370 की आड़ में आरबीए आरक्षण घोटाला, पिछड़े क्षेत्रों के नाम पर विकसित इलाकों को दिया ओबीसी के हिस्से का 20% आरक्षण, एक पड़ताल

19 Oct 2019 14:30:00

 
आर्टिकल 370 के बहाने जम्मू कश्मीर में कश्मीरी नेताओं ने ऐसी राजनीतिक व्यवस्था कायम कर रखी थी। जहां ज़रूरतमंदों और पिछड़ों को 70 तक राज्य की पीआरसी के लिए तरसा दिया गया, बल्कि दूसरी तरफ वोट की राजनीति के तहत एक वर्ग को तमाम सुविधाएं दी गयीं, चाहे वो गैर-कानूनी और असंवैधानिक हो या फिर पिछड़ा-विरोधी। राज्य की आरक्षण व्यवस्था ऐसी ही संस्थागत घोटाले का शर्मनाक उदाहरण है।
 
2004 में जम्मू एंड कश्मीर रिजर्वेशन एक्ट के तहत जहां अन्य पिछड़ों की करीब 15 फीसदी आबादी को सिर्फ 2 फीसदी आरक्षण दिया गया। वहां भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर आरक्षण निर्धारित करते हुए आरबीए (रेजिडेंट्स ऑफ बैकवर्ड एरियाज़) नामक कैटेगरी बनायी गयी। जिसके लिए 20 फीसदी आरक्षण तय किया गया। ये एलओसी के आसपास इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए निर्धारित आरक्षण 3% से अलग था।
 
इस आरक्षण लिए बेसिक आयडिया था कि दूरदराज़ उन क्षेत्र के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाये, जोकि हैं बेहद दुर्गम इलाके माने जाते हैं। आर्थिक रूप से पिछड़े, यातायात, कम्यूनिकेशन प्रशासनिक केंद्रों से दूरी और विकास के पैमाने दुर्गम इलाकों/गांवों को इस कैटेगरी में रखा जाना तय हुआ। लेकिन इन इलाकों की पहचान के लिए कोई आधिकारिक पैमाना नहीं बनाया गया। इसी का फायदा उठाकर आरक्षण घोटाले की नींव रखी गयी।
 
2004 के बाद अब्दुल्ला और महबूबा सरकार ने ऐसे कश्मीर के इलाकों भी इस कैटेगरी में शामिल कर दिया जोकि पिछड़े ग्रामीण क्षेत्र के पैमाने से बाहर थे। जोकि गांव से कस्बों में तब्दील हो चुके हैं। लेकिन चूंकि यहां से महबूबा और अब्दुल्ला परिवार को वोट मिलते थे।
 
इनमें कई गांव जो सिर्फ शहर के बाहरी इलाके में स्थित हैं, इन पॉश इलाकों को भी पिछड़े इलाकों के रूप में अधिसूचित कर दिया गया।
 
इसके अलावा तय किया गया था कि पिछड़े इलाकों के रूप में अधिसूचित इलाकों को समय-समय पर सर्वे कर सूची में बदलाव किया जायेगा। वर्षों के बाद एक दर्जन या अधिक गांवों को आरबीए के रूप में अधिसूचित किया गया है, लेकिन इस आरक्षण के अस्तित्व में आने के बाद आज तक एक भी गांव को इस सूची से बाहर नहीं किया गया है।
 
कई आरबीए गांव हैं जिनमें डिग्री कॉलेज, अंग्रेजी माध्यम स्कूल, तकनीकी संस्थान, बेहतर सड़क संपर्क आदि जैसी सुविधाएं हैं, लेकिन वे अभी भी आरबीए के तहत आरक्षण का आनंद ले रहे हैं। कई आरबीए गाँव कस्बों के रूप में विकसित हुए हैं, जिनमें सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम), तहसीलदार और बैंक के कार्यालय हैं, लेकिन वे अभी भी पेशेवर संस्थानों में सरकारी नौकरियों और प्रवेश को हथियाने के लिए आरबीए बनना चाहते हैं।
 
इस दुष्चक्र में अंतिम पीड़ित युवा हैं जो मेधावी होने के बावजूद और निम्न आर्थिक स्तर से संबंधित होने के बावजूद आरबीए का लाभ नहीं उठा पाते हैं? इसके अलावा, आरबीए क्षेत्र जो कस्बों और व्यावसायिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए हैं, वे अपनी तहसील या जिले के वास्तविक पिछड़े गांवों के साथ अन्याय कर रहे हैं।
 
