकर डॉ. मुखर्जी नाराज थे। इसे लेकर उन्होंने इस समझौते का विरोध किया था। लेकिन प्रधानमंत्री नेहरु कहाँ मानने वाल थे। बहरहाल आज की इस कड़ी में हम 8 अप्रैल के उस घटना को जानेंगे कि आखिरकार नेहरु लियाकत समझौता क्या था? मुखर्जी क्यों नाराज थे और उन्होंने नेहरु
 
 
मंत्रिमंडल से इस्तीफा क्यों दिया?
 
 
1947 में देश का बंटवारा हुआ उधर अलग देश बनने के बाद ही पाकिस्तान ने अपनी नापाक मंसूबो के तहत जम्मू कश्मीर पर हमला कर दिया था। दोनों देशों के बीच युद्ध का माहौल था। इधर बंटवारे के कारण बड़ी संख्या में दोनों तरफ से लोगों का पलायन जारी था। पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार अपने चरम पर था, उनकी संपत्तियां लूटी जा रही थीं, हिन्दू और सिखों को मारा जा रहा था। 1949 आते आते दोनों देशों के बीच व्यापार बंद था। इसी बीच स्थिति को काबू करने के लिए देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और तब के पाकिस्तानी पीएम लियाकत अली खान के बीच एक समझौता हुआ जिसे नेहरु-लियाकत समझौता का नाम दिया गया।
 
Nehru Liaquat Pact shyama prasad mukherjee resignation
 
दरअसल 1950 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान दिल्ली आए थे। वे करीब 6 दिनों तक दिल्ली में रुके। दोनों देशों के बीच लम्बी बातचीत होती है। 8 अप्रैल 1950 को भारत और पाकिस्तान के बीच दिल्ली में समझौता होता है, इस समझौते के पीछे दो लोग होते हैं। भारत की तरफ से उस समय के पीएम जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री लियाकत अली खान। नेहरू-लियाकत समझौता के नाम से चर्चित यह समझौता असल में दोनों देशों के अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए था। इसके अलावा जो इस पैक्ट का सबसे बड़ा मकसद था, वह दोनों देशों के बीच युद्ध को टालना था।
 
 
समझौते का मुख्य बिंदु :
 
 
1. प्रवासियों को ट्रांजिट के दौरान सुरक्षा दी जाएगी। वे अपनी बची हुई संपत्ति को बेचने के लिए सुरक्षित वापस आ-जा सकते हैं।
 
2. जिन औरतों का अपहरण किया गया है, उन्हें वापस परिवार के पास भेजा जाएगा।
 
3. अवैध तरीके से कब्जाई गई अल्पसंख्यकों की संपत्ति उन्हें लौटाई जाएगी।
 
4. जबरदस्ती धर्म परिवर्तन अवैध होगा
 
5. अल्पसंख्यकों को बराबरी और सुरक्षा के अधिकार दिए जाएंगे।
 
6. दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ किसी भी तरह का कुप्रचार नहीं चलने दिया जाएगा।
 
7. दोनों देश युद्ध को भड़ाकाने वाले और किसी देश की अखंडता पर सवाल खड़ा करने वाले प्रचार को बढ़ावा नहीं देंगे।
 
8. अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा मुख्य था।
 
 
हालाँकि यह सब भारत में तो सम्भव हुआ लेकिन पाकिस्तान ने इस समझौते की अवहेलना होती रही। पाकिस्तान जब से आस्तित्व में आया तब से वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता ही रहा। इसी बात का अंदेशा लगाते हुए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस समझौते का विरोध भी किया था। उन्होंने इस समझौते को मुस्लिम तुष्टिकरण बताते हुए कहा था कि इस समझौते का सीधा असर हिन्दुओं पर पड़ेगा और उन्हें इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। हालाँकि मुखर्जी की बात नेहरु ने नहीं सुनी और लियाकत अली के साथ समझौता कर बैठे। इसके एवज में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नाराज होकर नेहरु मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
 
 
कैबिनेट छोड़ने के बाद मुखर्जी ने साल 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो बाद में साल 1980 में भारतीय जनता पार्टी या भाजपा बन गई। जब देश में मोदी सरकार ने CAA कानून के नियमों को लागू किया तो उस उस पर बात करते हुए कई दफा गृहमंत्री अमित शाह ने इस समझौते का जिक्र किया। 2019 में लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को सही ठहराते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने नेहरू-लियाकत समझौते का उल्लेख करते हुए कहा था कि अगर नेहरू-लियाकत समझौता अच्छे से लागू होता और पाकिस्तान इस संधि का पालन किया गया होता, तो इस विधेयक को लाने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
 
 
आज भी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति क्या है यह जगजाहिर है। लेकिन मानवाधिकार की दुहाई देने वाले अक्सर पाकिस्तान में अल्पसंखयकों पर हो रहे दोयम दर्जे के व्यव्हार पर कुछ भी नहीं बोलते। जबकि भारत में अल्पसंख्यकों के हितों की इस प्रकार रक्षा की गई कि आज ना सिर्फ आबादी में उनकी संख्या बढ़ी है बल्कि उन्हें ऊँचे अवदे पर भी काबिज होने का मौका मिला। 
 
 
 
 
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