उदाहरण-1
 
बारामूला जिले की तंगमर्ग तहसील से 2 किलोमीटर दूर स्थित चंदिलोरा गाँव को कई दशक पहले आरबीए गाँव घोषित किया गया था, लेकिन आज यह कोई पिछड़ा गाँव नहीं है और वास्तव में एक कस्बे के रूप में विकसित हो गया है। SDM और तहसीलदार का कार्यालय इस क्षेत्र में स्थित है और साथ ही एक डिग्री कॉलेज भी है।
 
उदाहरण-2
 
फिरोजपोरा गाँव टांगमर्ग शहर से मात्र 2 किमी दूर है, जहाँ एक सबसे अच्छा अंग्रेजी माध्यम स्कूल (टाइन्डेल बिस्को स्कूल तंगमारग) है, साथ ही सबसे अच्छी सड़क कनेक्टिविटी भी है, लेकिन इस क्षेत्र को आरबीए गाँव के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है।
 
उदाहरण-3
 
अनंतनाग जिले में कामद गाँव खानबल - डोरू रोड पर स्थित एक आरबीए गाँव है। यह गांव अनंतनाग शहर से 7 किलोमीटर दूर स्थित है, जहाँ सबसे अच्छी सड़क संपर्क और अन्य सभी सुविधाएं हैं।
 
उदाहरण-4
 
तुलनात्मक रूप से शांगस निवार्चन क्षेत्र में करेवा पर स्थित गोपालपोरा कलां को आरबीए के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है? कुलगाम जिले में दमहल हाजिपोरा वास्तव में 10 साल पहले तक एक पिछड़ा हुआ इलाका था, लेकिन अभी दामल एक ऐसा शहर है, जिसमें एसडीएम ऑफिस, डिग्री कॉलेज, तहसील कार्यालय, जेएंडके बैंक और कुछ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं। इसी क्षेत्र के पहलुओ ब्लॉक में वास्तविक रूप से पिछड़े गैसरीना गांव को पिछड़े क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है।
 
उदाहरण-5
 
बडगाम के चौपड़ा सब डिवीजन में कई गांव हैं जो श्रीनगर शहर से मात्र 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं, लेकिन वे पिछड़े क्षेत्र (आरबीए) बने हुए हैं। ये क्षेत्र वास्तव में 10-15 साल पहले तक शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए थे, लेकिन आरबीए आरक्षण का लाभ पाने के बाद सामाजिक-आर्थिक स्थिति पूरी तरह बदल गई है। श्रीनगर और बडगाम के प्रसिद्ध स्कूलों से इन क्षेत्रों के छात्रों के पास बेहतर शिक्षा भी उपलब्ध है। इसके विपरीत छात्र और नौकरी के इच्छुक उम्मीदवार जो कि ऊपरी चदरा और चरार-ए-शरीफ, जबाबाद, नीगु, कुटबल, बोनेन, ब्रानवर, दरवान, नागबल, चेल्यां चोंपटाड आदि जो आरबीए के रूप में भी सूचीबद्ध नहीं हैं, से आते हैं वो चौपड़ा सब डिवीजन के छात्रों से मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं। इन गांवों में साक्षरता दर अभी भी 40% से कम है और सरकार की नौकरी पाना ज्यादातर युवाओं और महिलाओं के लिए एक सपना है।
 
कश्मीरी राजनीतिक दलों ने वोट बैंक के रूप में आरबीए का उपयोग किया है और यही कारण है कि वे इस सूची में अधिक से अधिक क्षेत्रों को जोड़ते हैं। अब यह कम से कम 50% गांवों को अधिसूचित करने का सही समय है, जिन्होंने आर्थिक और शैक्षिक रूप से प्रगति की है। जम्मू-कश्मीर राज्य पिछड़ा वर्ग अधिनियम 1997 की धारा -11 सरकार द्वारा सूचियों के आवधिक संशोधन के लिए कहता है। यह कहता है कि इस अधिनियम के लागू होने के बाद जो क्षेत्र विक्षित होते जायेंगे उन्हें इस सूची से बाहर किया जाएगा।
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